इमरान ख़ान कैसे कर सकते हैं पाकिस्तान के अगले आर्मी चीफ़ की नियुक्ति को प्रभावित?
इमरान ख़ान के लाहौर से इस्लामाबाद तक के मार्च में काफ़ी भीड़ जुट रही है. क्या वे अवाम की इस ताक़त से सेनाध्यक्ष की नियुक्ति को प्रभावित कर सकते हैं?
हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के अध्यक्ष इमरान ख़ान पर पंजाब के वज़ीराबाद शहर में जानलेवा हमला हुआ था.
वह अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के लॉन्ग मार्च का नेतृत्व करते हुए इस्लामाबाद की ओर जा रहे थे.
इमरान ख़ान घायल हो गए थे, उन्हें लाहौर स्थानांतरित कर दिया गया था जिसकी वजह से पीटीआई के लॉन्ग मार्च की रफ़्तार धीमी हो गई थी.
इसके बाद लॉन्ग मार्च को आगे बढ़ाने की योजना में भी बदलाव किए गए. इमरान ख़ान पर हमले से पहले पीटीआई ने यह दावा किया था कि उनके लॉन्ग मार्च में लोगों की एक बड़ी संख्या शामिल है इसलिए मार्च की गति धीमी है.
हालांकि, कुछ राजनीतिक विश्लेषक और पर्यवेक्षक उनसे असहमत हैं उनका कहना हैं कि तब भी पीटीआई को अपने लांग मार्च में लोगों की संख्या बढ़ाने के लिए कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था.
वज़ीराबाद की घटना के बाद लॉन्ग मार्च के भविष्य को लेकर कई तरह के सवाल सामने आए, जिसमें मुख्य सवाल यह था कि लॉन्ग मार्च दोबारा शुरू होगा या नहीं?
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने इस सवाल को जल्द ही ख़त्म कर दिया.
उन्होंने घोषणा की कि लॉन्ग मार्च दोबारा वहीं से शुरू होगा जहां पर यह रुका था. अगला सवाल यह था कि इमरान ख़ान पर हुए जानलेवा हमले के बाद मार्च में कितनी आक्रामकता आएगी?
यह उम्मीद की जा रही थी कि पीटीआई प्रमुख पर जानलेवा हमले के बाद की प्रतिक्रिया लॉन्ग मार्च में देखने को मिलेगी. इमरान ख़ान के ऐलान के बाद लॉन्ग मार्च पिछले सप्ताह के अंत में फिर से शुरू हो गया.
मार्च की रफ़्तार धीमी क्यों है?
पार्टी के उपाध्यक्ष शाह महमूद क़ुरैशी और अन्य नेताओं ने वज़ीराबाद से ही इस लॉन्ग मार्च को दोबारा शुरू किया.
हालांकि इसी दौरान पीटीआई के वरिष्ठ नेता असद उमर ने भी पंजाब के फ़ैसलाबाद जिले से एक रैली की शुरुआत की अब ये दोनों धीरे-धीरे रावलपिंडी की ओर बढ़ रहे हैं.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत से भी कुछ पीटीआई नेता विभिन्न रैलियों का नेतृत्व करते हुए रावलपिंडी की ओर जा रहे हैं.
हालांकि मुख्य लॉन्ग मार्च समेत इन सभी रैलियों की रफ़्तार काफ़ी धीमी है. मुख्य मार्च अभी तक झेलम तक पहुंच पाया है जबकि फ़ैसलाबाद से आने वाली रैली सरगोधा के क़रीब हैं.
कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि इमरान ख़ान पर हुए जानलेवा हमले के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि लॉन्ग मार्च में बहुत ज़्यादा भीड़ होगी और इसकी गति भी तेज़ हो जाएगी और वह जल्द ही इस्लामाबाद पहुंचकर अपनी मांगें पेश करेंगे, लेकिन छह दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक ऐसा नहीं हुआ है.
पीटीआई लगातार यह दावा करती दिख रही है कि 'हर जगह बड़ी संख्या में लोग उनके लॉन्ग मार्च और रैलियों का स्वागत कर रहे हैं.'
अगर ऐसा है तो क्या एक बार फिर मार्च की रफ़्तार को धीमा रखना पीटीआई की रणनीति का हिस्सा है? और वह रणनीति क्या है?
लॉन्ग मार्च के पीछे की रणनीति
कुछ विश्लेषकों के मुताबिक़, पीटीआई की इस रणनीति का एक सिरा इसी महीने होने वाली सेना प्रमुख की नियुक्ति से जाकर मिलता है लेकिन पीटीआई इसका खंडन करती रही है.
इमरान ख़ान ने लॉन्ग मार्च में शामिल होने वालों को संबोधित करते हुए यह स्पष्ट भी किया था कि इस लॉन्ग मार्च के ज़रिए से वे केवल देश में जल्द निष्पक्ष और पारदर्शी आम चुनाव चाहते हैं.
वे (सत्ताधारी पार्टी) किसी को भी आर्मी चीफ़ नियुक्त कर दें उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
हालांकि, साथ ही उन्होंने इस बात की भी आलोचना की कि इस महत्वपूर्ण नियुक्ति में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता नवाज़ शरीफ़ से क्यों सलाह ली जा रही है.
ऐसे में सवाल यह है कि अगर जल्द चुनाव की मांग है तो इस्लामाबाद पहुंचने में देरी क्यों?
और अगर पर्यवेक्षक यह मानते हैं कि पीटीआई के लॉन्ग मार्च को जनता का उतना बड़ा समर्थन नहीं मिल पा रहा है,कि इसे बहुत बड़ा कहा जा सके तो सवाल यह भी है कि क्या वो सेना प्रमुख की नियुक्ति के मुद्दे को प्रभावित कर पाएंगे.
और अगर वे इसे प्रभावित नहीं कर सकते, तो वे अपने मार्च की रफ़्तार को धीमा क्यों रखना चाहेंगे? रावलपिंडी पहुंचने में देरी का संबंध इस अहम तैनाती से ही है
पत्रकार और विश्लेषक सलीम बुख़ारी के मुताबिक़, पीटीआई के लॉन्ग मार्च के धीमे होने की वजह यही है कि जब सेना प्रमुख की नियुक्ति का समय क़रीब हो तभी रावलपिंडी पहुंचा जाये है.
इमरान ख़ान के इरादे
वह पीटीआई प्रमुख इमरान ख़ान के हाल के उन भाषणों की तरफ़ इशारा करते हैं जो हाल ही में उन्होंने विडियो लिंक के माध्यम से लांग मार्च में शामिल होने वालों से किये हैं.
एक तो इमरान अब यह कहते सुने जा रहे हैं कि उनका लॉन्ग मार्च इस्लामाबाद नहीं बल्कि रावलपिंडी जा रहा है.
साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ अपनी पसंद का आर्मी चीफ़ नियुक्त करना चाहते हैं.
पत्रकार और विश्लेषक सलमान ग़नी भी यही मानते हैं कि पीटीआई के लॉन्ग मार्च की धीमी गति सेना प्रमुख की नियुक्ति से जुड़ी रणनीति का नतीजा हो सकती है.
उनका कहना है, कि इमरान ख़ान ने अपने हालिया भाषण में कहा है कि जनता उनके साथ है, वे एक साल तक भी इंतज़ार कर सकते हैं. मुझे लगता है कि इससे उनके इरादे बहुत हद तक स्पष्ट हैं.
सलमान ग़नी का भी यही मानना है कि इमरान ख़ान 'रणनीतिक रूप से इस्लामाबाद के बजाय रावलपिंडी का नाम ले रहे हैं, जबकि शुरुआत में उन्होंने स्पष्ट रूप से इस्लामाबाद तक लॉन्ग मार्च निकालने की घोषणा की थी.'
सेना प्रमुख की नियुक्ति
पर्यवेक्षकों और विश्लेषकों का एक समूह यह मानता है कि पीटीआई के लॉन्ग मार्च की गति इस महीने होने वाली नियुक्ति की वजह से धीमी हो गई है.
उनका यह कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का यह मानना है कि अगर लोगों ने बड़ी संख्या में उनका समर्थन किया और वे रावलपिंडी और इस्लामाबाद पहुंच गए, तो वे सरकार पर दबाव बना सकेंगे जिसे नज़रअंदाज करना आसान नहीं होगा.
हालांकि उनके मुताबिक़ इमरान ख़ान के लॉन्ग मार्च को जनता की वह स्वीकार्यता नहीं मिली, जिसकी उन्हें उम्मीद थी.
सलमान ग़नी का कहना है कि पाकिस्तान में राजनीति इस समय विचारों के बजाय व्यक्तित्वों के इर्द-गिर्द घूम रही है और इसमें कोई दो राय नहीं कि इमरान ख़ान इस समय बेहद लोकप्रिय राजनीतिक शख्सियत और नेता हैं.
लेकिन इसके बावजूद इमरान ख़ान इस बार लाहौर के बाहर लॉन्ग मार्च में कुछ ज़्यादा हलचल नहीं मचा पाए. उन पर हुए हमले के बाद भी हमने देखा है कि लोग उतनी बड़ी संख्या में बाहर नहीं निकले जितने की उम्मीद थी.
सलीम बुख़ारी का मानना है कि पीटीआई के लॉन्ग मार्च के लिए जनता का समर्थन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है.
इस बार उन्होंने एक से ज़्यादा जगहों से रैलियां निकालीं. उन्हें उम्मीद थी कि इस तरह उन्हें और ज़्यादा समर्थन मिलेगा लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
हालांकि, सलीम बुख़ारी का मानना है कि किसी भी आकार की रैलियों का सेना प्रमुख की नियुक्ति के मुद्दे को प्रभावित करना बहुत मुश्किल है.
"नियुक्ति तो नियमों के अनुसार ही होगी"
सलमान ग़नी का कहना है कि पीटीआई के प्रमुख इमरान ख़ान का कहना है कि नए सेना प्रमुख की नियुक्ति मैरिट के आधार पर ही होनी चाहिए.
उन्होंने यह भी ज़ाहिर किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ अपनी पसंद के सेना प्रमुख की नियुक्ति करना चाहते हैं.
लेकिन समस्या यह है कि इमरान ख़ान न तो संसद का हिस्सा हैं और न ही संवैधानिक रूप से नियुक्ति के मामले में उनकी कोई भूमिका है. इसलिए मुझे नहीं लगता कि उनकी बातें सुनी जाएगी या उस पर ध्यान दिया जाएगा.
सलीम बुख़ारी का कहना है कि अगर हम मान भी लें कि इमरान ख़ान पूरे पाकिस्तान को भी बाहर ले आते हैं, तो भी यह अहम नियुक्ति नियमानुसार ही होनी है. इसमें उनकी राय से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. वे इसे प्रभावित कर ही नहीं सकते.
सलमान ग़नी के मुताबिक़, अगर सरकार नए आर्मी चीफ़ के बारे में ऐलान करती है, तो पीटीआई का लॉन्ग मार्च आंदोलन पूरी तरह से ख़त्म हो जाएगा.
अगर प्रभावित करना है तो पीटीआई देरी के बजाये जल्दी क्यों नहीं पहुंचना चाहती?
यहां सवाल यह भी है कि अगर पीटीआई की मंशा सेना प्रमुख की नियुक्ति के मुद्दे को प्रभावित करने की है तो वह क्यों नहीं चाहेगी कि वह जल्द रावलपिंडी या इस्लामाबाद में दाख़िल हों, ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके?
सलमान ग़नी के मुताबिक़ पीटीआई को पता है कि उनके पास लोगों की वो संख्या नहीं है जितनी उन्हें चाहिए थी. और इसकी एक वजह शायद हमले के बाद लोगों में डर और दहशत भी हो सकती है.
इमरान ख़ान पर हमले के बाद से दहशत का भी माहौल बना है, जिसकी वजह से लोग बाहर कम निकल रहे हैं. दूसरा, इमरान ख़ान ख़ुद भी लगातार विरोधाभासी बयान दे रहे हैं.
पिछले कुछ समय से वे जिन मुद्दों पर खड़े थे, अब उन सभी पर उनके बयानों में विरोधाभास सामने आ रहा है. इसकी वजह से भी जनता के समर्थन में कमी होती है.
सलमान ग़नी का यह भी मानना है कि 'इमरान ख़ान के सेना नेतृत्व या स्टेबलिशमेंट को लगातार निशाना बनाने से उनकी अपनी पार्टी के भीतर भी लोगों की राय बदली है.
' पर्यवेक्षकों के मुताबिक़, लोगों की कम संख्या की एक वजह यह भी हो सकती है कि इस बार इमरान ख़ान ख़ुद मार्च का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं.
सलमान ग़नी के मुताबिक़ पीटीआई की रणनीति यह भी हो सकती है कि जब मार्च रावलपिंडी पहुंचे तो इमरान ख़ान शारीरिक रूप से स्वस्थ होकर ख़ुद इसकी अगुवाई करें, जिसमें वक्त लगेगा.
इस तरह वे सेना प्रमुख की नियुक्ति की तारीख़ के ऩजदीक पहुंचेंगे, उनका मानना है कि वे इस मामले को बेहतर तरीक़े से प्रभावित कर पाएंगे.
" महत्वपूर्ण तैनाती का लॉन्ग मार्च से कोई लेना-देना नहीं है"
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ का नेतृत्व कह चुका है कि उनके लॉन्ग मार्च का सेना प्रमुख की नियुक्ति से कोई संबंध नहीं है.
लॉन्ग मार्च के दोबारा शुरू होने से पहले लाहौर में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत के दौरान पीटीआई के उपाध्यक्ष शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा था कि उनके लॉन्ग मार्च का इस नियुक्ति के मुद्दे से कोई संबंध नहीं है.
उन्होंने कहा कि इमरान ख़ान की मांग बहुत स्पष्ट रही है और अभी भी यही है कि देश में जल्द आम चुनाव हों और सरकार इससे भाग रही है. हमारा लॉन्ग मार्च सरकार पर आम चुनाव की जल्द से जल्द तारीख़ देने के लिए दबाव बनाने के लिए है.
शाह महमूद क़ुरैशी ने इस धारणा का भी खंडन किया है कि लॉन्ग मार्च को जनता का उस तरह समर्थन नहीं मिला है जिसकी पीटीआई को उम्मीद थी.
उन्होंने कहा कि दुनिया ने ख़ुद देखा कि इमरान ख़ान की एक आवाज़ पर कितनी बड़ी संख्या में लोग खड़े हो गए और लॉन्ग मार्च का स्वागत किया. और अब भी लोग इमरान ख़ान की कॉल पर तैयार बैठे हैं.
हाल ही में शाह महमूद क़ुरैशी ने वज़ीराबाद से लांग मार्च को दोबारा शुरू करने के मौक़े पर वज़ीराबाद के लोगों का शुक्रिया अदा किया कि वो इतनी बड़ी संख्या में शामिल हुए हैं.
पीटीआई नेतृत्व ने ज़ोर देकर कहा है कि लॉन्ग मार्च की अवधारणा यही है कि लोग धीरे-धीरे चलते हुए अपनी मंज़िल की ओर यात्रा जारी रखते हैं. हम लोगों को थकाना भी नहीं चाहते. इसलिए हमने तय किया है कि हम रात में सफ़र नहीं करेंगे केवल दिन में ही सफ़र किया जायेगा.
याद रहे कि पीटीआई का लॉन्ग मार्च शुरू से ही इसी रणनीति पर चल रहा है, जिसमें मार्च में शामिल होने वाले लोग रात में यात्रा नहीं करते हैं.
पीटीआई के नेतृत्व के मुताबिक़, जिस शहर में लॉन्ग मार्च होता है, वहां के स्थानीय लोग इसमें हिस्सा लेते हैं. उपाध्यक्ष शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा कि लॉन्ग मार्च जब रावलपिंडी पहुंचेगा तो देश के तमाम शहरों से लोग एक बार फिर इसमें शामिल होंगे.
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