क्रिस्टियानो रोनाल्डो के सऊदी अरब आने से कितना कुछ बदलने वाला है?
बीत 14 सालों में क़तर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने यूरोपीय फ़ुटबॉल में काफ़ी निवेश किया है.
अपने करियर के आख़िरी पड़ाव पर आकर क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने मध्य पूर्व की राह पकड़ी और यह उनके लिए जैकपॉट निकलने से कम नहीं है. सऊदी अरब के फ़ुटबॉल क्लब अन नासेर के साथ रोनाल्डो का अनुबंध 200 मिलियन यूरो सालाना का है. इस डील ने उन्हें फ़ुटबॉल इतिहास का सबसे कमाई करने वाला खिलाड़ी बनाया.
37 साल की उम्र में प्रोफ़ेशनल फ़ुटबॉल में खिलाड़ियों की कीमत कम होने लगती है लेकिन क्रिस्टियानो रोनाल्डो को अपने ब्रैंड वैल्यू का बखूबी अंदाज़ा है और वे सही समय पर सही फ़ैसला करना भी जानते हैं. क़तर में खेले गए फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप मुक़ाबले में वे अपनी टीम के लिए बहुत प्रभावी प्रदर्शन नहीं कर सके, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने सबसे महंगा क़रार करने का कारनामा कर दिखाया है.
दरअसल रोनाल्डो के सऊदी अरब के फ़ुटबॉल क्लब से अनुबंध को एक बड़े दायरे में देखा जाना चाहिए. मध्य पूर्व के खेल विश्लेषकों की मानें तो इस डील ने सऊदी अरब और क़तर जैसे मध्य पूर्व देशों के दुनिया के दिग्गज फ़ुटबॉल खिलाड़ियों के जुड़ने का रास्ता खोल दिया है. इन देशों के पास पैसों की कमी नहीं है और वे अपना पैसा इन बड़े खिलाड़ियों पर लुटाने की रणनीति पर भी काम करते दिख रहे हैं. नहीं तो यह किसने सोचा होगा मैनचेस्टर यूनाइटेड, रियाल मैड्रिड और यूवेंट्स जैसे क्लब से खेल चुके रोनाल्डो फ़ुटबॉल को अलविदा कहने से पहले सऊदी अरब और क़तर का रुख़ करेंगे.
1970 के दशक में सऊदी अरब इसी तरह से दुनिया भर के ऑयल इंजीनियरों और ब्लू कॉलर वाले प्रोफ़ेशनल्स वर्करों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था. उस वक़्त खाड़ी देशों में फ़ुटबॉल अपने शुरुआती दौर में ही था लेकिन उस दौर में भी सऊदी अरब के अल हिलाल क्लब ने दुनिया भर के फ़ुटबॉल प्रेमियों को चौंकाया था.
1970 के वर्ल्ड चैंपियन रिवेलिनो ने की थी शुरुआत
1970 में ब्राज़ील की टीम तीसरी बार वर्ल्ड चैंपियन बनी थी. पेले के साथ ही इस वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने वाले रिवेलिनो ने अपने 16 साल लंबे करियर के बाद सऊदी अरब के अल हिलाल क्लब का दामन थामा था. मैक्सिको में वर्ल्ड कप जीतने वाली ब्राज़ीली टीम को ड्रीम टीम कहा जाता है. इस टीम के स्टार रहे रिवेलिनो ने 1978 में अल हिलाल के साथ तीन साल का अनुबंध किया था.
ब्राज़ील की टीम में अटैकिंग मिडफ़ील्डर के तौर पर खेलते रहे रिवेलिनो जब बाएं पैर से एंगल बनाता हुआ शाट्स खेलते थे तो उसे रोकना मुश्किल होता था. वे खाड़ी देशों में भी खासे कामयाब रहे. उन्होंने अपनी टीम को सऊदी प्रोफ़ेशनल लीग का खिताब भी दिलाया और कुल 39 गोल किए.
तो ज़ाहिर है कि रोनाल्डो को जिस आकर्षक ऑफ़र ने लुभाया है, वह उनसे पहले भी कई खिलाड़ियों को लुभाता आया है. मैं ख़ुद जब मई, 2012 में भारत से क़तर शिफ़्ट हुआ था, उसी दौर में क़तर के सबसे लोकप्रिय क्लब अल साद ने राउल गोंज़ालेज़ को अनुबंधित किया था. राउल स्पेनिश फ़ुटबॉल के इतिहास में सबसे प्रतिष्ठित खिलाड़ियों में एक रहे हैं. राउल जहां खेलने आए वहां फ़ुटबॉल अचानक से मुख्य केंद्र में आ गया और एक दशक बाद ही क़तर ने वर्ल्ड कप की मेजबानी की.
कुछ आलोचकों का कहना है कि खाड़ी देश लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए इस तरह के अनुबंध करते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि क़तर और सऊदी अरब जैसे देश ना केवल खेल की सुविधाओं को बेहतर बना रहे हैं, बल्कि अपने क्लबों में विश्व स्तरीय खिलाड़ियों को अनुबंधित कर रहे हैं. और तो और, इंटरनेशनल खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन कर रहे हैं.
जब सऊदी अरब में तेल के भंडार मिले, तब मध्य पूर्व में इसी देश को धन संपदा से परिपूर्ण माना जाता था लेकिन जब क़तर ने अपने उत्तर-पूर्व के क्षेत्र में प्राकृतिक गैस भंडार को तलाशा तो उसकी संपत्ति भी तेज़ी से बढ़ने लगी. इसके बाद यूरोप और भारत जैसे देशों को एलएनजी गैस बेचकर क़र दुनिया की आर्थिक शक्तियों में शामिल हो गया है.
क़तर अपने मौजूदा शासक आमिर शेख तमीम बिन हमद अल थानी ख़ुद फ़ुटबॉल प्रेमी है, यही वजह है कि क़तर फ्रेंच क्लब पेरिस सेंट जर्मेन (पीएसजी) का स्वामित्व भी ख़रीद चुका है, जिसमें आधुनिक फ़ुटबॉल के दिग्गज़ लियोनेल मेसी, नेयमार और कैलिएन एमबापे खेलते हैं.
कितना फ़ायदा होगा?
दूसरी तरफ़ पांच बार के बेलोन डी'ओर विजेता क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने गुणवत्ता के बदले पैसे को तरज़ीह दी है. उन्होंने भारी भरकम रकम के सामने यूरोपी के सर्वश्रेष्ठ क्लब के ऑफ़र को ठुकरा दिया है. निश्चित तौर पर सऊदी अरब फ़ुटबॉल के इतिहास में वे सबसे चमकीले सितारे के तौर पर जुड़े हैं लेकिन उनके जुड़ने से सऊदी फ़ुटबॉल या फिर इलाके की फ़ुटबॉल को बहुत फ़ायदा होगा, ये नहीं कहा जा सकता.
उनसे पहले 1994 की वर्ल्ड चैंपियन ब्राज़ील के रोमारियो और बेबेटो की जोड़ी भी बहुत ज़्यादा पैसों के लिए सऊदी अरब पहुंची थी लेकिन वे लंबे समय तक यहां टिके नहीं. लेकिन कुछ फ़ायदा तो ज़रूर होता है. बड़े खिलाड़ियों के क्लब से जुड़ने पर ब्रैंडिंग और विज्ञापन का खेल बड़ा हो जाता है. मध्य पूर्व देशों के क्लब बड़े खिलाड़ियों को अनुबंधित करके पश्चिम के देशों के साथ व्यावसायिक नेटवर्क बढ़ाने की कोशिश भी करते हैं.
ब्रैंड के तौर पर समझें, तो क्रिस्टियानो रोनाल्डो, अल नासेर क्लब की तुलना में बहुत बड़े ब्रैंड हैं, उनके क्लब से जुड़ने के बाद ही क्लब चर्चाओं में आया है. जिस तरह से नेयमार 2017 में बार्सिलोना से पीएसजी पहुंचे या फिर मेसी ने पिछले सत्र लीग 1 क्लब को जॉइन किया था, इन सबसे क़तर की ब्रैंडिंग मज़बूत हुई, उसी तरह से रोनाल्डो के सऊदी अरब के क्लब से जुड़ने पर सऊदी अरब की ब्रैंडिंग मज़बूत होगी.
दरअसल व्यावसायिक नज़रिए से भी खाड़ी देशों की दिलचस्पी अब पेट्रोलियम के कुओं से दूसरी चीज़ों पर जा रही है और उन्हें यूरोपीय फ़ुटबॉल का बाज़ार भी निवेश के लिहाज से उपयुक्त लग रहा है. बीते 14 सालों में क़तर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने यूरोपीय फ़ुटबॉल में काफ़ी निवेश किया है. अबू धाबी के शाही परिवार ने 2008 में मैनचेस्टर सिटी को ख़रीदा था.
इसके तीन साल बाद क़तर ने फ्रेंच क्लब पीएसजी को 2011 में ख़रीदा. 2021 में सऊदी अरब के नेतृत्व वाले कांसोर्टियम ने प्रीमियर लीग के क्लब न्यूकैसल यूनाइटेड को तीन सौ मिलियन पाउंड से ज़्यादा की रकम में ख़रीदा. सऊदी अरब के अब्दुला बिन मोसाद बिन अबदुल्लाज़ीजड अल सौद ने इंग्लिश फ़ुटबॉल लीग चैंपियनशिप के क्लब शैफ़ील्ड यूनाइटेड को 2013 में ख़रीदा था.
खाड़ी देशों की क्यों है फ़ुटबॉल पर नज़र
दरअसल जिस तरह से दुनिया भर में इलेक्ट्रिक वाहनों का ज़ोर बढ़ रहा है, ऐसे में खाड़ी देशों को भी अंदाज़ा है कि केवल पेट्रोलियम आधारित अर्थव्यवस्था टिकाऊ अर्थव्यवस्था नहीं रहने वाली है.
हाल में फ़ुटबॉल को लेकर भारी भरकम निवेश से सऊदी अरब, क़तर और संयुक्त अरब अमीरात को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा भी ख़ूब मिली है. इन देशों के पैसे से पीएसजी, मैनचेस्टर सिटी और न्यूकैसल यूनाइटेड जैसे क्लब वित्तीय संकट से बाहर निकल आए हैं और यूरोपीय फ़ुटबॉल सर्किट में उनकी स्थिति बेहतर हुई है.
संयुक्त अरब अमीरात के स्वामित्व वाली मैनचेस्टर सिटी और क़तर के स्वामित्व वाली पीएसजी- दोनों ने बीते एक दशक में आपस में एक दर्जन से अधिक टाइटिल जीते हैं.
खाड़ी देशों के यूरोपीय फ़ुटबॉल में निवेश की एक बड़ी वजह, इस बाज़ार का तेज़ी से बढ़ना है. कोविड संक्रमण के दौर से पहले, 2019 में यूरोप के 32 शीर्ष क्लब नौ प्रतिशत की दर से बढ़ रहे थे.
आठ सालों में इन क्लबों का राजस्व 65 प्रतिशत बढ़ गया था. इसके अलावा खाड़ी देशों को सामाजिक और आर्थिक तौर पर दूसरे फ़ायदे भी होते हैं. यूरोपीय फ़ुटबॉल क्लब ख़रीदने से खाड़ी देशों की विमानन सेवा और पर्यटन उद्योग को लाभ पहुंचा है.
खाड़ी देशों में खेलने वाले फ़ुटबॉल स्टार
1998 में अल नासेर ने बुल्गारिया के सबसे बड़े खिलाड़ी हर्सिटो स्टोइचकोव को अनुबंधित किया था. हालांकि वे वहां बहुत दिन नहीं रहे लेकिन स्टोइचकोव ने उस सत्र में सऊदी अरब को एशियाई चैंपियन बना दिया था.
1994 के वर्ल्ड चैंपियन टीम के सदस्य रहे बेबेटो केवल पांच मुक़ाबला खेल सके और 2002 में रिटायर होने से पहले इन मुक़ाबलों में केवल एक गोल कर सके.
बेबेटो के साथ ब्राज़ील को वर्ल्ड चैंपियन बनाने वाले रोमारियो ने 2003 में क़तर के शीर्ष क्लब अल साद के साथ 100 दिनों का अनुबंध 1.5 मिलियन डॉलर में किया था. हालांकि वे बेहद कामयाब नहीं हुए और तीन मैचों में एक भी गोल नहीं कर सके थे.
अर्जेंटीना के ज़ोरदार स्ट्राइकर गैब्रिएल बातिस्तुता भी क़तर के अल अरबी क्लब की ओर से दो सत्र में खेले.
2007 में ब्राज़ील के स्टार डेनिल्सन भी अल नासेर पहुंचे थे, वे उस वक़्त के सबसे महंगे खिलाड़ी आंके गए लेकिन वे महज दो महीने तक क्लब के साथ रहे.
1995 के बेलोन डी'ओर आंके गए जॉर्ज वेहा इस वक्त लाइबीरिया के राष्ट्रपति हैं, उन्होंने 2001 से 2003 के बीच दो सत्रों में अबू धाबी के अल जज़ीरा क्लब से जुड़े. जबकि 2006 की वर्ल्ड चैंपियन इटली की टीम में शामिल रहे फैबियो कनवारो ने दुबई के अलअहली क्लब को 2011 में जॉइन किया था.
2003-04 में क़तर के कई क्लब से कई विदेशी खिलाड़ी जुड़े थे, जिसमें स्पेन के पूर्व कप्तान फर्नांडो हियरो शामिल थे. 2015 में क़तर के अल साद क्लब ने 2010 के वर्ल्ड चैंपियन और बार्सिलोना के स्टार खिलाड़ी जावी हर्नेंडेज को अनुबंधित किया था.
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