यूक्रेन का अंजाम देखकर क्वांटम हथियार बनाने की रेस शुरू, क्या भारत को भी बनाना चाहिए ये ब्रह्मास्त्र?
इस वक्त रूस, भारत, जापान, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया ने महत्वपूर्ण क्वांटम अनुसंधान और विकास कार्यक्रम स्थापित किए हैं। लेकिन चीन और अमेरिका के पास नई क्वांटम रेस में भारी बढ़त हासिल हो चुकी है।
नई दिल्ली, मार्च 30: यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद पूरी दुनिया में कुछ संदेश साफ तौर पर जा चुके हैं, कि युद्ध होने की स्थिति में आपका मददगार कोई नहीं है। युद्ध की स्थिति में अगर आप कमजोर पड़ते हैं, तो दुश्मन आपकी गर्दन तोड़ने में पल भर भी देर नहीं करेंगे और सबसे बड़ा मैसेज... कि युद्ध की स्थिति में अगर कोई आपको बचा सकता है, तो वो आप 'खुद' हैं, यानि आपकी ताकत है और यूक्रेन युद्ध के बाद दुनियान में एक नये तरह की हथियार बनाने की रेस शुरू हो चुकी है, और उस हथियार का नाम है, 'क्वांटम हथियार'। ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं, कि क्या भारत को भी फौरन इस हथियार टेक्नोलॉजी पर काम शुरू कर देना चाहिए?
क्या है क्वांटम तकनीक
क्वांटम टेक्नोलॉजी फिजिक्स का वो हिस्सा है, जिसपर पिछले 30 सालों से वैज्ञानिक काफी तेजी से काम कर रहे हैं और अमेरिका और चीन खास तौर पर अरबों रुपये इस टेक्नोलॉजी पर खर्च कर रहे हैं। हाल के दिनों में पता चला है, कि अमेरिका और चीन क्वांटम रडार, क्वांटम एटेना बनाने के लिए तेजी से कार्यक्रम चला रहे हैं। मोटामोटी तौर पर अगर क्वांटम टेक्नोलॉजी को समझें, तो ‘क्वांटम टेक्नोलॉजी सूचनाओं की प्रोसेसिंग में क्रांतिकारी बदलाव लाने की दिशा में काम करती है'। दरअसल, ‘सभी इन्फॉर्मेशन बाइनरी सिस्टम में ही लिखी जाती हैं, यानि ‘शून्य और एक' के लैंग्वेज में। लेकिन, धीरे धीरे पता चला, कि जिन जगहों पर इन इन्फॉर्मेशन को रखा जाता है, वो जगह भी इनके इस्तेमाल को प्रभावित कर सकती है, यानि हम किसी इन्फॉर्मेशन को किसी कम्प्यूटर चिप में स्टोर कर सकते हैं, जैसा आजकल किया जाता है, लेकिन हम ‘ज़ीरो और वन' को कम्प्यूटर चिप के अलावा किसी बेहद सूक्ष्म सिस्टम, जैसे अणु या परमाणु में भी स्टोर कर सकते हैं। ये अणु या परमाणु इतने छोटे होते हैं, कि इनके व्यवहार को कई और नियम भी प्रभावित कर सकते हैं। ये नियम अणु और परमाणु की प्रकृति को तय करते हैं और यही क्वांटम थ्योरी होता है और यही क्वांटम फिजिक्स की दुनिया के मोटामोटी नियम हैं।'
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रक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी टेक्नोलॉजी
क्वांटम क्रांति की कॉमर्शियल और वैज्ञानिक क्षमता विशाल है, लेकिन, अब राष्ट्रीय सुरक्षा को अभेद्य बनाने के लिए भी चुनिंदा देश क्वांटम टेक्नोलॉजी पर तेजी से काम कर रहे हैं। खासकर यूक्रेन युद्ध के बाद क्वांटम हथियार बनाने की रेस शुरू हो चुकी है। खासकर अमेरिका और चीन के बीच ये रेस काफी तेजी से शुरू हो चुकी है और कई विश्लेषकों का कहना है कि, चीन इस रेस में अमेरिका से कुछ कदम आगे निकल चुका है, लिहाजा भारत के लिए ये एक चिंता की बात है। साल 2016 में चीन ने क्वांटम सैटेलाइट लांच करने की घोषणा की थी और साल 2017 में चीन ने दावा किया था, कि वो एक ऐसा एनक्रिप्टेट कम्यूनिकेशन पाथ बनाने जा रहा है, जिसे दुनिया को कोई भी दूसरा देश नहीं पढ़ सकता है। इसके साथ ही चीन दुनिया का पहला क्वांटम कम्प्यूटर बनाने में भी कामयाब हो चुका है। हालांकि, ये कम्प्यूटर अभी सिर्फ रिसर्च के लिए ही बनाए गये हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि, चीन काफी तेजी से चीन की सुरक्षा में अभेद्य दीवार तैयार कर रहा है और अमेरिका की भी यही कोशिश है।
क्वांटम टेक्नोलॉजी से हथियार निर्माण
क्वांटम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर हथियार बनाने की क्षमता हासिल कर ली गई है और क्वांटम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अगर पूरी तरह से हथियार निर्माण, कम्युनिकेशन, कंप्यूटर प्रोग्राम, संवेदनशील रक्षा क्षेत्र में शुरू हो जाए, तो ये टेक्नोलॉजी पूरी दुनिया के शक्ति संतुलन को ही बदलकर रख देगी। लिहाजा, सामरिक विकास में क्वांटम टेक्नोलॉजी को लाने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए जा रहे हैं। क्वांटम टेक्नोलॉजी के तीन प्रमुख क्षेत्र में, कम्प्युटिंग, कम्युनिकेशन और सेंसिंग है। विशेष तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन में, इन तीनों को अब आर्थिक और सैन्य वर्चस्व के संघर्ष के महत्वपूर्ण भागों के रूप में देखा जाता है।
शुरू हो चुकी है क्वांटम रेस
क्वांटम टेक्नोलॉजी को विकसित करना काफी महंगा है और इस वक्त दुनिया के कुछ ही ऐसे देश हैं, जो इस टेक्नोलॉजी का खर्च उठा सकते हैं और जिनके बाद इस टेक्नोलॉजी के लिए सगठनात्मक क्षमता और तकनीकी जानकारी है। जिनमें एक भारत भी है। इस वक्त रूस, भारत, जापान, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया ने महत्वपूर्ण क्वांटम अनुसंधान और विकास कार्यक्रम स्थापित किए हैं। लेकिन चीन और अमेरिका के पास नई क्वांटम रेस में भारी बढ़त हासिल हो चुकी है। लिहाजा, ये रेस अब काफी गरम होती होती जा रही है। साल 2015 में अमेरिका क्वांटम टेक्नोलॉजी का सबसे बड़ा निवेशक था, जिसने 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर इस टेक्नोलॉजी के विकास पर खर्च किए थे। वहीं, साल 2021 में अमेरिका का बजट बढ़कर 2.1 अरब डॉलर हो गया था। वहीं, साल 2015 के आसपास चीन का बजट करीब 300 मिलियिन अमेरिकी डॉलर था, लेकिन साल 2021 में चीन ने क्वांटम टेक्नोलॉजी के लिए अपने बजट में बेतहाशा वृद्धि कर दी और चीन ने बजट बढ़ाकर 13 अरब डॉलर कर दिया। यानि, अमेरिका से कई गुना ज्यादा...। यानि, आसानी से समझा जा सकता है, कि चीन क्वांटम टेक्नोलॉजी को लेकर कितना सीरियस है।
चीन और अमेरिका के बीच ‘टक्कर’
पिछले दिनों चीन और अमेरिका... दोनों ही देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने राष्ट्रपीय सुरक्षा उपकरण के रूप में क्वांटम टेक्नोलॉजी के महत्व पर जोर दिया है और अमेरिकी सरकार ने क्वांटम अनुसंधान का एक "तीन स्तंभ मॉडल" स्थापित किया है, जिसके तहत संघीय निवेश नागरिक, रक्षा और खुफिया एजेंसियों के बीच विभाजित है। वहीं, चीन में, क्वांटम सुरक्षा कार्यक्रमों की जानकारी काफी ज्यादा गुप्त है और चीन ने अभी तक अपनी क्षमता को किस हद तक बढ़ाया है, इसको लेकर काफी कम जानकारी है। लेकिन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को अपनी आर्मी साइंस इंस्टीट्यूट्स के साथ साथ अपनी सैन्य क्षमता को विकसित करने के लिए काफी ज्यादा निवेश के लिए जाना जाता है और चूकी चीन ने साल 2021 में क्वांटम टेक्नोलॉजी क्षेत्र में 13 अरब डॉलर निवेश किए हैं, लिहाजा कई एक्सपर्ट्स का मानना है, कि चीन किसी ऐसी टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है, जो अभी तक दुनिया के लिए अबूझ है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग
क्वांटम कंप्यूटिंग में प्रगति से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग में एक छलांग लगाया जा सकता है और अगर इसमें कामयाबी मिलती है, तो बेहद घातक हथियारों की प्रणाली को काफी ज्यादा सुधारा जा सकता है, जो इंसानों के बिना टारगेट पर हमला करने के लिए बनाए जा रहे हैं। जिसमें साइबर और खुफिया काम भी शामिल हैं। इसके साथ ही, इस टेक्नोलॉजी से जासूसी का काम भी काफी आसान हो जाएगा। बेहतर मशीन लर्निंग भी नागरिक और सैन्य बुनियादी ढांचे दोनों पर साइबर हमलों को अंजाम देने (और बचाव करने) में एक बड़ा लाभ प्रदान कर सकता है। सबसे शक्तिशाली वर्तमान क्वांटम कंप्यूटर (जहाँ तक हम जानते हैं) अमेरिकी कंपनी IBM द्वारा बनाया गया है, जो अमेरिकी रक्षा और खुफिया के साथ मिलकर काम करता है।
नई टेक्नलॉजी...नये सहयोग
अमेरिका नाटो जैसे मौजूदा गठबंधनों में क्वांटम सहयोग समझौतों को एकीकृत कर रहा है, साथ ही साथ ऑस्ट्रेलिया-यूके-यूएस AUKUS सुरक्षा संधि और ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान के बीच चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता ("क्वाड") जैसी हालिया रणनीतिक व्यवस्थाओं में भी अमेरिका शामिल है, लिहाजा इस बात की कुछ संभावनाएं हैं, कि आने वाले वक्त में अमेरिका क्वांटम टेक्नोलॉजी से जुछ कुछ जानकारी भारत को भी दे सकता है। वहीं, चीन पहले से ही क्वांटम टेक्नोलॉजी के कई क्षेत्रों में रूस के साथ काम कर रहा है, और यूक्रेन युद्ध के बाद जिस तरह से रूस को प्रतिबंधों में जकड़ा गया है, उसके बाद यही संभावना है, कि रूस और चीन काफी तेजी के साथ क्वांटम टेक्नोलॉजी में अपने सहयोग को आगे बढ़ा सकते है। अमेरिका और यूएसएसआर के बीच शीत युद्ध में, परमाणु हथियारों कों क्रांतिकारी माना गया था, लेकिन, क्वांटम टेक्नोलॉजी परमाणु युद्ध से भी आगे की चीज है और एक पल में दुश्मनों को घुटनों पर लाया जा सकता है, अगर दुश्मन के पास ये टेक्नोलॉजी नहीं है तो।
क्वांटम की दुनिया में भारत
भारत भी अपनी सीमित संसाधनों में क्वांटम टेक्नोलॉजी पर बिना किसी और देश के सहयोग से काम कर रहा है और भारत में इसरो के पास क्वांटम टेक्नोलॉजी डेवलप करने का काम है, जिसने पिछले साल क्वांटम टेक्नोलॉजी के जरिए एक जगह से दूसरे जगह तक मैसेज भेजने में कामयाबी हासिल की थी। भारत के लिए ये एक बहुत बड़ी सफलता है। पिछले साल मार्च महीने में मार्च महीने में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद यानि इसरो ने 300 मीटर की दूरी तक फ्री स्पेस क्वांटम कम्यूनिकेशन का कामयाब परीक्षण किया था। इसका मतलब ये है, कि इसरो ने प्रकाण कणों के जरिए एक जगह से दूसरी जगह तक मैसेज भेजने में कामयाबी हासिल कर ली है। यानि, अब एक जगह से दूसरी जगह तक प्रकाश कण फोटोंस के जरिए गुप्त संदेश भेजे जा सकते हैं और हैकर्स कितनी भी कोशिश क्यों ना कर लें, वो मैसेज को नहीं पढ़ सकते हैं। सबसे खास बात ये है कि, इसरो ने इस टेक्नोलॉजी को खुद से ही डिजाइन और निर्माण किया है। इसरो का ये टेक्नोलॉजी शुद्ध स्वदेशी है यानि इसे पूरी तरह से भारत में ही बनाया गया है।
चीन के साथ रेस में हम कहां?
पिछले साल ही पहले रिपोर्ट आई थी, कि चीन अब अंतरिक्ष में फ्री स्पेस क्वांटम कम्यूनिकेशन की टेक्नोलॉजी को विकसित करने जा रहा है। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीन ने इस नेटवर्क में सेना, बैंक, सरकार और बिजली विभाग के 2 हजार से ज्यादा अधिकारियों को इस नेटवर्क से जोड़ा था। चीन का ये संदेश सिर्फ नेटवर्क में मौजूद लोग ही पढ़ सकते थे। इसके साथ ही रिपोर्ट ये भी है कि 2030 तक चीन ऐसे ही सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में स्थापित करने की कोशिश में हैं और इसी कोशिश में इसरो भी लग गया है। लेकिन, चीन का डेवलपमेंट अज्ञात है, वहीं भारत सरकार के पास अभी भी बजट का भारी अभाव है, लेकिन अगर वक्त के साथ दुनिया में धाक जमानी है और खुद को शक्तिशाली बनाकर रखना होगा, तो भारत को भी अब इस नई रेस में शामिल होना होगा, नहीं तो आगे की दुनिया काफी अलग होने वाली है, जिसमें सारी लड़ाई सिर्फ और सिर्फ टेक्नोलॉजी की होगी।
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