Kargil War: कौन थे पाकिस्तानी सेना के कैप्टन करनाल शेर खान, जिन्हें भारतीय सेना ने भी दिया सम्मान
भारतीय सेना के रिटायर्ड ब्रिगेडियर महेन्द्र प्रताप सिंह के मुताबिक, टाइगर हिल पर जब लड़ते हुए पाकिस्तान सेना के कैप्टन शेर सिंह इंडियन आर्मी के हाथों मारे गये, तो वहां पर कई दर्जन पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें बिछ गईं थीं.
लाहौर, जुलाई 26: वैसे तो कारगिल युद्द को पाकिस्तानी धोखे के लिए दुनिया याद करती है, लेकिन पाकिस्तान की तरफ से एक सैनिक ऐसा भी था, जिसकी बहादुरी का सम्मान इंडियन आर्मी ने भी किया था। कारगिल युद्ध के 23 साल पूरे हो गये हैं और भारत और पाकिस्तान अपने अपने बहादुर जांबाज सैनिकों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। ऐसे मौके पर आईये जानते हैं पाकिस्तान के उस बहादुर जवान को, जिसके लिए इंडियन आर्मी के मन में भी सम्मान है।
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कारगिल युद्ध में दिखाई बहादुरी
कैप्टन करनाल शेर खान को पाकिस्तान 'कारगिल का शेर' कहता है और उन्हें 'निशान-ए-हैदर' से भी सम्मानित कर चुका है। भले ही कैप्टन करनाल शेर खान पाकिस्तान की तरफ से लड़ रहे थे, लेकिन जब कारिगल युद्ध खत्म हुआ, तो भारत के तत्कालीन ब्रिगेडियर महेन्द्र प्रताप सिंह ने भी पाकिस्तानी सेना के बहादुर कैप्टन करनाल शेर खान की तारीफ की थी। आपको बता दें कि, पाकिस्तान ने धोखे से 1999 में कारगिल पर कब्जा करने की कोशिश की थी और उस वक्त पाकिस्तानी आर्मी के प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ थे और पाकिस्तान के प्रधानमत्री नवाज शरीफ थे। हालांकि, कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की भयंकर वीरता के आगे पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए थे और फिर पाकिस्तानी फौज भाग खड़ी हुई थी और फिर 26 जुलाई 199 को कारगिल युद्ध के खत्म होने की घोषणा कर दी गई थी।
कैप्टन करनाल शेर खान
कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन करनाल शेर खान को पाकिस्तानी सेना ने टाइगर हिल पर मोर्चा लेने के लिए भेजा था। उस वक्त कर पाकिस्तानी सेना के ज्यादातर जवान मारे जा चुके थे, खासकर ज्यादातर पाकिस्तानी अफसर या तो इंडियन आर्मी के हाथों मारे जा चुके थे, या फिर घायल होकर मैदान छोड़ चुके थे। लेकिन, जब ये लड़ाई खत्म हुई, तो इस पाकिस्तानी ऑफिसर की वीरता ने इंडियन आर्मी के ब्रिगेडियर महेन्द्र प्रताप सिंह को अपना कायल बना लिया था। हालांकि, कैप्टन करनाल शेर खान भी इंडियन आर्मी के हाथों बच नहीं पाये थे और अपने देश के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे, लेकिन वो उनकी बहादुरी ही थी, कि कुछ भारतीय अफसरों के दिल में आज भी वो जिंदा हैं। कैप्टर शेर खान, पाकिस्तानी सेना में नॉर्दर्न लाइट इनफेंट्री ऑफिस थे। जब कैप्टन शेर खान का पार्थिव शरीर पाकिस्तान लौटाया जा रहा था, उस वक्त भारतीय जवानों ने भी उनकी वीरता की तारीफ की थी।
शेरखान की बॉडी को दफनाया नहीं गया
भारतीय सेना के रिटायर्ड ब्रिगेडियर महेन्द्र प्रताप सिंह के मुताबिक, टाइगर हिल पर जब लड़ते हुए पाकिस्तान सेना के कैप्टन शेर सिंह इंडियन आर्मी के हाथों मारे गये, तो वहां पर कई दर्जन पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें बिछ गईं थीं और पाकिस्तानी सेना अपने जवानों को टाइगर हिल पर ही छोड़कर भाग गये थे। जिसके बाद इंडियन आर्मी ने 30 से ज्यादा पाकिस्तानी सेना के जवानों को वहीं पर बर्फ में दफना दिया, जबकि शेरखान की बॉडी को वहां पर नहीं दफनाया गया। उनके शव को ब्रेगेड के हेडक्वार्टर पर ले जाया गया, जहां पर उनके जेब से एक चिट निकली थी, जिसपर उनका नाम 'कैप्टन शेर खान' लिखा हुआ था। कर्नल शेर खान का जन्म पाकिस्तान के स्वाबी इलाके में 1970 में हुआ था और वो साल 1994 में पाकिस्तानी वायुसेना में बतौर एयरमैन तैनात हुए थे। उनके दादा ने उन्हें कर्नल शेर खान नाम दिया था।
कारगिल युद्ध के होने वाले हैं 23 साल
आपको बता दें कि, कारगिल जंग के 23 साल पूरे हुए हैं और कारगिल युद्ध में हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक मारे गये थे। युद्ध खत्म होने के बाद कई पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा कि, जनरल परवेज मुशर्रफ की सनक ने हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को मरवा दिए। भारतीय नियंत्रण रेखा (एलओसी) से पाकिस्तानी सैनिकों को हटाने के लिए मई 1999 में कारगिल युद्ध शुरू हुआ था। 3 मई 1999 को शुरू हुआ कारगिल युद्ध 2 महीने से भी अधिक चला था और 26 जुलाई को जंग खत्म हुई थी। करगिल जंग के दौरान भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाया था। भारतीय सेना ने 26 जुलाई 1999 को जंग की सफलता की अधिकारिक घोषणा की थी, इसलिए हर साल कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को मनाया जाता है।
काफी भीषण लड़ी गई थी लड़ाई
कारगिल युद्ध में 2.50 लाख से ज्यादा गोले, बम और रॉकेट दागे गए थे और युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना ने मिग-21 और मिराज 2000 का काफी उपयोग किया गया था। भारतीय वायु सेना ने 26 मई 1999 को कारगिल के दौरान 'ऑपरेशन सफेद सागर' शुरू किया था। पाकिस्तानी सैनिकों पर हमला करने के लिए भारतीय मिग-21, मिग -27 और मिराज 2000 जैसे फाइटर जेट्स का इस्तेमाल किया गया था। इन्ही लड़ाकू विमानों से बाद में रॉकेट और मिसाइल दागी गई थी। कारगिल युद्ध माइनस 10 डिग्री सेल्सियस में लड़ा गया था। और इससे पहले भारत और पाकिस्तान में कारगिल युद्ध से पहले 1971 में एक और युद्ध हुआ था, जिसके बाद बांग्लादेश का गठन हुआ था।
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