आखिर क्यों येरूशलम ईसाईयों, मुसलमानों व यहूदियों के लिए है अहम
नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से येरूशलम को इसराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने का ऐलान किया है, उसके बाद से दुनियाभर के ज्यादातर नेता ट्रंप के इस कदम की आलोचना कर रहे हैं। येरूशलम दशकों से दुनिया के तीन धर्मों के बीच विवाद की बड़ी वजह रहा है, जिसकी वजह से यह हमेशा ही किसी ना किसी वजह से सुर्खियों में रहता है। ऐसे में यह समझना काफी जरूरी है कि आखिर क्यों येरूशलम को लेकर दुनियाभर में इतनी चर्चा हो रही है और क्यों ट्रंप के फैसले की वजह से यह एक बार फिर से चर्चा में आया है।
इसे भी पढ़ें- क्या है इजरायल-फिलिस्तीन विवाद, क्यों गाजापट्टी यरूशलम रहते हैं चर्चा में
क्या कहता है बाइबिल
येरूशलम दुनिया के तीन बड़े धर्म यहूदी, ईसाई व इस्लाम के लिए काफी अहम है, तीनों ही धर्मों की धार्मिक भावनाएं इस जगह से जुड़ी हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि आखिर येरूशलम पर बाइबिल क्या कहता है। ईसाईयों के लिए यह जगह इसलिए काफी अहम है क्योंकि उनका मानना है कि यहां जीसस का का निधन हुआ था और वहीं उनका फिर से जन्म हुआ था। वह किंग डेविड को जीसस का पुनर्जन्म मानते हैं। किंग डेविड ने ही येरूशलम में राजतंत्र की स्थापना की थी। हिब्रू बाईबिल के अनुसार किंग डेविड के वंशज भी मसीहा हैं। इसी वजह से येरूशलम ईसाईयों के लिए एक पवित्र स्थान है। लाखों ईसाई यहां आते हैं जीसस के मकबरे पर अपनी प्रार्थना करते हैं।
मोहम्मद साहब यहां आए थे
हिब्रू बाईबिल के अनुसार इस जगह को येरूशलम कहते हैं जबकि अरबी में इसे अल-कद्स कहते हैं, जोकि दुनिया के सबसे पुराने शहर में से एक है। इस शहर की धार्मिक महत्ता 1050 ईसापूर्व से मिलती है। कई ग्रंथों में भी इसका जिक्र है। जब ईजराइल के किंग डेविड ने जेरूशल में फतह हासिल की थी, उनके बेटे सोलोमन ने यहा निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया, इसका काम हेरोड ने पूरा कराया था। इस मंदिर की दीवार के जोकि अब काफी नष्ट हो चुकी है, उसे अब वेलिंग वॉल यानि वेस्टर्न वॉल के नाम से जाना जाता है, जहां यहूदी प्रार्थना के लिए आते हैं। इसी के करीब चट्टान पर मुस्लिम डोम भी है, जिसपर मोहम्मद साहब चढ़कर गए थे, यहीं अल अक्सा मस्जिद भी है, जिसे इस्लाम में पवित्र स्थान के रूप में माना जाता है। ईसाई यहां इसलिए आते हैं क्योंकि जीसस इसी रास्ते से होकर सूली पर चढ़ने के लिए गए थे। यहां ईसाई आते हैं और 12वीं शताब्दी में बने चर्च में प्रार्थना करते हैं।
आखिर किसका शहर है येरुशलम
इजरायल यह दावा करता है कि कि येरुशलम उसकी राजधानी है, जबकि फिलिस्तीन भी यही दावा करता है कि येरूशलम का उत्तरी इलाका उसका है, जिसपर इजरायल ने 1967 में मिडईस्ट वॉर में जबरन कब्जा कर लिया था। मौजूदा समय में इजरायल के पास येरूशलम का अधिकार है, लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिली थी। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का कहना था कि इस मुद्दे को आपसी सुलह के साथ निपटाना चाहिए, लेकिन जिस तरह से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे मान्यता देने का ऐलान किया है, उसके बाद उनके इस फैसले का लगातार विरोध हो रहा है।
तीनों धर्म के लिए अहम
यरूशलम बहुत बड़ा शहर है, यह इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म के लिए काफी अहम है। यह यहूदियों का दुनिया में सबसे पवित्र स्थान है, इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद यह तीसरा सबसे पवित्र स्थान है। ईसाई धर्म के लिए भी यह काफी अहम स्थान है क्योंकि यहां जीसस क्राइस को सूली पर चढ़ाया गया था। तीनों धर्म को अब्राहम धर्म कहा जाता है। पूर्वी यरूशलम में ज्यादातर मुस्लिम आबादी है, जबकि पश्चिमी हिस्से में यहूदी आबादी है, जबकि इनके बीचो-बीच यह पवित्र स्थान मौजूद है। यहां अल अक्सा मस्जिद में इजरायल 18-50 वर्ष के लोगों को जाने से रोकता है क्योंकि ये लोग अक्सर यहां प्रदर्शन करते हैं। यरूशलम को पूरी दुनिया में आज भी इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता नहीं मिली है। इजरायल यरूशलम को अपनी राजधानी मानता है, जबकि दुनिया के अन्य देश अभी भी तेलावीव है, लिहाजा सारे दूतावास यहीं स्थित हैं।
इसे भी पढ़ें- #jerusalem: ट्रंप ने लिया येरुशलम पर फैसला, सबसे बड़ा सवाल-भारत किसकी तरफ है?