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भारत समेत 11 देशों पर अमेरिकी जासूसी एजेंसियों की पैनी नजर

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नई दिल्ली, 22 अक्टूबर। भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान 11 देशों की इस सूची में शामिल हैं. यह सूची ऐसे देशों की है जिन पर जलवायु परिवर्तन का बेहद बुरा असर पड़ सकता है. अमेरिकी एजेंसियों के मुताबिक ये देश जलवायु परिवर्तन के कारण आने वालीं प्राकृतिक और सामाजिक आपदाओं को झेलने के लिए तैयार नहीं हैं.

Provided by Deutsche Welle

ऑफिस ऑफ डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस (ओडीएनआई) की ताजा रिपोर्ट 'नेशनल इंटेलिजेंस एस्टीमेट' में पूर्वानुमान जाहिर किया गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण 2040 तक भू-राजनीतिक तनाव बढ़ेंगे जिसका अमेरिका की सुरक्षा पर भी असर होगा.

ये पूर्वानुमान अमेरिका की विभिन्न जासूसी एजेंसियों द्वारा जाहिर किए गए हैं. गुरुवार को जारी हुई रिपोर्ट में 11 देशों को लेकर विशेष चिंता जाहिर की गई है. इनमें अफगानिस्तान, भारत और पाकिस्तान के अलावा म्यांमार, इराक, उत्तर कोरिया, ग्वाटेमाला, हैती, होंडूरास, निकारागुआ और कोलंबिया भी शामिल हैं. ओडीएनआई की इस रिपोर्ट का कुछ हिस्सा सार्वजनिक किया गया है.

दक्षिण एशिया में युद्धों का खतरा

रिपोर्ट कहती है कि गर्मी, सूखा, पानी की कमी और प्रभावहीन सरकार के कारण अफगानिस्तान की स्थिति काफी चिंताजनक है. भारत और बाकी दक्षिण एशिया में पानी की कमी के कारण विवाद उभर सकते हैं.

यह तनाव इन देशों के बीच गंभीर विवाद में बदल सकता है. जैसे कि दक्षिण एशिया में पाकिस्तान अपने भूजल के लिए भारत से निकलती नदियों पर निर्भर रहता है. दोनों परमाणु संपन्न देश 1947 में आजाद होने के बाद से कई युद्ध लड़ चुके हैं.

भारत के दूसरी तरफ बांग्लादेश की कुल आबादी 16 करोड़ का लगभग 10 प्रतिशत पहले ही ऐसे तटीय इलाकों में रह रहा है जो समुद्र का जल स्तर बढ़ने के सबसे ज्यादा खतरे में हैं.

रिपोर्ट का अनुमान है कि बढ़ता तापमान दक्षिण अमेरिका, दक्षिण एशिया और अफ्रीका के सहारा क्षेत्र की तीन प्रतिशत आबादी यानी करीब 14.3 करोड़ लोगों को अगले तीन दशक में ही विस्थापित कर सकता है. ये लोग दूसरे देशों की ओर पलायन करेंगे.

नए विवाद उभरने की आशंका

रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी एजेंसियां दो और क्षेत्रों को लेकर चिंतित हैं. रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण "मध्य अफ्रीका और प्रशांत महासागर के छोटे छोटे द्वीपों" को लेकर विशेष चिंता जताई गई है और कहा गया है कि ये दुनिया के दो सबसे ज्यादा खतरे वाले इलाकों में शामिल हैं.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए अपनाई जा रही रणनीतियों में काफी अंतर है. रिपोर्ट कहती है कि जो देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं के लिए जीवाश्म ईंधनों के निर्यात पर निर्भर हैं वे "जीरो कार्बन संसार की ओर अग्रसर होने का विरोध करते रहेंगे क्योंकि वे ऐसा करने की आर्थिक, राजनीतिक या भू-राजनीतिक कीमत से डरते हैं."

आर्कटिक और गैर-आर्कटिक देशों के बीच बढ़ते रणनीतिक संकट को भी एक खतरे के तौर पर पेश किया गया है. रिपोर्ट कहती है कि इन दो पक्षों के बीच "निश्चित तौर पर प्रतिद्वन्द्विता बढ़ेगी क्योंकि तापमान बढ़ने और बर्फ कम होने से पहुंच आसान हो जाएगी."

इस रिपोर्ट में अनुमान जाहिर किया गया है कि आर्कटिक क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वन्द्विता मोटे तौर पर आर्थिक होगी लेकिन "गलत गणना का खतरा 2040 तक मध्यम रूप से बढ़ेगा क्योंकि व्यावयसायिक और सैन्य गतिविधियां बढ़ेंगी और अवसरों के लिए ज्यादा संघर्ष होगा."

अभी बनानी होंगी नीतियां

अमेरिकी एजेंसियां वर्षों से जलवायु परिवर्तन को अपने देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताती रही हैं लेकिन इस रिपोर्ट में पहली बार क्षेत्रों को साफ तौर पर चिन्हित किया गया है. एक अन्य रिपोर्ट में ऐसे उपाय खोजे जा रहे हैं जिनके जरिए ऐसे लोगों पर नजर रखी जा सके जो जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापन को मजबूर होंगे.

संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायोग के मुताबिक हर साल तूफान, मौसमी बारिश और औचक प्राकृतिक आपदाओं के कारण दुनियाभर के औसतन करीब दो करोड़ 15 लाख लोग विस्थापित होते हैं. रिपोर्ट कहती है, "आज और आने वाले सालों में बनाई गईं नीतियां और योजनाएं जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण विस्थापित हो रहे लोगों के अनुमान को प्रभावित करेंगी."

अमेरिकी जासूसी एजेंसियों का निष्कर्ष है कि हमारे ग्रह को पैरिस समझौते में तय की गई तापमान की सीमा के अंदर रखने में संभवतया पहले ही देर हो चुकी है. यूं तो अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र दोनों का आधिकारिक लक्ष्य वही 1.5 डिग्री सेल्सियस है, लेकिन बहुत से वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि तापमान इससे ज्यादा बढ़ेगा और भारी विनाश लेकर आएगा.

वीके/सीके (रॉयटर्स, एपी)

Source: DW

English summary
india among 11 countries of concern on climate change for us spy agencies
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