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दुनिया के 30 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी, घर-बार सब खतरे में

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बेंगलुरु। जब-जब समुद्र में सूनामी की चेतावनी जारी होती है, तब-तब तटीय इलाकों में सुरक्षा बलों को अलर्ट कर दिया जाता है। ताकि सूनामी के आने पर किसी की जान नहीं जाये। अचानक आने वाले खतरे के लिये सरकारें तुरंत पूरी फुर्ती से आगे आ जाती हैं, लेकिन उस खतरे का क्या जो धीरे-धीरे घर कर रहा है। जी हां खतरा है तटीय इलाकों में बाढ़ का, जो समुद्र जलस्‍तर के बढ़ने की वजह से पैदा हो रहा है। ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 30 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी, घर पर ऐसा ही खतरा मंडरा रहा है। इनमें 79 प्रतिशत लोग भारत, चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया और थाईलैंड में रहते हैं। और तो और इन लोगों के बचाव के कोई पुख्‍ता प्रबंध नहीं हैं।

Coastal area

जैसा कि हम सब जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। हाल ही में आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार ग्लेशियर्स के पिघलने की रफ्तार तीन गुना बढ़ गई है। ऐसे में 2050 तक समुद्र के स्तर में वृद्धि की वजह से तटीय इलाकों में बाढ़ आने की घटनाओं में तेज़ी से बढ़ौत्तरी होगी। पूरी दुनिया से प्राप्‍त आंकड़ों पर नज़र डालें तो 300 मिलियन लोग यानी तीस करोड़ लोग उन तटीय इलाकों में रहते हैं, जहां बाढ़ का सबसे अधिक खतरा है। सूनामी तो दूर की बात है, इन जगहों को तबाह करने के लिये हाई टाइड ही काफी है।

Indian part on risk

भूगर्भशास्त्रियों की एक संस्‍था कोस्‍टलडीईएम एक नये डिजिटल उन्नयन मॉडल के जरिये तटीय इलाकों का अध्‍ययन कर रही है। शोधकर्ताओं ने अभी तक प्रमुख उन्नयन डेटासेट में होने वाली त्रुटियों को व्यवस्थित रूप से सही करने के लिए मशीन से ज्ञात होने वाले तरीकों का इस्तेमाल किया है, जिनका उपयोग तटीय क्षेत्रों में बाढ़ के जोखिमों के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यांकन के लिए अब तक किया जा रहा था। अब इस कार्य में नासा का शटल रडार टोपोग्राफी मिशन भी शामिल हो गया है।

29 अक्टूबर को प्रिंसंटन में रिलीज़ हुई रिपोर्ट को तैयार करन में क्लाइमेट सेंट्रल ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। रिपोर्ट के अनुसार 135 देश कई जलवायु परिदृश्यों का सामना वर्षों से कर रहे है। क्लाइमेट सेंट्रल ने नए उन्नयन डेटा में दुनिया भर के तटीय क्षेत्रों को नक्शे में दर्शाया है। साथ ही यह बताया है कि कौन से तटीय शहर सबसे अधिक जोखिम में हैं। अगर एशियाई देशों की बात करें तो चीन, बांग्लादेश, भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया और थाईलैंड ऐसे देश हैं, जहां के तटीय इलाकों में रहने वाली जनता सबसे अधिक जोखिम में है। रिपोर्ट के अनुसार तटीय इलाकों में रहने वाले लगभग 237 मिलियन लोगों का वहां पर तटीय बचाव का कोई प्रबंध नहीं है, इन स्थानों में रहने वाले लोग 2050 तक तटीय बाढ़ यानि समुद्र जलस्तर बढ़ने से वहां के तटीय इलाके डूब जायेंगे, का अनुभव कर सकते है, ये घटनाएं पुराने उन्नयन डेटा के आधार से प्रतिवर्ष चौगुने स्तर से अधिक होंगी।

एशियाई देशों में जोखिम और बढ़ेगा

रिपोर्ट में प्राप्‍त आंकड़ों के आधार पर पाया गया है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में मध्यम या औसत दर्जे की कमी होने के बावजूद छह एशियाई देशों के क्षेत्रों में रहने वाले 237 मिलियन लोग वार्षिक तटीय बाढ़ यानि तटीय इलाकों के डूबने की संभावना 2050 तक बहुत ज़्यादा है। इरमें चीन में 9.3 करोड़, बांग्लादेश में 4.2 करोड़, भारत में 3.6 करोड़, वियतनाम में 3.1 करोड़, इंडोनेशिया में 2.3 करोड़ और थाईलैंड में 1.2 करोड़ लोगों का जीवन खतरे में है।

Eastern Asia

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

क्लाइमेट सेंट्रल के सीनियर साइंटिस्ट डा. स्कॉट कल्प का कहना है कि जैसे-जैसे टाइड लाइन जमीन से ऊंची होती जाएगी वैसे-वैसे, तटीय इलाकों में रहने वाले लोग, वहां बने घर और वे सभी देश जो खतरे का सामना कर रहे हैं, इस सवाल का सामना करेंगे कि क्या, कितना, और कब तक उपस्थित तटीय बचाव उनकी रक्षा कर सकता है।

क्लाइमेट सेंट्रल के शोध में सामने आई अरक्षितता आज भी उजागर होती है, जैसे समुद्री दीवार, तटबंधन(पुश्ता) और अन्य तटीय बचावों से 110 मिलियन लोगों को उच्च ज्वार रेखा के नीचे की जमीन पर रहने की अनुमति मिलती है। अधययन में डेटा की कमी के कारण बचाव का वर्तमान या संभावित भविष्य के प्रभाव का कोई हिसाब नहीं था।

क्लाइमेट सेंट्रल के सीईओ एवं मुख्‍य वैज्ञानिक डा. बेंजमिन स्‍ट्रॉस का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और समुद्र स्तर के अनुमानों पर किए गए सभी महत्वपूर्ण शोधों से यह पता चला है कि अधिकांश वैश्विक तट के लिए हमें अपने पैर के नीचे की जमीन की ऊंचाई का ही ठीक से पता नहीं है। हमारा डेटा तस्वीर को थोड़ा और बेहतर तो बनाता है, लेकिन अभी भी सरकारों और एयरोस्पेस कंपनियों की तरफ से बहुत ज़रूरी है कि इस डाटा को और अधिक सटीक बनाया जाये क्योंकि हमारा जीवन और आजीविका इस पर पूरी तरह निर्भर है।

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English summary
Latest research done by Climat Sentral, finds hundreds of millions more people live on land are at risk from coastal flooding linked to climate change. Largest vulnerable populations concentrated in Asia.
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