अमेरिका, चीन और भारत ने हथियारों पर पानी की तरह बहाए डॉलर, दुनिया में टूटा सैन्य खर्च का रिकॉर्ड
रूस ने साल 2014 में यूक्रेन पर पहली बार हमला किया था और उस वक्त रूस ने क्रीमिया क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था और उसके बाद से ही यूरोपीये देशों ने सैन्य खर्च में इजाफा करना शुरू कर दिया था...
नई दिल्ली, अप्रैल 25: यूक्रेन और रूस के बीच पूरी दुनिया में हथियारों की खरीद-बिक्री ने सारे रिकॉर्ड्स तोड़ दिए हैं और पहली बार वैश्विक सैन्य खर्च प्रति वर्ष 2 ट्रिलियन डॉलर को पार कर गया है। वहीं, देखने को ये मिला है, कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद पहली बार यूरोपीय देशों ने सैन्य खर्च को बढ़ाने का फैसला किया है।
SIPRI रिपोर्ट में खुलासा
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानि SIPRI ने सोमवार को वैश्विक सैन्य खर्च को लेकर रिपोर्ट जारी का है, जिसमें चौंकाने वाले आंकड़े हैं। एसआईपीआरआई रिपोर्ट में कहा गया है कि, साल 2021 में दुनियाभर के देशों ने अपनी सेनाओं पर कुल 2,113 अरब डॉलर खर्च किए हैं, जो वास्तविक रूप से एक साल पहले की तुलना में 0.7% ज्यादा है। SIPRI के आंकड़ों के अनुसार, साल 2011 और 2014 के बीच सैन्य खर्च में गिरावट आई थी, लेकिन ये गिरावट काफी कम समय के लिए ही रही और उसके बाद एक बार फिर से दुनियाभर के देशों ने हथियारों की खरीददारी पर खर्च करने के लिए खजाने खोल दिए। इतना ही नहीं, यूक्रेन युद्ध के बाद दुनियाभर के देश अपनी सैन्य खर्च में भारी इजाफा करने वाले हैं।
यूरोप में बढ़ेगा सैन्य खर्च
SIPRI के सैन्य खर्च और हथियार उत्पादन कार्यक्रम के निदेशक लूसी बेरौद-सुद्रेउ ने एक हिंदुस्तान टाइम्स से टेलीफोन पर दिए गये इंटरव्यू में कहा कि, 'यूरोप पहले से ही एक बढ़ती सैन्य खर्च प्रवृत्ति की तरप था, लेकिन, यूक्रेन युद्ध के बाद सैन्य खर्च की प्रवृति में काफी ज्यादा इजाफा आएगी'। उन्होंने कहा कि, 'आमतौर पर परिवर्तन धीरे-धीरे होता है, जब तक आप संकट में नहीं होते हैं, और तब परिवर्तन वास्तव में होता है। मुझे लगता है कि अब हम उस स्थिति में पहुंच चुके हैं'।
क्रीमिया युद्ध से पड़ा असर
रूस ने साल 2014 में यूक्रेन पर पहली बार हमला किया था और उस वक्त रूस ने क्रीमिया क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था और उसके बाद से ही यूरोपीये देशों ने सैन्य खर्च में इजाफा करना शुरू कर दिया था और वैश्विक सैन्य खर्च में उस वक्त तेज इजाफा होना शुरू हुआ, जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाटो सहयोगियों पर सैन्य खर्च, हथियारों की खरीद बढ़ाने के लिए प्रेशर बनाना शुरू कर दिया था। डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति रहते हुए सार्वजनिक तौर पर कहा था, कि नाटो गठबंधन में शामिल सभी देशों को हथियार खरीदने की जरूरत है और अभी तक सिर्फ अमेरिका ही सबसे ज्यादा खर्च करता आ रहा है। जिसका असर ये हुआ कि, साल 2021 में पूरी दुनिया में यूरोपीय सैन्य खर्च बढ़कर 20 प्रतिशत हो गया, जबकि दुनिया के मुकाबले चीन का रक्षा बजट बढ़कर 14 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है।
अमेरिका सबसे ज्यादा खर्च करने वाला देश
SIPRI के अनुसार, साल 2021 में सशस्त्र बलों को आवंटित 801 अरब डॉलर के साथ, पूरी दुनिया में अमेरिका अब तक का सबसे बड़ा खर्च करने वाला देश बना हुआ है। जबकि, पिछले दशक में वैश्विक सैन्य व्यय का 38 प्रतिशत सिर्फ अमेरिका ने ही किया था। एसआईपीआरआई के शोधकर्ता एलेक्जेंड्रा मार्कस्टीनर के अनुसार, भले ही दुनियाभर के देशों ने हथियारों की खरीद को कम कर दिया है, लेकिन एक नया ट्रेंड देखने को ये मिल रहा है, कि अब दुनियाभर के कई देशों ने हथियारों के रिसर्च पर में पैसा निवेश करना बढ़ा दिया है। जिससे पता चलता है कि, अमेरिका अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है।
भारत का सैन्य खर्च
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) ने कहा कि भारत अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला देश बना हुआ है। सिपरी द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार शीर्ष पांच सैन्य खर्च करने वाले देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका पहले नंबर पर, चीन दूसरे नंबर पर, भारत तीसरे नंबर पर, यूनाइटेड किंगडम चौथे और रूस पांचवे नंबर पर है और ये पांचों देश मिलकर वैश्विक सैन्य खर्च का 62 प्रतिशत खर्च करते हैं। SIPRI ने कहा कि भारत का सैन्य खर्च साल 2021 में 76.6 अरब डॉलर है, जो साल 2020 के मुकाबरे 0.9 प्रतिशत ज्यादा है और 2012 के मुकाबले 33 प्रतिशत बढ़ा है। सिपरी ने कहा है है कि, 'चीन और पाकिस्तान के साथ चल रहे तनाव और सीमा विवादों के बीच भारत ने सेना की आधुनिकीकरण पर प्राथमिकता बढ़ाई है और भारत ने हथियारों का प्रोडक्शन बढ़ा है।
चीन, ब्रिटेन, अमेरिका सैन्य खर्च
अमेरिका ने वैश्विक सैन्य खर्च का 38 प्रतिशत और चीन ने लगभग 14 प्रतिशत का योगदान दिया है। जबकि ब्रिटेन ने 2021 में 68.4 बिलियन डॉलर खर्च करते हुए अपना स्थान दो रैंक बढ़ाया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन का सैन्य खर्च लगातार 27 वें वर्ष बढ़ा है। वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ नान तियान ने एसआईपीआरआई द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकडज़ों पर कहा कि, "दक्षिण और पूर्वी चीन समुद्र में और उसके आसपास चीन की बढ़ती मुखरता ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों को सैन्य खर्च बढ़ाने के लिए मजबूर किया है'।
रूस ने भी बढ़ाया सैन्य खर्च
इसी तरह रूस ने भी लगातार तीसरे साल अपने सैन्य खर्च में बढ़ोतरी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, साल 2016 से 2019 के बीच में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद अपने सैन्य खर्च को बढ़ाया है। 2014 में यूक्रेन पर हमला करने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ कई प्रतिबंध लगाए थे, बावजूद इसके रूस ने अपने सैन्य खर्च में कटौती नहीं की। हालांकि, साल 2021 में रूस का सैन्य खर्च कम जरूर हुआ, लेकिन ये अभी भी 5.6 अरब डॉलर था, जो रूस की कुल जीडीपी का 3.2 प्रतिशत हिस्सा है।