मलेशिया: युवा देश ने क्यों चुना 92 साल का प्रधानमंत्री
राजनीति में संभावनाओं के दरवाजे कभी बंद नहीं होते. ये कहावत शायद ऐसे ही किसी लम्हे की वजह से वजूद में आई होगी. जब 92 साल का एक बुज़ुर्ग इतिहास की दहलीज से निकलकर दोबारा लोकतांत्रिक सत्ता व्यवस्था के शीर्ष पर पहुंच गया.
ये कहानी जिस मुल्क में लिखी गई उसका नाम है मलेशिया और तमाम अनुमानों को परे धकेलकर ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाले नेता हैं डा. महातिर मोहम्मद.
राजनीति में संभावनाओं के दरवाजे कभी बंद नहीं होते. ये कहावत शायद ऐसे ही किसी लम्हे की वजह से वजूद में आई होगी. जब 92 साल का एक बुज़ुर्ग इतिहास की दहलीज से निकलकर दोबारा लोकतांत्रिक सत्ता व्यवस्था के शीर्ष पर पहुंच गया.
ये कहानी जिस मुल्क में लिखी गई उसका नाम है मलेशिया और तमाम अनुमानों को परे धकेलकर ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाले नेता हैं डा. महातिर मोहम्मद.
1980 के दशक की शुरुआत से इक्कीसवीं सदी के पहले तीन साल तक मलेशिया के प्रधानमंत्री रहे डा. महातिर बरसों पहले राजनीति की घुमावदार गलियों को छोड़कर संन्यास की डगर पर बढ़ निकले थे.
नजीब का विकल्प महातिर
लेकिन महातिर लौटे और दुनिया के सबसे उम्रदराज निर्वाचित नेता बन गए. उन्हें तीन करोड़ दस लाख की आबादी वाले उस मुल्क ने प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंपी जहां युवा मतदाताओं की संख्या चालीस फीसदी से ज़्यादा है.
लेकिन 92 वर्ष के डा. महातिर पर भरोसे और उन्हें मिले जनसमर्थन की वजह क्या है?
इस सवाल का जवाब यूनिवर्सिटी ऑफ मलेशिया में एशिया पैसेफिक रिलेशन विभाग के सीनियर लेक्चरर राहुल मिश्रा देते हैं, "मलेशिया में महातिर की पार्टी पकतान हरापात की जीत और बरीसन नेशनल की हार अप्रत्याशित तौर पर हुई है. जीतने वाले गठबंधन को 47 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं और इसकी सिर्फ एक नहीं कई वजह हैं."
मलेशिया में बरीसन नेशनल गठबंधन ने लगातार 61 बरसों तक राज किया है. डा. महातिर भी इस पार्टी के नेता के तौर पर 22 साल तक प्रधानमंत्री रहे थे.
लेकिन इस बार वो पकतान हरापात यानी 'उम्मीदों के गठबंधन' की अगुवाई कर रहे थे. दक्षिण पूर्व एशिया की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार आसिफुल्लाह खान की राय है कि उनकी जीत पूर्व प्रधानमंत्री नजीब रज़ाक ने ही तय कर दी थी.
वो कहते हैं, "ये वोट महातिर के लिए नहीं बल्कि नजीब के विरोध में था. वोटरों ने कहा कि जब नजीब को नहीं दे रहे तो सामने एक ही नेता दिख रहा था वो थे महातिर."
92 साल के महातिर मोहम्मद बने मलेशिया के प्रधानमंत्री
मलेशिया में 92 साल के एक बुजुर्ग ने सत्ता को ललकारा
माफी ने जीता दिल
दिलचस्प ये भी है कि किसी वक्त डा. महातिर ही नजीब रज़ाक के मेंटर थे. लेकिन रज़ाक भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे तो दो साल पहले डा. महातिर ने पुरानी पार्टी छोड़ दी. रज़ाक ने विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए स्पेशल फंड बनाया था, उससे जुड़े अधिकारियों पर फंड के ग़लत इस्तेमाल के आरोप लगे. रज़ाक भी आरोपों में घिरे. उन्हें घर में तो क्लीन चिट मिल गई लेकिन विदेशों में जांच जारी है.
आसिफुल्लाह खान कहते हैं, " नजीब के आने के बाद जो वन मलेशिया डिवेलपमेंट फंड बनाया गया और उसमें जो बेईमानी हुई है. वो ऊंट की पीठ पर आख़िरी तिनका था, बस वहीं हार और जीत का फ़ैसला हो गया."
भ्रष्टाचार के मामले में रिकॉर्ड महातिर की सरकार का भी पाक साफ नहीं था. महातिर के आलोचक आरोप लगाते हैं कि उनके दौर में ही भ्रष्टाचार को संस्थागत रुप मिला. लेकिन महातिर ने ऐसे आरोपों की उम्दा काट तलाशी.
आसिफुल्लाह खान बताते हैं, " महातिर का एक विज्ञापन चल रहा था जिसमें वो एक बच्चे से बात कर रहे हैं. उनकी आंख में आंसू हैं और वो कह रहे हैं कि उनसे गलती हुई है और वो उन्हें सुधारना चाहते हैं. इसने लोगों पर बड़ा असर किया. लोग ये कहते थे कि मलेशिया में यही शख्स बनाने वाला है और यही बिगाड़ने वाला है."
विकास पुरुष की छवि
लोगों को याद है कि डा. महातिर ने प्रधानमंत्री के तौर पर 22 साल के कार्यकाल में मलेशिया को एशियाई टाइगर का दर्ज़ा दिलाया. कुआलालंपुर की तस्वीर बारिश में डूब जाने वाले शहर से बदलकर आधुनिक की. पर्यटन को बढ़ावा दिया. विकास की कई योजनाएं शुरू कीं.
राहुल मिश्रा की राय है कि मौजूदा चुनाव में युवाओं को बदलाव का उनका नारा रास आ गया.
"महातिर ने खुद कहा कि जिम्मेदारी तय होगी. उन्होंने चुनाव आयोग और न्यायपालिक के बारे में बातें कहीं हैं तो मुझे लगता है कि हर जगह स्वच्छता अभियान होगा."
एक ऐसे मुल्क में जहां विपक्ष के लिए सरकार तमाम दरवाजे बंद कर देती हो, वहां डा. महातिर का अनुभव कारगर साबित हुआ. उन्होंने अपना हर पत्ता सावधानी से चला और विश्लेषक नतीजा आने तक उसका असर नहीं भांप सके.
राहुल मिश्रा कहते हैं, " मलेशिया के युवाओं ने सोशल मीडिया पर दमदार उपस्थिति दर्ज़ कराई. हमें लगा कि ये भी उस सोशल मीडिया हाइप की तरह है जिसका कोई मतलब नहीं है. ये पढे लिखे रोजगार करने वाले लोग हैं जो विरोध की आवाज़ का साथ जरुर देते हैं लेकिन वोट नहीं देते. लेकिन अस्सी फीसदी से ज्यादा मतदान के बाद साफ है कि यहां की युवा जनता भ्रष्टाचार के आरोपों और देश की छवि खराब होने से बहुत परेशान हुई थी और उसी वजह से महातिर की पार्टी की जीत हुई है."
भारतीय मूल के लोगों का समर्थन
भारतीय मूल के डा. महातिर ने खुद को कभी मलेशिया में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों के साथ जोड़कर नहीं देखा लेकिन नजीब रज़ाक से नाराजगी और महातिर के माफीनामे के बाद इस समुदाय का भी उन्हें समर्थन मिला.
आसिफुल्लाह खान बताते हैं, "वहां चाइनीज़ 28 फीसदी हैं और भारतीय आठ फीसदी हैं. इतनी बड़ी आबादी जब आपसे नाराज़ हो जाती है तो अपने नेताओं को दंडित करती है. इस चुनाव में चाइनीज़ एसोसिएशन और इंडियन कांग्रेस दोनों के अध्यक्ष हार गए."
वहीं चुनाव जीतने के बाद डा. महातिर ने भारतीय मूल के नेताओं को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी. मुस्लिम बहुल मलेशिया में मंत्री पद हासिल करने वाले पहले सिख गोबिंद सिंह देव भी इनमें शामिल हैं.
दुश्मन बने दोस्त
डा. महातिर का मास्टर स्ट्रोक था किसी वक्त अपने सहयोगी रहे और बाद में विरोधी बन गए अनवर इब्राहिम से हाथ मिलाना. चुनाव के वक्त अनवर इब्राहिम जेल में थे. पार्टी की कमान उनकी पत्नी के हाथ थी.
राहुल मिश्रा के मुताबिक इनके बीच समझौते ने चुनावी गणित बदल दिया.
"महातिर ने तीन चीजों को प्रमुखता से सामने रखा था. महातिर सत्ता अपने हाथ में लेंगे. अनवर इब्राहिम की पत्नी को एक महत्वपूर्ण रोल दिया जाएगा. अनवर इब्राहिम पीएम इन वेटिंग होंगे. अब ये तय है कि अनवर मलेशिया के अगले पीएम होंगे."
पटरी पर लौटेगी अर्थव्यवस्था?
डा. महातिर के सत्ता में आते ही अनवर जेल से बाहर आ गए. बानवे बरस के पीएम ने ये वादा तो पूरा कर दिया लेकिन बाकी वादों पर खरा उतराना आसान नहीं होगा. खासकर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के रास्ते में कई रुकावटें हैं.
राहुल मिश्रा कहते हैं, " चुनाव प्रचार के दौरान महातिर ने कहा था कि मलेशिया में चीनी निवेश को एक बार फिर अच्छी तरह परखने की जरुरत है. उसके बाद ही हम फैसला लेंगे कि ये मलेशिया के लिए अच्छे हैं या नहीं. बहुत सारे बड़े निवेश पर महातिर की तलवार लटक रही है. उससे कुछ वक्त के लिए बाज़ार और निवेशकों पर असर हो सकता है."
दो साल के बाद संन्यास?
सवाल प्रधानमंत्री की उम्र को लेकर भी उठ रहे हैं. वो फिट दिखते हैं और तमाम मौकों पर दुनिया को चौंका भी चुके हैं. आसिफुल्लाह खान याद करते हैं, " मलेशिया में एक कार है प्रोटोन. महातिर उसके चेयरमैन थे. एक बार (बराक) ओबामा मलेशिया के दौरे पर थे तो उन्होंने एयरपोर्ट जाकर ये कार इतनी स्पीड में स्पिन कराई कि ओबामा भी हैरान हो गए कि 90 साल का आदमी लड़कों की तरह कार चला रहा है."
लेकिन कुछ वक्त के लिए कार चलाना अलग बात है और देश चलाना अलग.
राहुल मिश्रा कहते हैं, "उनकी 92 साल की उमर और पीएम के तौर पर जैसी दबाव वाली स्थितियां सामने आएंगी, उसे देखते हुए मुझे ऐसा नहीं लगता है कि महातिर खुद दो साल पद पर बने रहना चाहेंगे."
ये भी कहा जा रहा है कि उन्हें सबसे बड़ी चुनौती अनवर इब्राहिम से मिल सकती है. फिलहाल वो महातिर के साथ हैं, लेकिन कब तक?
क्या वो प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने के लिए दो साल इंतज़ार करेंगे. आसिफुल्लाह खान कहते हैं, "अनवर पीछे से ही शासन कर रहे होंगे. उनकी पत्नी को डिप्टी पीएम बनाया गया है. मलेशिया के इतिहास में ये पहला मौका है कि किसी महिला को ये पद दिया गया है. महातिर को ये लग भी रहा है कि उन्हें पद छोड़ना पड़ेगा. वो खुद कहते हैं कि 92 साल की उम्र में इतना आगे नहीं बढ़ सकता. मैं इसलिए आया कि सब ठीक करके निकल जाऊंगा."
अनुभवी महातिर जानते हैं कि राजनीति में वादे संभावनाओं के नए दरवाजे खोलते हैं. फिलहाल जन समर्थन उनके साथ है और जनता से किए वादों का बोझ उन्होंने अपनी सरकार के कंधे पर रख दिया है. जब तक कोई दूसरा नेता इस बोझ को उठाने का विकल्प नहीं पेश करेगा, उम्र या दूसरी चुनौतियां डा. महातिर मोहम्मद की राह का रोड़ा नहीं बनेगी.
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