अंटार्कटिका में टूटकर गिरा दिल्ली से 4 गुना बड़ा आइसबर्ग, खतरा बढ़ा
अंटार्टिका में बड़ा आइसबर्ग टूटकर हुआ अलग, बढ़ा सकता है वैश्विक समुद्र का जल स्तर, दिल्ली से चार गुना बड़ा है यह आईसबर्ग
पेरिस। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना आने वाले समय में कितना खतरनाक साबित हो सकता है इस बात का अंदाजा आप अंटार्टिका में बड़े आइसबर्ग यानि हिमखंड के अलग होने से लगा सकते हैं। इस हिमखंड के अलग होने से वैश्विक समुद्री स्तर में तकरीबन 10 सेंटीमीटर की बढ़ोत्तरी की आशंका जताई गई है, जिसका मतलब है कि समुद्री तक पर बसी आबादी के लिए आने वाला समय मुश्किलभरा हो सकता है।
दिल्ली से चार गुना बड़ा है यह आइसबर्ग
अंटार्टिका में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा आइसबर्ग लार्सेन सी का एक बड़ा हिस्सा टूटकर अलग हो गया है। बताया जा रह है कि इस हिमखंड का वजन खरबों टन से अधिक है, यही नहीं इस बात की भी संभावना जताई जा रही है कि यह अबतक का सबसे बड़ा आइसबर्ग है जो टूटकर अलग हुआ है। इसका आकार पांच हजार 80 वर्गफीट किलोमीटर है। इसकी विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह भारत की राजधानी नई दिल्ली से तकरीबन चार गुना बड़ा है। यही नहीं गोवा के आकार से तकरीबन डेढ़ गुना बड़ा है और न्यूयॉर्क शहर से 7 गुना बड़ा है।
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2014 में आइसबर्ग के टूटने की प्रक्रिया हुई थी तेज
वैज्ञानिको को इस बात का पहले से ही अंदाजा था कि यह आइसबर्ग टूटकर अलग हो सकता है। लार्सेन सी में जिस तरह से बड़ी दरार आई थी, उसपर वैज्ञानिकों की नजर थी, यह पिछले कुछ दशकों में बड़ी होती गई, लेकिन 2014 से यह दरार काफी तेजी से बढ़ने लगी, जिसके बाद से इसके टूटने की संभावना काफी बढ़ गई थी।
कार्बन उत्सर्जन है वजह
वैज्ञानिकों की मानें तो यह 200 मीटर मोटा आइसबर्ग बहुत दूर तक तैरकर नहीं जाएगा, लेकिन इसपर नजर रखने की जरूरत है, हवा और दबाव मुमकिन है कि इसे पूर्वी अंटार्टिका की ओर ढकेल दे, ऐसे में यह जहाजों के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकता है। वहीं घटना पर वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी अहम वजह है कार्बन उत्सर्जन, जिसके चलते ग्लेशियर का तापमान बढ़ा है, जिसकी वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। आपको बता दें कि कार्बन उत्सर्जन मुख्य रूप से O3 गैस से होता है, जिसे एसी और फ्रिज में इस्तेमाल किया जाता है, इसके अलावा तमाम इंडस्ट्री में भी इस गैस का इस्तेमाल किया जाता है।
क्या होगा भारत पर असर
वहीं अगर इस आइसबर्ग के टूटने से भारत पर पड़ने वाले असर पर नजर डालें तो इससे समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है, जिसका सीधा असर अंडमान और निकोबार में देखने को मिलेगा,जिसके चलते बंगाल की खाड़ी के कई टापू डूब सकते हैं जोकि सुंदरवन हिस्से में आते हैं। हालांकि अगर इसकी अरब सागर को होने वाले नुकसान के तौर पर देखा जाए तो इसका असर भारत पर कम होगा। इसके अलावा इस आइसबर्ग के अलग होने से भारत के 7500 किलोमीटर समुद्री तट को भी नुकसान पहुंच सकता है।