नेपाल ने ऐन मौके पर दिया धोखा, भारत में होने वाले संयुक्त सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेने से किया इनकार
काठमांडू। नेपाल ने कूटनीति के मोर्चे पर एक बार फिर भारत की चिंता बढ़ा दी है। भारत में अगले हफ्ते होने वाले BIMSTEC (द बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्नीकल एंड इकनॉमिक कोऑपरेशन) देशों के सैन्य अभ्यास में नेपाल ने हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है।
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट में नेपाल के पीएम केपी ओली के हवाले से दावा किया गया है कि भारत में होने वाले BIMSTEC देशों के संयुक्त सैन्य अभ्यास को लेकर कई राजनीतिक दलों ने चिंता जाहिर की है। पीएम केपी ओली के प्रेस एडवाइजर कुंदन अरयाल ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा कि नेपाल 10 सितंबर से पुणे में शुरू होने जा रहे संयुक्त सैन्य अभ्यास में शामिल नहीं होगा। हालांकि, कुंदन अरयाल ने संयुक्त सैन्य अभ्यास में हिस्सा न लेने का कोई कारण नहीं बताया, पर उन्होंने इतना जरूर कहा कि संबंधित मंत्रालय की ओर से इस संबंध में जल्द बयान जारी किया जाएगा।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने बिगाड़ा सारा खेल
नेपाल के प्रतिष्ठित अखबार काठमांडू पोस्ट ने दावा किया है कि केपी ओली ने सैन्य अभ्यास में शामिल न होने का फैसला नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के दबाव के चलते लिया है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का झुकाव चीन की तरफ ज्यादा है। चीन और नेपाल ने हाल में चीन और नया ट्रांजिट प्रोटोकॉल साइन किया है। इसके तहत नेपाल को व्यापार के लिए चीन के सभी बंदरगाहों का प्रयोग करने की मंजूरी मिल सकती है। इस कदम से नेपाल को दूसरे देशों के साथ व्यापार के लिए भारतीय बंदरगाहों पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं होगी।
संयुक्त सैन्य अभ्यास में क्यों शामिल नहीं होना चाहता है नेपाल
नेपाल इस समय भारत और चीन के बीच वर्चस्व की लड़ाई के बीच फंसा है। नेपाल और भारत के सदियों पुराने रिश्तों के बीच में पिछले एक दशक में चीन आ गया है। जब नेपाल में लोकतंत्र बहाल हुआ और कम्युनिस्ट सत्ता में आए तभी से नेपाल की राजनीति में चीन का असर बढ़ गया है। नेपाल और भारत के बीच खुली सीमा है। दोनों के रिश्ते बेहद करीबी रहे हैं, लेकिन चीन लगातार नेपाल को अपने पाले में लाने के लिए चाल चल रहा है। वह काफी हद तक इसमें सफल भी रहा है। अगर नेपाल संयुक्त सैन्य अभ्यास में शामिल होता है तो चीन उससे नाराज हो सकता है। चीन इस समय नेपाल की काफी मदद कर रहा है, ऐसे में भारत-चीन दोनों के साथ नेपाल बैलेंस बनाने की कोशिश कर रहा है। यह भारत के लिए चिंता की बात है।
BIMSTEC की सबसे कमजोर कड़ी है नेपाल
'बिम्सटेक'
में
भारत
के
अलावा
बंगाल
की
खाड़ी
के
आसपास
के
देश
बंग्लादेश,
भूटान,
नेपाल,
श्रीलंका,
म्यांमार
और
थाईलैंड
शामिल
हैं।
'बिम्सटेक'
संगठन
का
भारत
की
विदेश
नीति
के
लिहाज
से
विशेष
महत्व
है।
यह
भारत
सरकार
की
नेबर
फर्स्ट
और
एक्ट-ईस्ट
पॉलिसी
के
लिहाज
से
बेहद
अहम
है।
आर्थिक
और
कूटनीतिक
दृष्टि
से
'बिम्सटेक'
भारत
के
लिए
बेहद
अहम
है।
हालांकि,
बहुत
से
लोग
यह
भी
सवाल
करते
हैं
कि
जब
साउथ
एशियन
एसोसिएशन
फॉर
रीजनल
कोऑपरेशन
(SAARC)
जैसा
क्षेत्रीय
संगठन
पहले
से
मौजूद
है
तो
'बिम्सटेक'
की
जरूरत
क्या
है?
दरअसल,
सार्क
में
पाकिस्तान
की
मौजूदगी
क्षेत्रीय
सहयोग
के
कार्य
में
बाधा
डाल
रही
है।
सार्क
में
अफगानिस्तान,
भूटान,
बांग्लादेश,
इंडिया,
मालदीव,
नेपाल,
पाकिस्तान
और
श्रीलंका
शामिल
हैं।
वहीं,
'बिम्सटेक'
में
भारत,
बांग्लादेश,
म्यांमार,
श्रीलंका,
भूटान,
थाईलैंड
और
नेपाल
शामिल
हैं।
लेकिन
नेपाल
के
रवैये
लग
रहा
है
कि
वह
चीन
के
प्रभाव
में
आकर
BIMSTEC
की
कमजोर
कड़ी
बनता
जा
रहा
है।
नेपाल
ने
पहले
भी
सार्क
में
चीन
को
शामिल
करने
की
कोशिशें
की
थीं,
लेकिन
भारत
के
प्रभाव
के
चलते
वह
ऐसा
नहीं
कर
सका।