UNGA: नरेंद्र मोदी की रणनीति क्या थी और इमरान ख़ान कितने प्रभावी रहे?
भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें अधिवेशन को संबोधित किया. इन दोनों के संबोधन का इंतज़ार न सिर्फ़ भारत और पाकिस्तान, बल्कि दुनिया के अन्य देशों के लोग और विश्लेषक भी कर रहे थे. भारतीय प्रधानमंत्री ने एक ओर जहां पाकिस्तान का नाम लिए बिना विश्व शांति और चरमपंथ की समस्या पर
भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें अधिवेशन को संबोधित किया. इन दोनों के संबोधन का इंतज़ार न सिर्फ़ भारत और पाकिस्तान, बल्कि दुनिया के अन्य देशों के लोग और विश्लेषक भी कर रहे थे.
भारतीय प्रधानमंत्री ने एक ओर जहां पाकिस्तान का नाम लिए बिना विश्व शांति और चरमपंथ की समस्या पर अपनी बात रखी और दुनिया के सामने देश की उपलब्धियां गिनाईं तो दूसरी तरफ़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को घेरा.
इमरान ख़ान ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर का मुद्दा उठाया और दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति में होने वाले अंतरराष्ट्रीय नुक़सान से भी दुनिया भर के देशों को चेताया.
आख़िर नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान की चर्चा न कर अंतरराष्ट्रीय विषयों और देश की उपलब्धियों पर बात क्यों की?
इमरान ख़ान ने सीधा इसके उलट किया और उन्होंने देश के मुद्दों पर बात न करके कश्मीर पर बात क्यों की?
दोनों नेताओं के भाषणों के मायने समझने के लिए बीबीसी ने अमरीका स्थित डेलावेयर विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर मुक्तदर ख़ान और पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हारून रशीद से बात की. पढ़िए उनका नज़रिया
मोदी के भाषण पर प्रोफ़ेसर मुक्तदर ख़ान का नज़रिया
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन-चार महत्वपूर्ण बातें कीं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि उन्होंने दुनिया को याद दिलाया कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. क्योंकि हालिया चुनाव में उनको और उनकी पार्टी को विशाल जनसमर्थन प्राप्त हुआ है, वो एक तरह से इशारा कर रहे हैं कि वो दुनिया के सबसे बड़े निर्वाचित नेता हैं.
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अब भारत दुनिया को रास्ता दिखाना चाहता है कि ग़रीबी कैसे हटाई जाए और जलवायु परिवर्तन को कैसे रोका जाए.
उन्होंने सरकारी की कुछ नीतियों की तरफ़ इशारा करते हुए कि भारत बेहतर कर रहा है. लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर भारत के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो कुछ भी कहा जा रहा है, उस पर उन्होंने कुछ नहीं कहा.
कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद जो भी प्रतिबंध लगाए गए हैं, उसे लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ नहीं कहा है. भारत के ख़िलाफ़ उठते सवालों पर उन्होंने दुनिया को कोई तसल्ली नहीं दी.
उन्होंने विश्व शांति, बंधुत्व और चरमपंथ के ख़िलाफ़ दुनिया के देशों को एक साथ आने की बात कही लेकिन उनकी ही पार्टी से जुड़े लोग देश की अल्पसंख्यक आबादी के साथ जो व्यवहार कर रहे हैं, उस पर उन्होंने कुछ नहीं कहा.
अगर दुनिया को शांति और बंधुत्व का सबक सिखाना है तो सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि वो ख़ुद अपने ही मुल्क में इन नीतियों को लागू करें कि सभी समुदायों के बीच बंधुत्व कैसे लाया जाए.
सुस्त पड़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ नहीं कहा. उन्होंने कोई इशारा नहीं किया कि वो इसे सुधारने के लिए क्या नीतियां लेकर आएंगे. पिछले कुछ समय में निवेश भी घटे हैं, इससे न सिर्फ़ भारतीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी चिंतित हैं.
उनके लिए यह एक अच्छा मौका था कि वो दुनिया को विश्वास दिलाते कि अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आएगी.
संयुक्त राष्ट्र महासभा में संजीदा बातें होती हैं. दुनिया फ्रांस, चीन और रूस के नेताओं की बात सुनना चाहती है.
ऐसे में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कोशिश तो ज़रूर की वैश्विक मुद्दों पर बात की जाए लेकिन शुरुआत के भाषण में ऐसा लग रहा था कि वो अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की नकल कर रहे थे.
वो अपनी ही तारीफ़ कर रहे हैं. चुनावों में मिले विशाल जनसमर्थन की बात कर रहे थे और इतना ही नहीं अपनी सफलताओं को भी गिनाया.
मुझे ऐसा लग रहा था कि वो अपने निर्वाचन क्षेत्र को संबोधित कर रहे थे. नरेंद्र मोदी के पास एक बेहतरीन मौका था कि वो भारत को फिर से एक वैश्विक अगुआ की तरह पेश करें, इसमें वो कामयाब नहीं हो पाए.
इमरान ख़ान के भाषण पर वरिष्ठ पत्रकार हारून रशीद का नज़रिया
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में तीन-चार मुद्दों पर बात की लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर उन्होंने ज़्यादा जोर दिया.
उन्होंने अपने भाषण में कश्मीर पर वही सारी बातें की, जो पहले से करते आए हैं. लेकिन इस बार फ़र्क बस इतना था कि मंच अंतरराष्ट्रीय था और दुनिया उस मंच को संजीदगी से लेती है.
उन्होंने दुनिया को यह बताया कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बनती हैं तो इससे न सिर्फ़ दोनों देश बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित होगी. उन्होंने दुनिया के देशों को एक तरह से डराने की भी कोशिश की.
अब देखना यह होगा कि उनकी इन बातों का असर अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर कितना होता है या फिर संयुक्त राष्ट्र इस मामले में कोई कदम उठाता है या नहीं.
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इमरान ख़ान ने जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर बोला, उसकी प्रशंसा पूरे पाकिस्तान में हो रही है.
अब तक के घटनाक्रमों से ऐसा लग रहा है कि अमरीका दोनों देशों के इस मुद्दे पर असर डाल सकता है लेकिन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भारत को भी ख़ुश रखना चाह रहे हैं और पाकिस्तान को भी.
जब अमरीकी राष्ट्रपति का रवैया ऐसा है तो मुझे नहीं लगता है कि बाकी देश कोई ठोस कदम उठाएंगे भारत के ख़िलाफ.
नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से देश की उपलब्धियां अंतरराष्ट्रीय मंच पर गिनाई, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ऐसा नहीं किया. वो पाकिस्तान से जुड़े किसी भी मुद्दों पर बहुत बात नहीं की.
पाकिस्तान के लोग भी ऐसा ही चाह रहे थे कि वो कश्मीर, जलवायु परिवर्तन, इस्लामोफ़ोबिया जैसे मुद्दों पर बात करें और उन्होंने ऐसा ही किया, जिससे लोगों में खुशी है.