Inside Story: भारत ने अपने नागरिकों को कनाडा में सतर्क और सजग रहने के लिए क्यों कहा है?
मनमोहन सिंह ने उस वक्त ऐसे तत्वों के खिलाफ कनाडा सरकार से कार्रवाई करने का आग्रह करते हुए कहा था, कि "धार्मिक विविधता का अतिवाद से वैश्विक शांति को नुकसान पहुंचता है।'
नई दिल्ली, सितंबर 25: कनाडा में "हेट क्राइम, सांप्रदायिक हिंसा और भारत विरोधी गतिविधियों की घटनाओं में तेज वृद्धि" का हवाला देते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने कनाडा में रहने वाले भारतीय नागरिकों और छात्रों के लिए शुक्रवार (23 सितंबर) को एक गाइडलाइंस जारी की है, जिसमें कहा गया है, कि "हेट क्राइम और अन्य अपराधों की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए कनाडा में रहने वाले भारतीय नागरिकों और भारतीय छात्रों को सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है और उन भारतीयों को भी अलर्ट रहने की सलाह दी जाती है, जो कनाडा की यात्रा करने वाले हैं और उन्हें सलाह दी जाती है, कि वो सावधानी बरतें और सतर्क रहें।" ऐसे में आइये जानते हैं, कि भारत ने आखिर ये गाइडलाइंस क्यों जारी की है और इनसाइड स्टोरी क्या है?
कनाडा में अभी क्या हो रहा है?
कनाडा में पिछले कुछ दिनों में भारत विरोधी अभियानों में तेजी आई है और मंदिरों पर हमले किए गये हैं। वहीं, पिछले दिनों कनाडा में 'खालिस्तान जनमत संग्रह' भी किया गया है, जिसमें हजारों की तादाद में खालिस्तान समर्थक जुटे थे। 22 सितंबर को एक मीडिया ब्रीफिंग में भारतीय विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता अरिंदम बागची से "कनाडा जैसे देशों में तथाकथित खालिस्तान जनमत संग्रह होने" के बारे में एक सवाल पूछा गया था, जिसके जवाब में अरिंदम बागची ने इसे "चरमपंथी और कट्टरपंथी तत्वों" द्वारा आयोजित "हास्यास्पद अभ्यास" करार दिया था। उन्होंने कहा कि, इस मामले को कनाडा के अधिकारियों के साथ उठाया गया है और कनाडा सरकार भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करती है, और कनाडा सरकार इस अभ्यास को मान्यता नहीं देती है'। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा, कि 'हमें यह काफी आपत्तिजनक लगता है, कि चरमपंथी तत्वों की ऐसी हरकतों को हमारे एक मित्र देश में अनुमति दी जाती है और लोगों को इस मांग के आसपास "हिंसा के इतिहास" के बारे में पता है। उन्होंने कहा कि, भारत सरकार इस मामले पर कनाडा सरकार पर दबाव डालना जारी रखेगी।
क्यों बढ़े हैं भारतीयों के खिलाफ अपराध?
इस महीने की शुरुआत में, टोरंटो में बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर पर हमला किया गया और भारत विरोधी नारे नारे मंदिर पर लिखे गये। पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके बाद कनाडा के ओटावा में भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट किया कि, उसने इस कृत्य की कड़ी निंदा की और कनाडा के अधिकारियों से घटना की जांच करने का अनुरोध किया। वहीं, पिछले दिनों खालिस्तान रेफरेंडम को लेकर कनाडा सरकार ने भले ही ये कहा हो, कि वो इसे मान्यता नहीं देता है, लेकिन वो फ्रीडम ऑफ स्पीच का हवाला देकर इस तरह के लोगों को रैलियां निकालने की भी इजाजत देता है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी घरेलू राजनीति की वजह खालिस्तानी मूवमेंट को रोकने की कोशिश नहीं करती है, लिहाजा अब इसका असर भारतीयों से नफरत के तौर पर निकाली जाने लगी है।
कनाडा में भारतीय और खालिस्तानी मूवमेंट
पिछले एक सदी से ज्यादा वक्त से भारतीय कनाडा जा रहे हैं और कनाडा की एक बड़ी आबादी भारतीय है, जो दुनिया के सबसे बड़े भारतीय प्रवासियों में से एक है। कनाडा आज कई भारतीय छात्रों के लिए उच्च शिक्षा के लिए एक पसंदीदा स्थान है, लगभग 60,000 छात्रों ने 2022 की पहली छमाही में कनाडा जाने का विकल्प चुना है, जो अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है। कनाडा में भारतीय इमिग्रेशन का नेतृत्व पंजाबी सिखों ने किया था। स्थानीय सलाहकारों द्वारा कनाडा के आव्रजन, शरणार्थी और नागरिकता, कनाडा (IRCC) की रिपोर्ट के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि कनाडा जाने के लिए आवेदन करने वालों में से लगभग 60 से 65 प्रतिशत भारत में पंजाब से हैं।
कनाडा में सिख बने शक्तिशाली
पिछले कई सालों में पंजाबी सिख समुदाय कनाडा में एक समृद्ध और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली समूह बन गया है और सिख समुदाय के एक हिस्से ने पिछले कई दशकों से खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन का समर्थन और वित्त पोषण किया है, और कई व्यक्तिगत खालिस्तानी विचारकों और चरमपंथियों की मेजबानी की है। भारत ने इस मुद्दे को कनाडा के साथ बार-बार उठाया है, और ये स्थिति कभी-कभी दोनों देशों के बीच राजनयिक शर्मिंदगी का कारण बनी है। साल 2018 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जब भारती की यात्रा पर आए थे, तो कनाडा के राजनयिकों ने अपने प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में एक ऐसे शख्स को भी निमंत्रण भेजा था, जिसपर पंजाब के एक पूर्व मंत्री की हत्या का आरोप था और वो खालिस्तान समर्थन था। हालांकि, बाद में भारत के एतराज के बाद खालिस्तान समर्थनजसपाल अटवाल का निमंत्रण रद्द किया गया। निमंत्रण रद्द होने से पह ले ट्रूडो के लिए आयोजित दो कार्यक्रमों में आमंत्रित किया गया था। वहीं, बाद में कनाडा के प्रधानमंत्री ने कहा कि,"जाहिर है, हम इसे बेहद गंभीरता से लेते हैं। उसे कभी निमंत्रण नहीं मिलना चाहिए था। सूचना मिलते ही हमने इसे रद्द कर दिया। एक संसद सदस्य ने इस व्यक्ति को शामिल किया था"।
सरकार के एक हिस्से का समर्थन
वहीं, प्रधानमंत्री भले ही कुछ भी कहें, लेकिन कनाडा की सरकार का एक हिस्सा भी खालिस्तान आंदोलन का समर्थन करता है। साल 2018 में ही कनाडा सरकार की एक शाखा, पब्लिक सेफ्टी कनाडा ने कहा कि,देश में कुछ लोग सिख (खालिस्तानी) चरमपंथी विचारधाराओं और आंदोलनों का समर्थन कर रहे हैं और ये कनाडा के लिए भी खतरनाक हो सकता है और इसकी वजह से कनाडा भी आतंकवाद का शिकार हो सकता है, क्योंकि खालिस्तान आंदोलन का पहले जिस तरह से समर्थन किया जाता था, वो अब कम हो गया है। वहीं, साल 2010 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कनाडा में अपने कनाडाई समकक्ष स्टीफन हार्पर के साथ एक संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा था, कि "कनाडा में सिख समुदाय समृद्ध है" और अधिकांश सिख "शांतिप्रिय और कनाडा के अच्छे नागरिक" हैं। लेकिन, उन्होंने ये भी कहा था,"लोगों के एक छोटे समूह ने अपना कदम चरमपंथ के रास्ते पर बढ़ा लिया है, जो भारत और कनाडा के साथ अच्छे संबंधों को बहुत बड़ा नुकसान करता है।"
मनमोहन सिंह ने भी की थी अपील
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उस वक्त ऐसे तत्वों के खिलाफ कनाडा सरकार से कार्रवाई करने का आग्रह करते हुए कहा था, कि "धार्मिक विविधता का अतिवाद कुछ ऐसा है जो एकीकृत विश्व समुदाय और वैश्वीकृत समुदाय की बढ़ती वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं है ... मैंने प्रधानमंत्री हार्पर के साथ चर्चा की है कि कनाडा की धरती का उपयोग अतिवाद के लिए नहीं करने की अपील की है।' पीएम सिंह ने कहा कि, प्रधानमंत्री हार्पर ने मुझे बताया कि ऐसे कानून हैं जो इस तरह के मूवमेंट के लिए सीमाएं निर्धारित करते हैं, जो मौजूद हैं। लेकिन मुझे विश्वास है कि जो कुछ हो रहा है, उसपर प्रधानमंत्री हार्पर की सरकार पूरी तरह से ध्यान दे रही है।"
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