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यूएस वायुसेना का अलर्ट, भारत ने LAC पर शी जिनपिंग को बुरी तरह चौंकाया, आने वाला वक्त होगा खतरनाक

अमेरिकी वायुसेना के एक्सपर्ट्स ने लिखा है कि भारत भी काफी तेजी से निर्माण कर रहा है, जिससे चीन और ज्यादा आक्रामक रवैया अपना रहा है और दोनों देशों में फिर संघर्ष हो सकता है।

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नई दिल्ली/हांगकांग, जून 22: पिछले साल जून में भारत और चीन के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी और विश्व की दो बड़ी शक्तियों के टकराव में दोनों देशों को जान का नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन, पिछले साल के जून के बाद चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी ने एलएसी पर काफी तेजी से अपनी सक्रियता बढ़ा दी है और एलएएसी पर चीन की तरफ से विध्वंसक हथियारों के साथ हजारों सैनिकों को तैनात किया गया है, वहीं एलएसी पर अपनी सीमा में चीन लगातार युद्धाभ्यास भी कर रहा है। पिछले साल 15 जून को हुए भारतीय सेना से संघर्ष में पीएलए ने चार जवानों के मारे जाने की बात कबूली थी और घटना के करीब 9 महीने बाद चीन की सरकार ने अपने सैनिकों को श्रद्धांजलि दी थी।

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एलएसी पर काफी ज्यादा सक्रिय चीन

एलएसी पर काफी ज्यादा सक्रिय चीन

चीन द्वारा अपने सैनिकों को दी गई श्रद्धांजलि कार्यक्रर में चीनी सैनिकों ने कसम खाते हुए प्रतिज्ञा ली थी कि "अगर युद्ध आता है, तो मैं अपनी आखिरी धड़कन को मातृभूमि को समर्पित कर दूंगा और अपनी जान देने से पीछे नहीं हटुंगा।" अपने देशभक्ति के उत्साह के बीच चीनी सैनिकों ने वादा किया कि, "मैं अपने देश का एक इंच क्षेत्र को खोने के बजाय अपने जीवन का बलिदान देना पसंद करूंगा।" इस हफ्ते, वाशिंगटन डीसी में द हेरिटेज फाउंडेशन के एक रिसर्च फेलो जेफ एम स्मिथ ने अमेरिकी वायु सेना के आधिकारिक जर्नल में इंडो-पैसिफिक अफेयर्स को लेकर एक महत्वपूर्ण आर्टिकिल लिखा है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि '2013 में चीन में शी जिनपिंग के सत्ता में पूरी तरह अपना अधिकार करने के बाद भारत-चीन एलएसी पर काफी तनाव औक टकराव बढ़ गया है।' उन्होंने लिखा है कि 'पीएलए लगातार एलएसी पर अपना निर्माण कार्य कर रहा था और अपनी शक्ति बढ़ाने का काम रक रहा था। चीन की सेना पैंगोग सो लेक के इलाके में भी लगातार कानून और समझौते का उल्लंघन करते हुए निर्माण कर रहा था और उसे कोई रोकने वाला नहीं था। लेकिन 2014 के बाद स्थिति बदलने लगी।'

भारत ने दिया सरप्राइज

भारत ने दिया सरप्राइज

स्मिथ ने अमेरिकन एयरफोर्स के जर्नल में लिखे आर्टिकिल में लिखा है कि 'भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ने की बड़ी वजह भारत द्वारा शक्ति बढ़ाना है। पहले भारत शांत था और चीन लगातार निर्माण कर रहा था, लेकिन बाद में भारत ने तेजी से निर्माण कार्य शुरू कर दिया, चूंकी चीन ने बुनियादी ढांचा बना लिया था, लिहाजा वो नहीं चाहता था कि भारत भी निर्माण कार्य करे और जब बीजिंग भारत के साथ इस मुद्दे पर राजनीतिक समाधान नहीं निकाल पाया तो फिर उसने भारतीय निर्माण रोकने और भारतीय सैनिकों को पीछे करने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल करने का फैसला ले लिया'

भारत से उलझने में रिस्क ज्यादा

भारत से उलझने में रिस्क ज्यादा

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट एंड टेक्नोलॉजी में सिक्योरिटी स्टडीज प्रोग्राम के डायरेक्टर एम. टेलर फ्रावेल ने पीएलए की पैंगोंग सो से हटने को लेकर कहते हैं कि '' ऐसा लगता है कि चीन बहुत सोचने के बाद पीछे हटा है। चीन देख रहा है कि भारत के साथ उसका तनाव काफी ज्यादा बढ़ा चुका है, सैन्य गतिरोध चरम पर है, जिसका खामियाजा उसे राजनीतिक स्तर पर उठाना होगा, जिसकी वजह से चीन ने अपनी सेना को सिर्फ पैंगोग सो से बाहर किया। जबकि, चीन ने अपने ऊपर पड़ने वाले भारी अंतर्राष्ट्रीय दवाब को अपने देश में इस तरह से प्रोजेक्ट करना शुरू किया है कि पूरी दुनिया चीन के विकास कार्यक्रम से जल रही है। शी जिनपिंग ने देश में बड़े स्तर पर प्रोपेगेंडा चलाया कि चीन ने इस सदी में वो विकास किया है, जिसकी कल्पना दुनिया के किसी देश ने नहीं की है और इसमें पूरा योगदान शी जिनपिंग का है। लिहाजा, चीन पर अंतर्राष्ट्रीय दवाब बनाया गया है। इसके साथ ही शी जिनपिंग ने 'राइजिंग इस्ट, डिक्लाइनिंग वेस्ट' पर काम करते हुए एक तरह से पश्चिमी देशों को चीन का 'दुश्मन' दिखाना शुरू किया है, वहीं चीन का मानना है कि अगर चीन के विकास कार्य को आगे बढ़ाना है तो ये वक्त भारत से उलझने का नहीं है।

भारत को लेकर चीन की चाल

भारत को लेकर चीन की चाल

अमेरिकी वायुसेना के ऑफिसियल जर्नल में लिखा गया है कि ''चीन कभी भी अपना प्रतिद्वंती भारत को नहीं मानता है, बल्कि चीन के लिए मुख्य प्रतिद्वंदी अमेरिता है।'' वहीं, फ्रैवेल का मानना है, "जैसे-जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ चीन के संबंध खराब होते गए, चीन के लिए भारत के साथ संबंध सुधारने की जरूरत महसूस होती गई और चीन ने फौरन भारत से साथ संबंध सुधारना शुरू कर दिया। इसके अलावा शी जिनपिंग का मानना है कि क्वाड में शामिल चार देशों में नई दिल्ली कमजोर कड़ी साबित हो सकती है। लेकिन, 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम तनाव के बाद चीन ने मानना शुरू कर दिया है कि भारत के खिलाफ उसे और ज्यादा आक्रामक होना पड़ेगा, जिसका नतीजा गलवान घाटी में दिखा और वही वजह है कि चीन लगातार भारतीय सीमा पर काफी तेजी से अपनी क्षमता बढ़ा रहा है।

एलएसी पर तेजी से निर्माण

एलएसी पर तेजी से निर्माण

सैन्य निर्माण के अलावा एलएएसी पर चीन की पीएलए ब्लिट्जक्रेग अभियान चला रहा है, अलग अलग जगहों पर किलों का निर्माण कर रहा है, बड़ा एयरबेस बना रहा है और इसके साथ ही रेल लाइन और हेलीपेड का भी निर्माण कर रहा है। चीन एलएसी पर जो कर रहा है, वो सिर्फ रक्षात्मक उपाय नहीं है, बल्कि पीएलए पूरी तरह से लड़ाई की तैयारी कर रहा है। वहीं, अमेरिकन एयरफोर्स में जर्नल में आगे कहा है कि, चीन अगर काफी तेजी से निर्माण कर रहा है तो भारत भी पीछे नहीं है और भारत भी काफी तेजी से निर्माण कर रहा है और विध्वंसक हथियारों की तैनाता कर रहा है। ऐसे में चीन और शी जिनपिंग के लिए अब तय करना है कि वो भारत के साथ किस तरह से पेश आते हैं, क्योंकि अब अगर लड़ाई के हालात उत्पन्न होते हैं तो वो भयावह होगा।

चीन कर रहा है डराने की कोशिश

चीन कर रहा है डराने की कोशिश

स्ट्रेटजिक एंड डिफेंस स्टडीज सेन्टर ऑफ द ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के फैकल्टी डॉ. अशोक शर्मा मानते हैं कि 'एलएसी पर चीन काफी ज्यादा आक्रामक होकर सीधे तौर पर भारत को संदेश देना चाहता है कि भारत को चीन का मुकाबला करना छोड़ देना चाहिए। और चीन दिखाना चाहता है कि भारत के साथ उसका कोई मुकाबला नहीं है।' डॉ. शर्मा कहते हैं ' सीमा विवाद के तीन आयाम हैं, कानूनी पक्ष, अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां और घरेलू राजनीति। कई सालों से बातचीत के बावजूद, बीजिंग और दिल्ली सीमा विवाद पर सहमत नहीं हुए हैं। इसके अलावा पिछले साल के टकराव ने इंडो-पैसिफिकि रणनीतिक संघर्ष को भी बढ़ा दिया है और उसी का नतीजा क्वाड का विकास है। वहीं, शर्मा ने चेतावनी देते हुए कहा है कि "आने वाले वक्त में भारत और चीन के बीच काफी ज्यादा खतरनाक टकवार हो सकते हैं। कोविड-19 से जूझती दुनिया में भारत-चीन संबंध अविश्वास पर ही आगे बढ़ेगा।

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English summary
The American Air Force has said in an article written in its official journal that India responded to China in a very aggressive manner, for which the Chinese army was not ready.
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