Explain: चीन की चिप इंडस्ट्री को बुरी तरह से कुचल रहा है अमेरिका, क्या भारत उठा पाएगा फायदा?
पिछले एक महीने ने अमेरिका ने चीन के खिलाफ ताबड़तोड़ प्रतिबंधों के ऐलान किए हैं, जिससे चीन बुरी तरह से बौखला गया है और उम्मीदों से कहीं ज्यादा आगे बढ़कर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए हैं।
नई दिल्ली, सितंबर 05: अमेरिका ने अब चीन के खिलाफ टेक्नोलॉजी युद्ध छेड़ दिया है और चीन की तकनीकी प्रगति को रोकने के उद्देश्य से अमेरिका ताबड़तड़ कमद उठाए जा रहा है। अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने अमेरिकी कंपनियों एनवीआईडीआईए और एएमडी द्वारा चीन में डिजाइन किए गए उन्नत ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) के शिपमेंट को प्रतिबंधित करने का फैसला किया है। अमेरिकी सरकार का कहना है कि वह इन उत्पादों के संभावित सैन्य इस्तेमाल को लेकर चिंतित है। वहीं, अमेरिकी प्रतिबंधों को लेकर चीन ने कहा है, कि इससे उसके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन, सवाल ये भी हैं, कि क्या भारत इसका फायदा आने वाले वक्त में उठ सकता है।
चीन पर प्रतिबंधों का कोड़ा
आपको बता दें कि, GPU एक प्रकार का इंटीग्रेटेड सर्किट है, जिसका उपयोग ग्राफिक्स और वीडियो इमेज जनरेशन, हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग के डेवलपमेंट में किया जाता है। NVIDIA और AMD, दोनों कंपनियां कैलिफोर्निया में स्थित हैं और 2021 में राजस्व के अनुसार, ये दोनों कंपनियां दुनिया की 9वीं और 10वीं सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनियां हैं। इन दोनों कंपनियों के शेयर की कीमतें NVIDIA के प्रतिबंधों की खबर सामने आने के बाद गिर गईं। 12% इंट्राडे गिरने के बाद, NVIDIA के शेयर 1 सितंबर को 7.7% नीचे बंद हुए। वहीं, AMD 3.0% नीचे बंद हुआ। हालांकि, अगर गहराई में जाकर देखें, तो इन दोनों ही कंपनियों के शेयर पिछले साल नवंबर के बाद ही गिरने लगे थे।
सेमीकंडक्टर को लेकर 'युद्ध'
एप्लाइड मैटेरियल्स, जो सेमीकंडक्टर उत्पादन उपकरण का सबसे बड़ा निर्माता है, 1 सितंबर को उसका शेयर 2.4% गिरा और अपने 52-सप्ताह के उच्च स्तर से 45.0% नीचे था। 1 सितंबर को इंटेल के शेयर में केवल 0.5% की गिरावट आई, लेकिन यह 52-सप्ताह के उच्च स्तर से 43.6% नीचे था। पिछले दिसंबर में चरम पर पहुंचने के बाद से SOX सेमीकंडक्टर इंडेक्स में 35.5% की गिरावट आई है। पिछले कुछ महीनों में एनवीआईडीआईए और एएमडी पर लगे नए प्रतिबंधों की वजह से इनपर गंभीर असर पड़ा है। हालांकि, इसके साथ ही अब यह भी तय हो गया है, कि ये कंपनियां अब चीन में सेमीकंडक्टर बेचने की प्लानिंग नहीं कर सकता है। जिसके बाद आशंका यही है, कि इन कंपनियों का ग्रोथ और इन्वेस्टमेंट पर कमाई कम हो सकती है और आने वाले वक्त में भी इन कंपनियों का शेयर कम ही रहेगा।
उपकरणों के निर्यात पर पाबंदी की घोषणा
पिछले महीने 12 अगस्त को अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने चीन को इलेक्ट्रॉनिक डिजाइन ऑटोमेशन (ईडीए) उपकरणों के निर्यात पर प्रतिबंध की घोषणा की थी। इसने इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग परामर्श फर्म इंटरनेशनल बिजनेस स्ट्रैटेजीज के सीईओ हैंडेल जोन्स को यह लिखने के लिए प्रेरित किया, कि इस तरह के प्रतिबंध "दुनिया भर में विनाशकारी प्रभाव डाल सकते हैं", जिसके परिणामस्वरूप "वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के बड़े व्यवधान" हो सकते हैं। लेकिन, अमेरिका का मकसद साफ है, कि वो अब चीन को अपनी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर अपना ही दुश्मन नहीं बनने देना चाहता है। चीन ने भारी संख्या में अमेरिकन टेक्नोलॉजी चुराए और उनका काफी शानदार तरीके से इस्तेमाल किया और अब चीन टेक्नोलॉजी के सहारे दुनिया को परेशान कर रहा है और सबसे ज्यादा परेशान अमेरिका ही है। जोन्स ने यह भी कहा कि "चीन के लिए स्थिति बहुत गंभीर है। उन्होंने कहा कि, पिछली अमेरिकी सरकार का पैटर्न ये था, कि ऐसे कदम उठाओ, जिससे चीन को भविष्य में नुकसान हो, लेकिन मौजूद सरकार जो कर रही है, उससे चीन का अभी से नुकसान शुरू हो जाएगा।
एक महीने में ही ताबड़तोड़ प्रतिबंध
पिछले एक महीने ने अमेरिका ने चीन के खिलाफ ताबड़तोड़ प्रतिबंधों के ऐलान किए हैं, जिससे चीन बुरी तरह से बौखला गया है। लेकिन अभी यह कोई आपदा नहीं है। अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने NVIDIA को अपने A100 GPU का उत्पादन करने अमेरिकी ग्राहकों का समर्थन करने और चीन को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने की अनुमति दी है और इस दौरान 1 सितंबर 2023 तक चीन को अपने नए H100 उपकरण के विकास के लिए वक्त दिया गया है। लेकिन, इसके बाद भी एक बड़ी अनिश्चितता पैदा हो गई है। NVIDIA ने चेतावनी दी है, कि उसके राजस्व पर प्रभाव करोड़ों डॉलर तक पहुंच सकता है। वहीं, एएमडी उतना चिंतित नहीं लगता, कम से कम अभी तो नहीं। EDA टूल और GPU, सिर्फ दो ही उत्पाद नहीं हैं, जिनपर अमेरिका ने नियंत्रण लगा दिया है, बल्कि 12 अगस्त को, वाणिज्य विभाग ने गैलियम ऑक्साइड और हीरे से बने सेमीकंडक्टर सबस्ट्रेट्स पर और प्रेशर गेन कम्बशन (PGC) तकनीक पर भी प्रतिबंध लगा दिया, जिससे गैस टर्बाइनों के प्रदर्शन में सुधार होता है।
280 अरब डॉलर निवेश करेगा अमेरिका
वहीं, पिछले महीने 9 अगस्त को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 'डोमेस्टिक हाईटेक मैन्यूफैक्चरिंग' को बढ़ावा देने के लिए 280 अरब डॉलर के द्विदलीय विधेयक पर साइन कर दिए हैं, जिसका मकसद चीन के खिलाफ अमेरिकी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के साथ साथ उसके चिप मार्केट का वर्चस्त खत्म कर देना है। सबसे खास बात ये है, कि इस कानून का समर्थन अमेरिका के नेताओं के साथ साथ अधिकारी, स्थानीय राजनेता औक व्यापारिक वर्ग कर रहा था और इसीलिए बाइडेन प्रशासन यह कानून लेकर आया है और इस कानून के तहत अमेरिका में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए निवेश को प्रोत्साहित किया जाएगा, ताकि अत्याधुनिक सेमीकंडक्टर तैयार किया जा सके।
नुकसान की आशंका से तिलमिलाया चीन
चीन भी चिप निर्माण सेक्टर को अपने कंट्रोल में करना चाहता है और अगले करीब 20 से 25 साल दुनिया के बाजारों पर उसी का राज होगा, जो सेमीकंडक्टर का सबसे बड़ा निर्माता होगा। चीन ताइवान पर इसलिए भी कब्जा करना चाहता है, क्योंकि वहां की सिर्फ कंपनी ही दुनिया की 65 प्रतिशत सेमीकंडक्टर का उत्पादन करती है। लिहाजा, अब बाइडेन प्रशासन ने चिप इंडस्ट्री को अमेरिका का भविष्य बनाने का फैसला लिया है। लेकिन, राष्ट्रपति बाइडेन ने रोज गार्डन समारोह में कहा कि, स्मार्टफोन से लेकर कंप्यूटर तक ऑटोमोबाइल तक सब कुछ को चलाने के लिए सेमीकंडक्टर की जरूरत है, लिहाजा अब अमेरिका में ही सेमीकंडक्टर का निर्माण होगा।
भारत के लिए बड़ा मौका
अमेरिका और चीन सेमीकंडक्टर निर्माण को लेकर अब आमने-सामने की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन सवाल ये उठ रहे हैं, कि क्या भारत सेमीकंडक्टर निर्माण की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाए और क्या चीनी कंपनियों की जगह ले पाएगा। भारत सरकार ने सेमीकंडक्टर फैब की स्थापना की है, जिसके जरिए लोन भी लिया जा सकता है। समीकंडक्टर निर्माण काफी करोड़ों रुपये की पूंजी लगानी पड़ेगी और उसकी भरपाई निकट भविष्य में भी नहीं होगा, लिहाजा सवाल ये हैं, कि क्या कोई कंपनी भारत में पूरी दुनिया की जरूरतों की पूर्ति के लिए सेमीडक्टर का निर्माण कर पाएगा, क्योकि जो चिप निर्माण में अव्वल आएगा, दुनिया पर उसी की हुकूम होगी। इस वक्त अमेरिका के अलावा ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान और नीदरलैंड जैसे देश भी सेमीकंडक्टकर का निर्माण कर रहे हैं, लेकिन भारत अगर इस टेक्नोॉजी सेक्टर का बादशाह बनता बहै, तो दुनिया पर राज्य भारत करेगा, को सवाव हैं, कि क्या भारत इस मौके फायदा उठा पाएगा।