हंबनटोटा पोर्ट हथियाने चीन ने की थी बड़ी दगाबाजी, संकट में फंसे श्रीलंका को कैसे ड्रैगन ने ठगा, हुआ खुलासा
हंबनटोटा बंदरगाह दक्षिणी श्रीलंका में पूर्व-पश्चिम समुद्री मार्ग के करीब स्थित है। इसका निर्माण 2008 में शुरू हुआ था और इसके निर्माण के लिए चीन ने करीब 1.3 अरब डॉलर का कर्ज श्रीलंका को दिया था।
कोलंबो, जून 26: दूसरे देशों की जमीन हथियाने के लिए दुनिया के लिए खतरनाक बन चुके चीन ने नकदी संकट में फंसे श्रीलंका को कैसे ठगा था, इसको लेकर रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है। क्या हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए लीज पर लेने के लिए चीन ने एक खतरनाक जाल बनाकर उसमें श्रीलंका को फांसा था और श्रीलंका को पोर्ट को लीज पर देने के लिए मजबूर कर दिया था, इसको लेकर रिपोर्ट में खुलासा किया गया है। (तस्वीर क्रेडिट- Hambantota Port)
कितना अहम है हंगनटोटा पोर्ट?
हंबनटोटा बंदरगाह दक्षिणी श्रीलंका में पूर्व-पश्चिम समुद्री मार्ग के करीब स्थित है। इसका निर्माण 2008 में शुरू हुआ था और इसके निर्माण के लिए चीन ने करीब 1.3 अरब डॉलर का कर्ज श्रीलंका को दिया था, जबकि इस बंदरगाह का निर्माण चीन हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी (सीईसी) और चीन हाइड्रो कॉर्पोरेशन के संयुक्त उद्यम द्वारा किया गया था। इस परियोजना का पहला चरण 2010 में पूरा हुआ था और बंदरगाह ने नवंबर 2011 में वाणिज्यिक परिचालन शुरू कर दिया था। परियोजना का दूसरा चरण 2012 में शुरू हुआ था और 2015 में पूरा हो गया था। बंदरगाह के निर्माण और इसका ऑपरेशन शुरू करने में कुल खर्च लगभग 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर था, जिसमें से 1.3 अरब डॉलर चीन ने दिया था।
श्रीलंका को चीन ने कैसे फंसाया?
चीन ने श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह को लेकर ठीक वैसे ही हसीन सपने दिखाए, जैसे वो पाकिस्तान को सीपीईसी प्रोजेक्ट के नाम पर दिखा रहा था। लेकिन, ये देश चीनी सपनों में इतने मशगूल हो गये, कि ये भूल गये, कि भला बंदरगाह लेकर क्या करेंगे, अगर देश में किसी सामान का प्रोडक्शन ही नहीं हो रहा है। खासकर उस बंदरगाह का, जिसकी लागत अरबों में आए। 2016 तक, श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी (SLPA) के स्वामित्व वाले हंबनटोटा पोर्ट को लगभग 46.7 अरब श्रीलंकन रुपये का नुकसान हो गया था। इसकी सबसे बड़ी वजह ये थी, कि ना तो श्रीलंका का निर्यात उतना था, कि वो अपनी बदौलत इस बंदरगाह के निर्माण में आए खर्च की भरपाई कर सके और ना ही हंबनटोटा पोर्ट उस समुद्री रास्ते में पड़ता है, जिससे दुनियाभर के व्यापारिक जहाज गुजरे और श्रीलंका फायदा हो। लिहाजा, ये पोर्ट लगातार घाटे में जाता रहा।
चीन के जाल में बुरी तरह फंसा श्रीलंका
श्रीलंका की सरकार ने हंबनटोटा पोर्ट के नाम पर अपने गले में पत्थर बांध लिया था और अब उसे डूबने से कोई बचा नहीं सकता था। श्रीलंका को इस बंदरगाह (लगभग 2036 तक) के निर्माण के लिए लिए गए ऋण के लिए मूलधन और ब्याज के रूप में चीन को लगभग 1.7 अरब अमेरिकी डॉलर चुकाना पड़ा। उस समय इस ऋण के लिए ऋण चुकौती सालाना लगभग 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर थी और पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की कमर तोड़ने के लिए ये प्रोजेक्ट काफी था। जबकि, ये पूरी तरह से साफ हो चुका था, कि यह महंगी परियोजना व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य नहीं थी जैसा कि चीन ने श्रीलंका के सामने इस बंदरगाह को लेकर सपने दिखाए थे और कहा था, कि इस बंदरगाह से श्रीलंका की सूरत बदल जाएगी। और वाकई, इस बंदरगाह ने श्रीलंका की सूरत ही बदलकर रख दी।
श्रीलंका को उलझाता गया चीन
श्रीलंका के लिए हंगनटोटा बंदरगाह गले की हड्डी बन चुका था और फिर चीन ने श्रीलंको को अपनी जाल में और उलझाना शुरू कर दिया। बार-बार होने वाले नुकसान की भरपाई करने के बहाने, एक विस्तृत योजना तैयार की गई ताकि चीन इस बंदरगाह के स्वामित्व को 99 वर्षों के लिए सुरक्षित कर सके और बंदरगाह के प्रबंधन और संचालन के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी में निवेश किया जा सके। दिसंबर 2016 में, श्रीलंकाई सरकार ने घोषणा कर दी, भीषण घाटे के चलते से व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग्स कंपनी (CMPort) के सहयोग से बंदरगाह का पुनर्गठन करना आवश्यक बना दिया है।
...और चीन के हाथ में गया नियंत्रण
2016 और 2017 के बीच श्रीलंकाई सरकार और सीएमपोर्ट के बीच कई दस्तावेजों का निष्कर्ष निकाला गया था। इन दस्तावेजों पर जुलाई 2017 में एक रियायत समझौते पर हस्ताक्षर किए गये, जिसके परिणामस्वरुप, दो नव निर्मित संस्था, जिसे हंबनटोटा इंटरनेशनल पोर्ट ग्रुप (एचआईपीजी) और हंबनटोटा इंटरनेशनल पोर्ट (एचआईपीएस) कहा जाता है, उसने 99 सालों की अवधि के लिए हंबनटोटा पोर्ट का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया और ये दोनों कंपनियां चीन की हैं। यानि, कर्ज के जाल में बुरी तरह से उलझाकर चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
हंबनटोटा में किसकी कितनी हिस्सेदारी?
इन दो कंपनियों के हाथों में हिस्सेदारी जाने के बाद सीएमपोर्टस एचआईपीजी में 85% हिस्सेदारी और एचआईपीएस में 52% हिस्सेदारी के अधिग्रहण के लिए 1.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का 'निवेश' करने के लिए सहमत हुआ। एचआईपीजी और एचआईपीएस में शेष हिस्सेदारी एसएलपीए को दे दी गई। इस प्रकार, सीएमपोर्ट द्वारा हंबनटोटा पोर्ट में धारित शेयरों का कुल प्रतिशत लगभग 70% है। एचआईपीजी आसपास की भूमि के साथ-साथ बंदरगाह का विकास और प्रबंधन करेगा, जबकि एचआईपीएस बंदरगाह सेवाओं का संचालन करेगा। दिलचस्प बात यह है कि, हंबनटोटा बंदरगाह में चीनी संस्थाओं द्वारा हिस्सेदारी के अधिग्रहण के बाद इस परियोजना के लिए श्रीलंका के ऋण दायित्वों में कोई बदलाव नहीं आया है।
श्रीलंका की संसद में पेश रिपोर्ट में खुलासा
यानि, चीन का डबल गेम देखिए, अपनी कंपनियों के माध्यम से चीन ने हंबनटोटा पोर्ट का नियंत्रण तो अपने हाथों में ले ही लिया है, इसके साथ ही इस बंदरगाह को बनाने के लिए चीन ने श्रीलंका को जितना कर्ज दिया था, वो श्रीलंका को चुकाना होगा। पोर्ट का अधिग्रहण करते समय, एचआईपीजी और एचआईपीएस दोनों को इस संबंध में कोई दायित्व विरासत में नहीं मिला और जीओएसएल हस्तांतरण से पहले मौजूद ऋण के लिए उत्तरदायी बना रहा। श्रीलंका की संसद की सार्वजनिक उद्यम समिति (सीओपीई) के तत्वावधान में हाल ही में हुई सुनवाई (22 जून 2022) के दौरान इसकी पुष्टि की गई, जहां यह पता चला कि 2017 में चीनी कंपनी द्वारा हंबनटोटा बंदरगाह के निर्माण के लिए किए गये निवेश के लिए गए ऋण का भुगतान नहीं किया गया था। इसलिए, श्रीलंका ने ना सिर्फ 99 सालों के लिए हंबनटोटा पोर्ट को चीनी कंपनियों को लीज पर दे दिया है, बल्कि श्रीलंका को इसके बाद भी चीन को कर्ज चुकाना होगा।
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