भारत के 'दोस्त' ने सबसे हाईटेक मिसाइल का किया 'सीक्रेट परीक्षण', चीन जैसे दुश्मन परेशान
नई दिल्ली: दुनिया में अब सिर्फ वही देश ताकतवर माने जाते हैं, जिनके पास हाईटेक हथियार हों। इस वजह से सभी देश अत्याधुनिक तकनीकी विकसित करने में लगे हुए हैं। इसी कड़ी में भारत के करीबी देश अमेरिका को एक बड़ी कामयाबी मिली है, जहां उसने अपनी एक हाईटेक मिसाइल का सीक्रेट परीक्षण किया। जिसकी खबर सामने आते ही चीन समेत कई दुश्मन देशों की नींद उड़ गई। (तस्वीरें- अमेरिकी वायुसेना से साभार)
क्या है नाम?
अमेरिकी मीडिया के मुताबिक उसकी वायुसेना ने एक लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल का परीक्षण किया। इस परीक्षण की जानकारी एकदम गुप्त रखी गई थी। जब ये पूरी तरह से सफल रही तो उसके बारे में कुछ जानकारियां सामने आईं। इस मिसाइल का नाम ज्वाइंट एयर-टू-सरफेस स्टैंडऑफ मिसाइल- एक्सटेंडेड रेंज (JASSM-ER) है, जिसे दुनिया की सबसे हाईटेक मिसाइलों में से एक माना जा रहा।
B-2 से दागी गई
रिपोर्ट में आगे बताया गया कि JASSM-ER को बमवर्षक B-2 स्टेल्थ बॉम्बर से दागा गया। जिसने अपने लक्ष्य को सफलता पूर्वक भेद दिया। वैसे ये मिसाइल काफी वक्त से अमेरिका के पास है, लेकिन जो नया परीक्षण हुआ उसमें इसकी रेंज बढ़ गई है। ऐसे में चीन जैसे कई देश परेशान हैं।
कितनी है रेंज?
वहीं इस मिसाइल को अमेरिकी कंपनी नॉर्थोप ग्रुमन ने तैयार किया है। वैसे एक साधारण JASSM मिसाइल की रेंज 370 किलोमीटर होती है, लेकिन इस वाली मिसाइल की रेंज 800-1000 किलोमीटर बताई जा रही है। हालांकि अभी तक कंपनी और अमेरिकी वायुसेना ने इस बारे में कुछ भी नहीं कहा है।
सीरिया में हुआ था इस्तेमाल
कंपनी ने बताया कि JASSM-ER का वजन 1021 किलो है, जो अपने साथ 450 किलो का पेलोड लेकर जा सकती है। इसमें हाईटेक उपकरण लगे हैं, जो अपने आप दुश्मन को खोजकर उसे तबाह कर देते हैं, बस इसे एक अच्छे विमान से दागने की जरूरत है। अमेरिका ने सीरिया के खिलाफ हुए युद्ध में इस मिसाइल के कई वर्जन का प्रयोग किया था।
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चीनी विशेषज्ञ ने कही ये बात
वहीं चीन इस मिसाइल सिस्टम को लेकर काफी परेशान है, लेकिन अभी तक उसकी ओर से कुछ भी नहीं कहा गया। हालांकि इस पर एक रिटायर चीनी रक्षा विशेषज्ञ की प्रतिक्रिया सामने आई है। मामले में PLA वायुसेना के उपकरण विशेषज्ञ पू कियानशाओ ने कहा कि JASSM-ER की रेंज 1000 किमी के आसपास है, जो पीएलए युद्धपोतों के लिए खतरा हो सकता है। पीएलए को विमानों को चेतावनी देने के लिए पश्चिमी प्रशांत महासागर में आगे बढ़ने की आवश्यकता होगी।