तेल के बाजार में भारत ने सऊदी अरब की बादशाहत को तोड़ा, पुतिन और प्रिंस सलमान आमने-सामने!
भारत में तेल सप्लाई को लेकर रूस और सऊदी अरब आमने-सामने आ गये हैं और पिछले साल तक जो सऊदी अरब भारत का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश था, उसे रूस ने पीछे छोड़ दिया है।
नई दिल्ली, अगस्त 05: तेल के बाजार पर अधिपत्य जमा कर रखने वाले मुस्लिम देशों की बादशाहत को पहली बार भारत ने चकनाचूर कर दिया है और भारत को दोस्त रूस के तौर पर एक ऐसा ऑप्शन मिल गया है, जिसकी वजह से मुस्लिम देश भारत को 'ब्लैकमेल' करने से पहले सौ बार सोचेंगे। ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत ने अपने प्रमुख तेल सहयोगी देश सऊदी अरब से तेल का आयात काफी कम कर दिया है और जिस रूस से भारत सबसे कम तेल खरीद रहा था, वो दूसरे नंबर पर आ गया है।
भारत ने सऊदी को रूस से किया रिप्लेस
भारत में तेल सप्लाई को लेकर रूस और सऊदी अरब आमने-सामने आ गये हैं और पिछले साल तक जो सऊदी अरब भारत का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश था, उसे रूस ने पीछे छोड़ दिया है, जो सऊदी अरब के लिए बहुत बड़ा झटका है। एक साल पहले इसी सऊदी अरब ने बार बार भारत के कहने पर भी तेल का प्रोडक्शन नहीं बढ़ाया था, जिससे भारत में तेल की कीमतें काफी ज्यादा बढ़ गईं थीं, लेकिन एक साल में ही समय का पहिया पलट गया है और भारत ने अब सऊदी अरब से तेल खरीदना काफी कम कर दिया है और उसकी जगह पर रूस से काफी कम कीमत पर तेल खरीद रहा है।
अब इराक के बाद रूस का स्थान
ब्लूमबर्ग ने भारत सरकार के आंकड़ों के आधार पर जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके मुताबिक, इस साल अप्रैल महीने से जून के बीच रूस ने काफी कम कीमत पर भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति की है और रूस ने जिस कीमत पर भारत को तेल बेचा है, वो सऊदी अरब के मुकाबले काफी कम है। रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब की कीमत और रूस की कीमत में 19 डॉलर प्रति बैरल का अंतर है। लिहाजा भारत ने रूस से तेल की सप्लाई काफी ज्यादा बढ़ा दी है और सऊदी अरब से तेल की सुप्लाई कम कर दी है। लिहाजा, नौवें नंबर पर रहने वाला रूस अब दूसरे नंबर पर आ गया है, जबकि इराक अभी भी पहले नंबर पर बना हुआ है।
चीन भी बना सबसे बड़ा उपभोक्ता
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि चीन भी अब रूस से तेल खरीदने वाला सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गया है और इस्लामिक देशों के वर्चस्व वाले ओपेक प्लस के लिए भारत और चीन का कच्चे तेल की खरीद कम करना काफी बड़ा झटका माना जा रहा है। वहीं, पश्चिमी देशों ने रूस से तेल खरीदना काफी कम कर दिया है, लिहाजा रूस भी जी-भरकर भारत और चीन को कच्चे तेल की सप्लाई कर रहा है। आपको बता दें कि, भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी तेल दूसरे देशों से आयात करता है और अब भारत के साथ साथ चीन ने भी रूस से काफी तेल खरीदना शुरू कर दिया है, जिसकी वजह से एक तरफ जहां पश्चिमी देशों और अमेरिका में तेल की कीमत काफी ज्यादा है, वहीं भारत और चीन ने तेल की कीमतों को काफी हद तक कंट्रोल रखने में कामयाबी हासिल की है।
कितना हो गया भारत का तेल बिल
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वैश्विक कीमतों में उछाल के साथ-साथ ईंधन की मांग में बढ़ोतरी के बाद दूसरी तिमाही में भारत का कच्चे तेल का आयात बिल बढ़कर 47.5 अरब डॉलर हो गया है। इसकी तुलना पिछले साल की समान अवधि में 25.1 बिलियन डॉलर का ही तेल आयात किया गया था, जब कीमतें और वॉल्यूम कम थे। तेल हाल ही में आर्थिक मंदी की चिंताओं को और भी ज्यादा बढ़ा रहा है, लेकिन चूंकी रूस भारत को कम कीमत पर तेल सप्लाई कर रहा है, लिहाजा भारतीय उपभोक्ताओं को बड़ी राहत मिली हुई है। सिंगापुर में वांडा इनसाइट्स की संस्थापक वंदना हरि ने कहा कि, "भारतीय रिफाइनर सबसे सस्ते क्रूड पर हाथ आजमाने जा रहे हैं, जो उनकी रिफाइनरी और उत्पाद कॉन्फ़िगरेशन के साथ काम करता है।" उन्होंने कहा कि, "रूसी क्रूड ऑयल अभी के लिए उस बिल में फिट बैठता है'। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि, सऊदी अरब ने नुकसान से बचने के लिए अब यूरोपीय देशों को तेल आपूर्ति बढ़ाने का फैसला किया है।
छूट कम करने के बाद भी बड़ा फायदा
हालांकि, रूस ने जून महीने के बाद से तेल पर डिस्कॉउंट को कम कर दिया है, बावजूद इसके सऊदी अरब की तुलना में 13 डॉलर सस्ता पड़ रहा है। भारत अभी करीब 102 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से रूसी तेल खरीदता है। इसके अलावा भारत ने भविष्य को ध्यान में रखते हुए तेल को स्टोर करना भी शुरू कर दिया है और यही वजह है, कि पिछले साल के मुकाबले भारत का तेल आयात बिल काफी ज्यादा बढ़ गया है। दरअसल, कई आर्थिक विशेषज्ञ और ग्लोबल एजेंसियां आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी कर रहे हैं और ऐसी स्थिति में भारत सरकार ने इसके खराब प्रभाव से देश को बचाने के लिए तेल स्टोर किया है और रूस भारत का ऐसे मौके पर बड़ा मददगार बना है।
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