चीन ने इन देशों में अमेरिका और यूरोप की नींद कैसे उड़ा दी है
पिछले कुछ समय से अमेरिका और यूरोप के कई देश चीन पर निशाना साध रहे हैं. इसकी कई वजहें हैं, लेकिन एक प्रमुख वजह इन दोनों के प्रभाव वाले देशों में चीन की एंट्री है.
पिछले कुछ वर्षों में चीन बाल्कन में एक बड़े खिलाड़ी के रूप में उभरा है. वैसे बाल्कन एक ऐसा क्षेत्र हैं, जहाँ परंपरागत रूप से यूरोप और अमेरिका का प्रभाव रहा है.
अतीत में, इस पहाड़ी इलाक़े के ज़्यादातर देश पश्चिमी यूरोप के लिए चीन के नए सिल्क रोड के प्रवेश द्वार का काम कर रहे हैं. चीन का नया सिल्क रोड पाँच महाद्वीपों में फैला बुनियादी परियोजनाओं का एक महत्वाकांक्षी नेटवर्क है.
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चीन ने इसे सीईईसी (चीन और मध्य-पूर्वी यूरोपीय देशों के बीच सहयोग) का नाम दिया है. वर्ष 2012 में चीन ने ये सहयोग फ़ोरम बनाया था. इसे 17+1 भी कहा जाता है.
लेकिन हाल ही में 28 लाख की आबादी वाले लिथुआनिया ने चीन पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए अपने को इस फ़ोरम से अलग कर लिया था. इस कारण अब ये 16+1 रह गया है.
लिथुआनिया के हटने के बाद अब इसमें अल्बानिया, बोस्निया एवं हर्जेगोविना, बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, ग्रीस, हंगरी, लात्विया, नॉर्थ मेसिडोनिया, मॉन्टेनिग्रो, पोलैंड, रोमानिया, सर्बिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया शामिल हैं.
वर्ष 2012 में पोलैंड के वारसा में इसका गठन हुआ था. इसके बाद हर साल इसका शिखर सम्मेलन अलग-अलग देशों में होता है.
इस फ़ोरम के गठन के बाद से पश्चिमी बाल्कन देशों में चीन का निवेश दोगुना हो गया है. इस समय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में ये निवेश हो रहा है. लेकिन इसने लाखों डॉलर के क़र्ज़ के साथ-साथ कई तरह की चिंताओं को भी जन्म दिया है.
यूरोपीय काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशंस में एक रिसर्चर व्लादीमिर शोपोव ने बीबीसी मुंडो को बताया, "ये प्रभाव मुख्य रूप से बड़ी परियोजनाओं के माध्यम से शुरू हुआ. उदाहरण के तौर पर मॉन्टिनेग्रो या नॉर्थ मेसिडोनिया में राजमार्गों का निर्माण."
मॉन्टिनेग्रो का मामला शायद सबसे चौंकाने वाला है. वर्ष 2014 में मॉन्टिनेग्रो और चीन के बैंक एक्ज़िम ने 94 करोड़ डॉलर के प्राथमिकता वाले एक लोन एग्रीमेंट पर दस्तख़त किए. इस लोन का मक़सद 41 किलोमीटर के राजमार्ग का निर्माण करना था.
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इस परियोजना के आलोचकों ने शुरू से ही चेतावनी दी थी कि ये फ़ायदे का सौदा नहीं है. अब सर्बिया के साप्ताहिक अख़बार व्रेमे ने चेतावनी दी है कि इस परियोजना के कारण इस छोटे से देश की संप्रभुता ख़तरे में पड़ गई है. यहाँ की आबादी 622,000 है.
इस अख़बार में मिलोस वुकोविच लिखते हैं, "टोल टैक्स से मिलने वाले राजस्व से इस क़र्ज़ का भुगतान करने में यहाँ से हर तीन सेंकेंड में एक गाड़ी गुज़रनी होगी और ऐसा चौबीसो घंटे, सप्ताह के सातों दिन अगले 14 साल तक होना होगा."
जिस समय मॉन्टिनेग्रो ने चीन के बैंक के साथ समझौता किया था, उस समय लोन की राशि इस देश की जीडीपी की क़रीब 30 फ़ीसदी थी. ये कहना ग़लत नहीं होगा कि इस समझौते ने चीन को इस देश का मुख्य बैंकर बना दिया.
आज मॉन्टिनेग्रो का सरकारी क़र्ज़ इसके आर्थिक उप्तादन के 103 फ़ीसदी के बराबर है. इसको लेकर इतनी चिंता है कि इस साल के शुरू में मॉन्टिनेग्रो के अधिकारियों ने यूरोपीय संघ से लोन चुकाने में मदद मांगी थी, लेकिन यूरोपीय संघ ने उनका अनुरोध ठुकरा दिया.
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व्लादिमीर शोपोव बुल्गारिया के सोफ़िया विश्वविद्यालय में एशियाई मामलों के प्रोफ़ेसर भी हैं. वे कहते हैं, "मॉन्टिनेग्रो दिवालिया होने की कगार पर है. उसे लोन को लेकर चीन के साथ फिर से बात करनी होगी और इस बातचीत में चीन के पास बढ़त होगी. दरअसल अब चीन के पास मॉन्टिनेग्रो के आर्थिक विकास की शर्तों को निर्धारित करने की शक्ति है."
बाल्कन देशों में चीन के अन्य विवादित निवेशों में हैं- सर्बिया के मुख्य स्टील प्लांट ज़ेलेज़ारा स्मेडेरेवो का अधिग्रहण, बुडापेस्ट से बेलग्रेड तक का एक रेलवे प्रोजेक्ट और बोस्निया एवं हर्ज़ेगोविना में एक बड़ा थर्मल पावर प्लांट. रेलवे प्रोजेक्ट की आर्थिक व्यवहारिका पर सवाल हैं, तो थर्मल पावर प्लांट पर पर्यावरणविदों को चिंता है.
अप्रैल में यूनिक्रेडिट की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन को जो कॉन्ट्रेक्ट्स मिले हैं, उसकी राशि बोस्निया और हर्जेगोविना की जीडीपी की तीन फ़ीसदी, सर्बिया की सात फ़ीसदी, नॉर्थ मेसिडोनिया की आठ फ़ीसदी और मॉन्टिनेग्रो की जीडीपी की 21 फ़ीसदी है.
शोपोव का कहना है कि इन अनुबंध की कुछ शर्तों को लेकर बहुत सारी अनिश्चितताएँ भी हैं.
एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग के केंद्र में
बाल्कन देशों में चीन के कई हित हैं. शोपोव के मुताबिक़ इनमें से एक अहम ये है कि चीन यूरोप के आसपास अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाहता है.
पश्चिमी बाल्कन देश सभी महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों के केंद्र में हैं, जो पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अफ़्रीका और पश्चिम एशिया से क़रीब हैं.
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चीन को ये पता है और इसी कारण उसने एड्रियाटिक सागर के आसपास के कई बंदरगाहों में रुचि दिखाई है.
चीन पहले से ही पिरेयस के बंदरगाह को नियंत्रित करता है, जो ग्रीस का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह है. इसके अलावा तुर्की के तीसरे बड़े पोर्ट कुम्पोर्ट पर भी चीन का ही नियंत्रण है. इसके साथ-साथ दक्षिण यूरोप के कई बंदरगाहों में चीन का शेयर है.
और हाल ही में चीन ने क्रोएशिया में रिजेका बंदरगाह में रियायत हासिल करने के लिए प्रस्ताव दिया था, लेकिन क्रोएशिया ने इसे मंज़ूरी नहीं दी.
क्रोएशिया के प्रेस में छपी रिपोर्ट्स के मुताबिक़ क्रोएशिया पर अमेरिका और यूरोपीय संघ का बहुत दबाव था. इसी कारण चीन की ओर से 50 साल का लाइसेंस हासिल करने के लिए सबसे बेहतरीन ऑफ़र दिया गया था, लेकिन क्रोएशिया ने इसे नामंज़ूर कर दिया. दरअसल इस मामले में राजनीतिक विचार निर्णायक रहे.
यूरोपीय संघ के भविष्य के सदस्य
अल्बानिया, नॉर्थ मेसिडोनिया, मॉन्टिनेग्रो और सर्बिया यूरोपीय संघ में शामिल होने वाले आधिकारिक उम्मीदवार हैं, जबकि बोस्निया एवं हर्ज़ेगोविना और कोसोवो का संगठन में शामिल होने का दीर्घकालीन लक्ष्य है.
इस कारण पश्चिमी बाल्कन भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण से और ज़्यादा रणनीतिक क्षेत्र बन गया है. आज इन देशों में प्रभाव बढ़ाने का अर्थ है कल को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक संघ को प्रभावित करने में सक्षम होने की संभावना.
व्लादीमिर शोपोव कहते हैं, "चीन का निवेश और हस्तक्षेप उसकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है. वो क्षेत्रीय नीतियों में भी दखल देने की हैसियत रखना चाहता है और भविश्य में यूरोपीय संघ में."
वास्तव में चीन का बाल्कन देशों में प्रभाव सिर्फ़ आर्थिक नहीं है.
सांस्कृतिक प्रभाव
सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग के माध्यम से चीन इस क्षेत्र के देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाना चाहता है और इसे मज़बूत करना भी चाहता है.
शोपोव के मुताबिक़, "हर दिन यहाँ के ज़्यादा से ज़्यादा छात्र चीन के विश्वविद्यालयों में जा रहे हैं. इन देशों का शोध के क्षेत्र में चीन के साथ अधिक सहयोग हो रहा है. इससे चीन को अपनी छवि में सुधार करने में मदद मिलती है और उसे मीडिया में भी जगह मिलती है."
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इस क्षेत्र में चीन के सांस्कृतिक प्रभाव का सबसे बढ़िया उदाहरण है- इसे कंफ्यूशियस इंस्टीट्यूट का विस्तार. ये संस्था चीन की सरकार चलाती है और ये दुनियाभर में भाषा और सांस्कृतिक कार्यक्रम कराती है.
चीन का कहना है कि कंफ्यूशियस इंस्टीट्यूट चीन और दुनिया के बीच दोस्ती बढ़ाने में पुल का काम करता है.
लेकिन इसके आलोचक ये कहते हैं कि शिक्षा के नाम पर ये संस्था दूसरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं में प्रोपेगैंडा फैलाने का काम करती है. साथ ही विभिन्न विश्वविद्यालयों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करती हैं.
कुछ लोग तो ये भी दावा करते हैं कि चीन की सरकार इनका इस्तेमाल छात्रों की जासूसी में करती है और इसी कारण से वर्ष 2019 में दुनियाभर के कई विश्वविद्यालयों ने इस एजेंसी की ओर से चलाए जा रहे कार्यक्रमों को बंद कर दिया था.
कंफ्यूशियस इंस्टीट्यूट कोसोवो को छोड़कर हर बाल्कन देशों में है. कोसोवो ने वर्ष 2008 में अपने को आज़ाद घोषित कर दिया था. लेकिन चीन ने उसे मान्यता नहीं दी है.
नॉर्थ मेसिडोनिया में तो ये संस्था सरकारी अधिकारियों के लिए कोर्स का ऑफ़र देती है, जबकि सर्बिया और मॉन्टिनेग्रो में तो कई स्कूलों में कंफ्यूशियस क्लासरूम तक खोले गए हैं.
कोविड19 कूटनीति
हाल फ़िलहाल में चीन ने मास्क और वैक्सीन डिप्लोमेसी के माध्यम से इस क्षेत्र के कई देशों में पहुँच बनाने की कोशिश की है.
वुहान से महामारी शुरू होने के बाद चीन ने अपनी छवि सुधारने के लिए दुनिया के कई हिस्सों में मास्क भेजे.
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कई रिपोर्ट ये बताते हैं कि चीन के अधिकारियों ने यूरोप के कई देशों के अधिकारियों पर इसके लिए दबाव डाला कि वे इसका सकारात्मक आकलन पेश करें.
अप्रैल 2020 के आख़िर में जर्मनी ने ये स्वीकार किया कि चीन के राजनयिकों से उससे संपर्क किया था, क्योंकि मास्क देने के बाद उन्हें जर्मनी की ओर से आभार वाले संदेशों का इंतज़ार था.
हालाँकि जर्मनी में एंगेला मर्केल की सरकार पर ये दबाव काम नहीं आया, सर्बिया के राष्ट्रपति एलेक्ज़ेंडर वूचिच तो इस आभार को एक दूसरे स्तर तक ले गए. चीन की ओर से मेडिकल सहायता लेने वे बेलग्रेड हवाई अड्डे पर पहुँच गए. यही नहीं, जैसे ही चीन का प्रतिनिधिमंडल विमान से उतरा, उन्होंने चीन के झंडे को चूम लिया.
मास्क के अलावा चीन ने इस साल बड़ी संख्या में देशों को वैक्सीन दिए हैं.
मार्च में मॉन्टिनेग्रो को चीन में बनी सायनोफार्म वैक्सीन की 30 हज़ार डोज़ मिली. जबकि बोस्निया और हर्ज़ेगोविना को अप्रैल में इसी वैक्सीन की 50 हज़ार डोज़ मिली. ये वैक्सीन लेने पहुँचे वहाँ के मंत्री एन्किका गुडेलजेविच और ये कहकर आश्वस्त किया कि चीन ने महामारी के दौरान सच्ची दोस्ती दिखाई है.
नॉर्थ मेसिडोनिया को तो सबसे ज़्यादा एक लाख डोज़ मिली. शोपोव कहते हैं कि मास्क कूटनीति से चीन को बहुत लाभ नहीं हुआ था, लेकिन वैक्सीन डिप्लोमेसी से उन्हें सफलता मिली है.
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उन्होंने कहा, "पश्चिमी बाल्कन देशों में वैक्सीन सप्लाई करने में यूरोपीय संघ की निष्क्रियता के कारण पैदा हुए अंतर को चीन पाट रहा है."
भविष्य में इस रिश्ते से जो उम्मीद है और इन देशों में आंतरिक रूप से या पश्चिमी यूरोप में जो चिंताएँ उठती हैं, उससे अलग बात करें, तो बाल्कन देशों में चीन के प्रभाव ने पहले ही उसे कूटनीतिक रूप से फ़ायदा पहुँचा दिया है.
वर्ष 2019 में 22 देशों के एक ग्रुप ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को एक चिट्ठी भेजी थी, जिसमें शिनजियांग प्रांत में वीगर मुसलमानों के लिए कथित रूप से बने प्रताड़ना केंद्रों की आलोचना की गई थी. लेकिन बाल्कन के किसी भी देश ने इस पर दस्तख़त नहीं किए थे.
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