फ़्रांस की अर्थव्यवस्था के लिए कितने महंगे पड़े सरकार विरोधी प्रदर्शन
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य ग़रीब कामकाजी लोगों के हालातों और आर्थिक चुनौतियों को दुनिया के सामने लाना है और इसे लेकर समाज में समर्थन भी मिल रहा है.
हालांकि शुक्रवार को हुई एक रायशुमारी में ये समर्थन कम होता नज़र आया है लेकिन ये अभी भी 66 प्रतिशत है.
वहीं रायशुमारी के मुताबिक़ राष्ट्रपति मैक्रों की स्वीकार्यता रेटिंग लगातार गिर रही है और ये 23 प्रतिशत तक पहुंच गई है.
फ़्रांस के वित्त मंत्री का कहना है कि देश में चल रहे महंगाई विरोधी प्रदर्शन अर्थव्यवस्था के लिए तबाही बन गए हैं.
तेल के बढ़ते दामों, रोज़-मर्रा की चीज़ों की महंगाई और अन्य मुद्दों को लेकर फ़्रांस का कामकाजी वर्ग बीते चार सप्ताह से हर शनिवार-रविवार प्रदर्शन कर रहा है.
इस शनिवार को सवा लाख से अधिक लोगों ने प्रदर्शन किया और 1200 से अधिक हिरासत में लिए गए.
सोमवार को राष्ट्र के नाम संदेश में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों मौजूदा संकट से निपटने के प्रस्तावों की घोषणा कर सकते हैं.
वहीं वित्त मंत्री ब्रूनो ले माइरे ने मौजूदा स्थिति को समाज और लोकतंत्र के लिए संकट बताया है.
पेरिस में प्रदर्शनों के दौरान तोड़ी गई दुकानों का जायज़ा लेने पहुंचे वित्त मंत्री ने कहा, "ये व्यापार के लिए तबाही है, ये हमारी अर्थव्यवस्था के लिए तबाही है."
प्रदर्शनों का सबसे ज़्यादा असर राजधानी पेरिस पर रहां जहां दस हज़ार से अधिक लोग सड़कों पर निकले. उत्तेजित प्रदर्शनकारियों ने मकानों के शीशे तोड़े, दुकानें लूटीं और गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया.
पेरिस के डिप्टी मेयर इमैनुएल ग्रेगोइरे ने स्थानीय रेडियो से बात करते हुए कहा, "बीते सप्ताह के मुक़बाल कल कहीं ज़्यादा नुक़सान हुआ है."
हालांकि उन्होंने ये भी बताया कि बीते सप्ताह के मुकाबले इस बार कम लोग घायल हुए हैं.
इसी बीच फ़्रांस के विदेश मंत्री जां ईव ले ड्रियां ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को जबाव दिया है. शनिवार को किए एक ट्वीट में ट्रंप ने पेरिस में चल रहे प्रदर्शनों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ दिया था.
ले ड्रियां ने कहा, "मैं राष्ट्रपति ट्रंप से कहता हूं, और फ़्रांसिसी राष्ट्रपति भी ये कहना चाहते है कि हमारे देश को हम पर छोड़ दो."
राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों सोमवार को स्थानीय समयानुसार रात आठ बजे राष्ट्र को संबोधित करेंगे.
ट्रेड यूनियन के करीबी सूत्रों के मुताबिक़ सोमवार को वो व्यापार जगत के नेताओं और ट्रेड यूनियन नेताओं से मुलाक़ात कर सकते हैं.
प्रदर्शनों के दौरान राष्ट्रपति मैक्रों ने अभी तक कोई बड़ा बयान नहीं दिया है.
आख़िर कितना नुक़सान हुआ है?
नुक़सान का सही अंदाज़ा लगाना अभी मुश्किल है लेकिन फिलहाल इतना स्पष्ट है कि भारी नुक़सान हुआ है.
ले पेरीसियन अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी में पचास से अधिक वाहन जला दिए गए हैं और दर्जनों दुकानें लूटी गई हैं. पेरिस प्रशासन का कहना है कि इन प्रदर्शनों की वजह से अरबों यूरो का नुक़सान हुआ है.
शुक्रवार को फ्रेंच रिटेल फ़ेडेरेशन ने रायटर्स से कहा था कि प्रदर्शन शुरू होने के बाद से अब तक रिटेल व्यापारियों को एक अरब यूरो से अधिक का नुक़सान हो चुका है.
वित्तमंत्री ले माइरे ने बीते सप्ताह कहा था कि प्रदर्शनों की वजह से रेस्त्रां के व्यापार में बीस से पचास फ़ीसदी तक की कमी आई है.
छोटे और लघु अद्योगों के संघ के प्रमुख फ्रांस्वा एस्सेलीं ने बीते सप्ताह कहा था कि इन उद्योगों को दस अरब यूरो तक का नुक़सान हो सकता है.
प्रदर्शनों की वजह से फ़्रांस के पर्यटन उद्योग में भी कमी आने की आशंका ज़ाहिर की गई है. साल 2017 में चार करोड़ से अधिक सैलानी पेरिस पहुंचे थे.
क्या है पीली जर्सी अभियान?
प्रांस में ये प्रदर्शन डीज़ल पर टैक्स बढ़ाने के विरोध में शुरू हुए थे. फ़्रांस में वाहन मालिक अधिकतर डीज़ल का इस्तेमाल करते हैं. यहां अन्य ईंधन के मुक़ाबले डीज़ल पर टैक्स काफ़ी कम है.
बीते एक साल में डीज़ल की क़ीमतों में 23 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो गई है. राष्ट्रपति मैक्रों ने एक जनवरी से डीज़ल पर 6.5 प्रतिशत अधिक टैक्स और पेट्रोल पर 2.9 प्रतिशत अधिक टैक्स लगाने का ऐलान किया था.
राष्ट्रपति मैक्रों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ रहे कच्चे तेल के दामों की वजह से ईंधन महंगा हो रहा है. उन्होंने ये भी कहा है कि अक्षय ऊर्जा में निवेश बढ़ाने के लिए जीवाश्व ईंधन पर टैक्स बढ़ाना ज़रूरी था.
फ्रांस में हो रहे प्रदर्शनों को पीली जर्सी अभियान इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि प्रदर्शनकारी चमकीले पीले जैकेट पहनकर सड़कों पर निकल रहे हैं.
दूर से ही दिखने वाले चमकीली पट्टियों वाले ये जैकेट ड्राइवर पहनते हैं. फ़्रांसीसी क़ानून के तहत हर वाहन में इस तरह के जैकेट होना आवश्यक है.
प्रदर्शनों के बाद से सरकार ने ईंधन पर प्रस्तावित टैक्स को कुछ महीनों के लिए वापस ले लिया है और साल 2019 में बिजली और गैस के दाम न बढ़ाने का फ़ैसला लिया है.
लेकिन अब प्रदर्शनकारियों के मुद्दों में अधिक वेतन, कम टैक्स, बेहतर पेंशन और यूनिवर्सिटी में आसानी से प्रवेश जैसे मुद्दे भी शामिल हो गए हैं.
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य ग़रीब कामकाजी लोगों के हालातों और आर्थिक चुनौतियों को दुनिया के सामने लाना है और इसे लेकर समाज में समर्थन भी मिल रहा है.
हालांकि शुक्रवार को हुई एक रायशुमारी में ये समर्थन कम होता नज़र आया है लेकिन ये अभी भी 66 प्रतिशत है.
वहीं रायशुमारी के मुताबिक़ राष्ट्रपति मैक्रों की स्वीकार्यता रेटिंग लगातार गिर रही है और ये 23 प्रतिशत तक पहुंच गई है.