भारतीय बाजार से निवेशकों में निराशा! लगातार दूसरे महीने निकाले रिकॉर्ड निवेश, और गिरेगा रुपया?
पिछले साल अक्टूबर के बाद से ही कई वजहों से विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से अपना निवेश बाहर ले जा रहे हैं। इस दौरान सिर्फ जुलाई और अगस्त महीने में ही उन्होंने फिर से भारत में निवेश किया।
Business: भारतीय बाजार को लेकर विदेशी निवेशकों का रूझान अभी भी अच्छा नहीं हुआ है और फॉरेन पोर्टफोलिया इन्वेस्टर्स ने अक्टूबर महीने में अब तक भारतीय शेयर बाजार से 5 हजार 992 करोड़ रुपए निकाल लिए हैं। समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि, मजबूत अमेरिकी डॉलर होने का गंभीर असर भारतीय शेयर बाजार पर पड़ रहा है और सरकार की कड़े मौद्रिक नीति के बीच विदेशी निवेशकों ने रिकॉर्ड मात्रा में अपने निवेश को भारत से खींचा है। जिसके बाद भारतीय रुपये में और कमजोरी आने की आशंका है।
निवेशकों में निराशा क्यों
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड के आंकड़ों से पता चलता है कि, फॉरेन पोर्टफोलिया इन्वस्टर्स यानि विदेशी निवेशकों ने सितंबर महीने में 7 हजार 624 करोड़ रुपये की इक्विटी बेची थी, यानि इतने रुपये भारतीय बाजार से निकाल लिए थे। वहीं, रिपोर्ट में कहा गया है कि, साल 2022 में अभी तक विदेशी निवेश भारतीय बाजार से एक लाख 74 हजार 781 करोड़ रुपये की इक्विटी बेच चुके हैं। यानि, एक लाख 74 हजार 781 करोड़ रुपये भारतीय बाजार से निकाल चुके हैं। इसका मतलब ये हुआ, कि निवेशकों में फिलहाल भारतीय बाजार को लेकर निराशा है और ये निवेश अमेरिकी बाजार में निवेश कर रहे हैं, ताकि मैक्सिमम मुनाफा कमाया जा सके।
डॉलर की बढ़ रही है डिमांड
पिछले साल अक्टूबर के बाद से ही कई वजहों से विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से अपना निवेश बाहर ले जा रहे हैं। इस दौरान सिर्फ जुलाई और अगस्त महीने में ही उन्होंने फिर से भारत में निवेश किया यानि, इन दो महीने में ही उन्होंने भारतीय बाजार से इक्विटी खरीदा। रुपये के मुकाबले डॉलर में लगातार आ रही मजबूती इसके पीछे सबसे मजबूत वजह है और डॉलर की मजबूती ने विकसित अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी को भी नीचे धकेला है। वहीं, अपनी स्थिति संभालने के लिए एडवांस देशों ने अपनी मॉनेट्री पॉलिसी को काफी सख्त बनाया, जिसका निगेटिव असर भी भारतीय रुपये पर पड़ा है और भारतीय बाजार से तेजी से पैसे निकले। आपको बता दें कि, निवेशक आमतौर पर उन बाजारों से बाहर निकलना पसंद करते हैं, जिनमें उथल-पुथल मची रहती है। निवेशक हमेशा स्थिर बाजार पसंद करते हैं, ताकि उनका निवेश डूबे नहीं।
बाजार की भावनाओं पर विपरीत असर
इसके अलावा भी रुपये के वैल्यू में लगातार हो रही गिरावट और भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार आने वाली कमी ने भी बाजार को कमजोर किया है, जिसका असन निवेशकों की भावनाओं पर पड़ा है। रुपये में गिरावट को रोकने के लिए बाजार में आरबीआई के संभावित हस्तक्षेप के कारण भारत का विदेशी मुद्रा भंडार महीनों से कम हो रहा है। बुधवार को रुपया इतिहास में पहली बार 83 अंक के पार गया। बाजार के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल अब तक रुपये में करीब 11-12 फीसदी की गिरावट आई है। 14 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर दो साल के निचले स्तर 528.367 अरब डॉलर पर आ गया, जो उससे पिछले सप्ताह की तुलना में 4.5 अरब डॉलर कम है। वहीं, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में 100 अरब डॉलर की कमी आई है। इससे यही जाहिर होता है, कि निवेशकों के मन में भारतीय बाजार में अपने निवेश की सुरक्षा को लेकर कुछ दुविधाए बनी हुई हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार का हाल जानिए
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, आरबीआई के आंकड़ों से पता चला है कि, पिछले हफ्ते के मुकाबले भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में 4.5 अरब डॉलर की और कमी आई है। पिछले हफ्ते भारतीय विदेशी मु्द्रा भंडार में 532.868 अरब अमेरिकी डॉलर था। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, भारत की विदेशी मुद्रा संपत्ति, जो कि विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है, वो पिछले हफ्ते के मुकाबले इस हफ्ते में 2.828 अरब डॉलर और कम हो गया है और अब वो घटकर 468.668 अरब अमेरिकी डॉलर पर आ गया है। वहीं, भारतीय सोने के भंडार का मूल्यांकन भी पिछले हफ्ते के मुकाबले इस हफ्ते कम हुआ है और सोने के भंडार में 1.5 अरब डॉलर की कमी आई है। वही अब भारतीय सोने के भंडार का मूल्य 37.453 अरब डॉलर रह गया है। इसके साथ ही आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि, आईएमएफ में भारत का स्पेशल ड्राविंग राइट्स (SDRs) में भी 149 मिलियन डॉलर की कमी आई है और अब ये घटकर 17.433 अरब डॉलर पर आ गया है।
डॉलर से पूरी दुनिया को दर्द
डॉलर के लगातार मजबूत होने के पीछे कोई खास रहस्य नहीं हैं। अमेरिका में महंगाई से निपटने के लिए अमेरिकी केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने इस साल अपनी अल्पकालिक ब्याज दर को अब तक पांच गुना बढ़ा चुका है और संकेत यही मिल रहे हैं, कि इसमें और बढ़ोतरी की संभावना है। इसकी वजह से अमेरिकी सरकार के कॉरपोरेट बॉन्ड के वैल्यू में इजाफा हुआ है, जिसकी वजह से अमेरिका में निवेश करने के लिए निवेशक काफी उत्सुक हो गये हैं, लिहाजा अमेरिका में निवेशक लगातार निवेश कर रहे हैं, लिहाजा डॉलर मजबूत होता जा रहा है। सिर्फ इस साल निवेशक भारतीय बाजार से 26 अरब डॉलर निकालकर उसे अमेरिका में निवेश कर चुके हैं, जिससे रूपये पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। यही हाल दुनिया के बाकी देशों में भी हो रहा है। ज्यादातर देशों की मुद्राएं इस वजह से डॉलर के सामने कमजोर हो गईं हैं, खासकर गरीब देशों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ा है। डॉलर के मुकाबले इस साल भारतीय रुपया करीब 11 प्रतिशत, मिस्र पाउंड 20 फीसदी और तुर्की लीरा में 28 प्रतिशत की गिरावट आई है।
कॉमरेड शी जिनपिंग, दुनिया का नया 'स्टालिन', जिनकी खामोशी से भी डराने वाली आवाज निकलती है!