तुर्की में वोटिंग से ठीक पहले हिजाब पर विपक्ष का यूटर्न, अर्दोआन को हराने कमाल कलचदारलू का आखिरी दांव
तुर्की में रविवार को वोट डाले जाने हैं और ये मतदान उस वक्त हो रहा है, जब तुर्की गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, जिसके कारण मुद्रास्फीति में तेजी आई है और तुर्की में रहने की लागत काफी बढ़ गई है।
Turkey Election 2023 Hijab Politics: कुछ दशक पहले तक तुर्की की महिलाओं के लिए सार्वजनिक जीवन में हिजाब पहनना या फिर मुस्लिम स्कार्फ पहनने की सोचना भी असंभव था।
लेकिन, दुनिया जैसे-जैसे आधुनिक होती जा रही है, तुर्की में हिजाब पर राजनीति तेज होती जा रही है। 1980 के दशक में तुर्की की महिलाएं हिजाब ना पहनें, इसके लिए सरकार की तरफ से कई सख्त कानून तक बनाए गये थे और जागरूकता अभियान चलाए जाते थे।
सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए हिजाब पहनने पर पाबंदी लगा दी थी। विश्वविद्यालय के कर्मचारी, छात्र, वकील, राजनेता और सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य लोगों के लिए हिजाब पहनना प्रतिबंधित था।
1997 में एक सैन्य तख्तापलट के बाद जब देश की इस्लामवादी सरकार का तख्तापलट कर दिया गया, तो सैन्य शासकों ने देश में हिबाज और स्कार्फ पहनने पर पूर्ण पाबंदी लगा दी। ये प्रतिबंध कई सालों तक चला, लेकिन साल 2013 में गवर्निंग जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (एके पार्टी) ने हिबाज पहनने से प्रतिबंध हटा दिया। इस सरकार का नेतृत्व कर रहे थे, राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन, जो उस समय देश के प्रधानमंत्री थे।
तुर्की की राजनीति में जिस मजहब को दूर रखा गया था, 2013 में रेचेप तैय्यप अर्दोआन उसे लेकर आ गये और उसके बाद से हिबाज पर देश में नये सिरे से राजनीति शुरू हो गई।
इस बार के चुनाव में हिजाब की एंट्री
तुर्की में 14 मई को वोट डाले जाने हैं और उससे पहले राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों में अर्दोआन और एके पार्टी को चुनौती देने वाली मुख्य प्रतिद्वंद्वी रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी (सीएचपी) ने हिबाज पर पहली बार नरम रूख के संकेत दे दिए हैं।
इस पार्टी ने लगातार हिबाज के खिलाफ आवाज उठाया है, लेकिन पहली बार इस पार्टी ने अपने कट्टर धर्मनिरपेक्ष रूख में थोड़ा परिवर्तन लाया है और हिजाब पर अपने पुराने विरोध को उलट दिया है। रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी (सीएचपी) ने अपने बयान में कहा है, कि अगर देश में उसकी सरकार बनती है, तो महिलाओं को हिजाब पहनने के उनके अधिकार की रक्षा की जाएगी। यानि, साफ हो गया है, कि अगर राष्ट्रपति अर्दोआन चुनाव हारते भी हैं, फिर भी तुर्की में हिजाब पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा।
रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी के चुनावी भाषण में, रैलियों में और चुनावी पोस्टरों पर और यहां तक कि इसके राजनेताओं के बीच भी हिबाज पहने महिलाओं को देखा जा सकता है।
तुर्की की राजनीति पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स का कहना है, कि रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी सालों से सत्ता से दूर है, लिहाजा उसने रूढ़िवादी और धार्मिक समाज के बड़े हिस्से में खुद की पहुंच बनाने के लिए और मजहबी समाज से वोट हासिल करने के लिए हिबाज से अपने सख्त रूख को हटा लिया है।
अलजजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हिजाब पहनने वाली एक ब्यूटी सैलून कार्यकर्ता एसिन ने इस्तांबुल के काराकोय जिले में अपने दोस्त के साथ टहलने के दौरान बताया, कि "सीएचपी धार्मिक स्वतंत्रता पर नरम हो गया है। वे आज इस तरह के प्रतिबंध का समर्थन करने की हिम्मत नहीं करेंगे। लोग अपने अधिकारों के बारे में ज्यादा शिक्षित और जागरूक हैं।"
41 साल की एसिन उन महिलाओं में से हैं, जिन्होंने हिबाज बैन के बाद यूनिवर्सिटी छोड़ दिया था। उन्होंने कहा, कि उन्होंने अर्दोआन की एके पार्टी को इसलिए वोट देना शुरू किया, क्योंकि वो हिबाज का समर्थन करती है।
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हालांकि, अब जब विपक्षी पार्टी भी हिबाज पर नरम हो चुकी है, तो अब एसिन तय नहीं कर पा रही है, कि रविवार को होने वाले चुनाव में वो किसे वोट करे। क्या वो आर्थिक संकट के लिए जिम्मेदार अर्दोआन को वोट करे, या फिर विपक्षी पार्टियों के गठबंधन को सपोर्ट करे, फिलहाल वो तय नहीं कर पाई है।
अलजजीरा के मुताबिक, एसिन ने कहा, कि "अर्दोआन की पार्टी ने हिजाब को एक वोटिंग मशीन की तरह इस्तेमाल किया है और वो वोट पाने के लिए किसी भी हद तक मजहबी राजनीति में आगे जा सकते है।"
वहीं, 50 साल की रिटायर्ड महिला और सामाजिक सेवा अधिकारी सेवगी, जो हेडस्कार्फ पहनती हैं, उन्होंने कहा कि अब वो अर्दोआन को सत्ता से हटाने के लिए निपक्षी गठबंधन को वोट देने से नहीं डरेंगी और वो विपक्षी पार्टी को वोट डालने की योजना बना रही हैं।
यानि, तुर्की की राजनीति में हिबाज अब परमानेंट राजनीति मुद्दा बन गया है, लेकिन कई लोगों का मानना है, कि 2000 के दशक में हिबाज पर बात करना एक समस्या थी, लेकिन तुर्की के लोग अब खुद भी आधुनिक हो रहे हैं और वो अब हिबाज जैसे मुद्दों पर वोटों का बंटवारा नहीं होने देंगे।
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