किन मुद्दों पर बात कर सकते हैं किम जोंग-उन और मून जे-इन?
शुक्रवार को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन और उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग-उन की मुलाक़ात होने वाली है.
बीते कई दशकों में ये पहली बार है जब दोनों नेता मिलेंगे और आपसी मतभेदों को सुलझाने का प्रयास करेंगे.
इससे पहले महीनों तक दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहतर बनाने की संभावनाएं तलाशी जाती रही हैं. इस मुलाक़ात के बाद अब आगे
शुक्रवार को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन और उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग-उन की मुलाक़ात होने वाली है.
बीते कई दशकों में ये पहली बार है जब दोनों नेता मिलेंगे और आपसी मतभेदों को सुलझाने का प्रयास करेंगे.
इससे पहले महीनों तक दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहतर बनाने की संभावनाएं तलाशी जाती रही हैं. इस मुलाक़ात के बाद अब आगे उत्तर कोरिया और अमरीका के बीच अहम बैठक होने वाली है.
इस मुलाक़ात में कोरियाई देशों में परमाणु निरस्त्रीकरण और शांति स्थापित करने से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होगी.
विशेषज्ञ मानते हैं कि उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियार छोड़ने पर राज़ी नहीं होगा लेकिन फिर भी वो इस बैठक को बेहद अहम मान रहे हैं.
दोनों ही पक्षों के सामने अपनी अलग समस्याएं भी हैं जिन पर बात हो सकती है जैसे कि प्रतिबंध और दोनों मुल्कों के बीच बंटे परिवार.
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ये मुलाक़ात वाकई में बेहद अहम मानी जा रही है क्योंकि साल 2007 के बाद ये पहली बार है जब दोनों देशों के नेता मिल रहे हैं और किम जोंग-उन के लिए ये ऐसी पहली मुलाक़ात है.
इस मुलाक़ात का प्रसारण टेलीविज़न पर लाइव किया जाएगा. इससे पहले उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात की थी लेकिन ये काफ़ी हद तक एक गुप्त मुलाक़ात थी.
असन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पॉलिसी स्टडीज़ के निदेशक डॉक्टर जेम्स किम कहते हैं, "ये अपने खोल से बाहर आने जैसा है. किम जोंग-उन कभी इस तरह की बैठक का हिस्सा नहीं बने हैं."
वे अपने पिता के पदचिन्हों का अनुसरण कर रहे हैं. किम जोंग-इल ने दो बार दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपतियों से मुलाक़ात की थी- पहली बार साल 2000 में किम डे-जंग से और साल 2007 में रो मू-ह्यून से.
ये बैठक दोनों देशों के बीच परमाणु हथियारों के ख़तरे पर बात करने और आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए हुई थी.
ये बैठक कराने के लिए किम डे-जंग को नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया था. इस मुलाक़ात के बाद केसॉन्ग औद्योगिक परिसर बनाया गया और युद्ध के बाद बिछड़े परिवारों के सदस्य भी मिले.
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लेकिन निरस्त्रीकरण का मुद्दा जस का तस रहा और परमाणु ख़तरा भी बरक़रार रहा.
साथ ही दक्षिण कोरिया की रूढ़िवादी सरकार उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अपनाने लगी जिससे शांति के लिए की जा रही कोशिशों पर असर पड़ा. उस वक्त से उत्तर कोरिया को शामिल करने और दक्षिण कोरिया पर उसकी निर्भरता की आलोचना होती रही है.
असन इंस्टीट्यूट के डॉक्टर किम कहते हैं कि दक्षिण कोरिया के कई लोग ये दलील देते हैं कि उत्तर कोरिया को काफी आर्थिक मदद दी गई है जिसका उम्मीद के अनुसार इस्तेमाल नहीं हुआ और इससे उत्तर कोरिया को अपने परमाणु महत्वाकांक्षा को पूरा करने में मदद मिली.
"कई लोगों का मानना है कि इस कारण अच्छा तो नहीं बल्कि बुरा ही हुआ. उनका मानना है कि इसी से उत्तर कोरिया को परमाणु शक्ति बनने में मदद मिली."
दक्षिण कोरिया को क्या चाहिए?
करीब दस साल तक जारी रहे तनाव और धमकियों के बाद आख़िर दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया बातचीत के लिए मनाने में सफल हुआ है.
राष्ट्रपति मून जे-इन पहले भी दोनों देशों के बीच बातचीत की कोशिशों का हिस्सा रहे हैं. वो पूर्व राष्ट्रपति रो मू-ह्युन के साथ कम कर चुके हैं और बीते साल मई में अपना कार्यकाल शुरु करते ही उन्होंने बीतचीत की कोशिशें तेज़ कर दी थीं.
अमरीकन यनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल सर्विस में सहायक प्रोफ़ेसर जी-यंग ली कहते हैं, "इसमें कोई दोराय नहीं कि वो एक ऐसी विरासत सौंपना चाहते हैं जिसमें दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्ते हों."
पनमुनजोम में होने वाली बैठक से मून जे-इन की उम्मीदें स्पष्ट हैं. उनका कहना है कि दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति है और शांति समझौते की कोशिशें की जानी ज़रूरी है ताकि कोरियाई प्रायद्वीप में सालों से जारी तनाव ख़त्म किया जा सके.
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उत्तर कोरिया के साथ संबंधों पर नज़र रखने वाली मिनिस्ट्री ऑफ़ युनिफ़िकेशन का कहना है कि परमाणु निरस्त्रिकरण और सीमा पर सैन्य तैनाती के कारण उठे तनाव को कम करना इसका उद्देश्य है. साथ ही दोनों देशों के बीच आर्थिक और सामाजिक रिश्ते मज़बूत करने पर बात होगी. केसॉन्ग औद्योगिक परिसर को फिर से खोलने पर भी बात हो सकती है.
केसॉन्ग औद्योगिक परिसर दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग का उदाहरण है जिसे साल 2016 में बंद कर दिया गया था. दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया पर मज़दूरों को पैसा देने की बजाय ये पैसा परमाणु कार्यक्रम में लगाने की आरोप लगया था.
रष्ट्रपति मून कहते हैं कि अगर परमाणु निरस्त्रिकरण पर बात आगे बढ़ी तो वो इस परिसर को फिर से खोलेंगे जिसमें दक्षिण कोरियाई फैक्ट्रियों में एक वक्त 55,000 उत्तर कोरयाई मज़दूर काम करते थे.
इस बैठक में कोरियाई युद्ध के कारण अलग हुए 60,000 लोगों और उनके परिवारों पर भी चर्चा होगी. उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को ले कर रिश्ते बिगड़ने से पहले इस बारे में 2015 में बीतचीत हुई थी. इसके साथ उत्तर कोरिया में हिरासत में रखे गए विदेशियों की रिहाई के बारे में भी चर्चा हो सकती है.
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उत्तर कोरिया का क्या रुख़ रहेगा?
उत्तर कोरिया किन मुद्दों पर बातचीत करना चाहता है अभी इस पर स्पष्ट जानकारी नहीं हैं. कई जानकारों का कहना है कि उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंधों के कारण किम जोंग-उन बातचीत के लिए तैयार हुए हैं.
बीते साल मिसाइलें गिराने और सेना के इस्तेमाल की ख़बरों के बाद उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था को पंगु करने के उद्देश्य से अमरीका और संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगाए थे.
असन इंस्टीट्यूट के डॉक्टर किम कहते हैं कि प्रतिबंधों जैसे मुद्दों पर अमरीका उत्तर कोरिया से बात करे इसके लिए ज़रूरी है कि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच बातचीत शुरु हो.
उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया का कहना है प्रतिबंध नहीं, बल्कि ये किम का "आत्मविश्वास" है कि वो बातचीत के लिए आगे आए हैं.
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ये भी सच है कि उत्तर कोरिया उस पर लगे प्रतिबंधों से आज़ादी चाहता है. इस ऐतिहासिक मुलाक़ात के सप्ताह भर पहले उत्तर कोरिया ने कहा कि वो अपने परमाणु परीक्षण और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल छोड़ने पर फिलहाल रोक लगा रहा है. बीते कुछ वक्त में मिसाइल छोड़ने को धमकी देने के तौर पर इस्तेमाल हुआ है.
दक्षिण कोरिया और अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस कदम का स्वागत किया है.
लॉवी इंस्टीट्यूट में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के निदेशक डॉक्टर युआन ग्राहम कहते हैं कि किम जोंग उन को हर हाल में अमरीका से बात करनी होगी और इस दिशा में मून जे-इन से मुलाक़ात "बस एक कीमत की तरह है." और डॉनल्ड ट्रंप के साथ बातचीत करने से उन्हें उनके देश में सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल सकती है.
अमरिकन युनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर ली कहते हैं कि "किम चाहते हैं कि उनके साथ अमरीकी नेताओं जैसा व्यवहार हो".
"हमें लगता है कि एक तानाशाह कुछ भी कर सकता है लेकिन उन पर लगातार दवाब बना रहता है. उन्हें उत्तर कोरिया में अपनी स्थिति के बारे में सोचना होता है."
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इस मुलाक़ात से क्या हासिल होगा?
मिनिस्ट्री ऑफ़ युनिफ़िकेशन का कहना है कि दोनों देशों में बात होना अपने आप में उम्मीद जगाने वाला कदम है. मिनिस्ट्री का कहना है कि तीन-चौथाई दक्षिण कोरियाई लोग इसके बारे में सकारात्मक रुख़ रखते हैं. लेकिन अगर इस मुलाक़ात से कुछ अधिक हासिल नहीं हुआ तो उनकी उम्मीदों को ठेस पहुंचेगी.
इसे दोनों देशों को एक साथ लाने और उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों पर लगाम लगाने की दिशा में एक शुरुआती कदम के तौर पर देखा जा रहा है.
प्रोफ़ेसर ली कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि दोनों देशों में कई समझौते होंगे और दोनों के बीच भविष्य में बात होती रहेगी. वो कहते हैं, "ये मुलाक़ात बेहतर शुरुआत का संकेत है."
लेकिन सभी की निगाहें इस पर होंगी कि दोनों देशों के नेता एक दूसरे से कैसे मिलते हैं. असन इंस्टीट्यूट के डॉक्टर किम कहते हैं कि इस मुलाक़ात की सफलता इस पर निर्भर करती है कि दोनों के बीच की "केमिस्ट्री" कैसी है.
"मुझे लगता है दोनों देशों के बीच ये अच्छी मुलाक़ात होगी. लेकिन इसके बाद परमाणु निरस्त्रिकरण होगा या नहीं इस बारे में मैं स्पष्ट नहीं हूं."