दक्षिण कोरिया में फंसे विदेशी नागरिक क्यों कह रहे हैं THANKS GOD मैं यहां हूं
सियोल। “थैंक गॉड, मैं दक्षिण कोरिया में हूं।” दक्षिण कोरिया ने जिस तरह कोरोना को कंट्रोल किया है उसके बाद यह वाक्य अब मुहावरा बन गया है। दक्षिण कोरिया में पढ़ने वाले विदेशी छात्र इंटरनेट पर इस वाक्य को पंच लाइन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। वे फिक्रमंद माता-पिता को बस इतना ही बता रहे हैं- थैंक गॉड में दक्षिण कोरिया में हूं। दक्षिण कोरिया के अखबार 'द कोरिया हेराल्ड’ में लिम जांग वोन की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जो विदेशी छात्रों की प्रतिक्रिया पर आधारित है। विदेशी छात्रों ने बताया कि कोरोना महामारी के समय वे एक ऐसे देश में हैं जो फिलहाल सबसे सुरक्षित है। दक्षिण कोरिया चीन का पड़ोसी देश है। दिसम्बर 2019 में जब चीन में मौत का तांडव शुरु हुआ था तक यहां भी तबाही मची थी। लेकिन दक्षिण कोरिया ने जल्द ही कोरोना पर काबू पा लिया। दक्षिण कोरिया में 6 और 7 अप्रैल को कोरोना के नये मरीजों की संख्या 50 या इससे कम रही। जब कि 7 अप्रैल को भारत में कोरोना के 508 नये मामले सामने आये। भारत में कोरोना का पहला केस 30 जनवरी 2020 को मिला था। लेकिन अब इसकी रफ्तार तेज हो गयी है। इससे समझा जा सकता है कि दक्षिण कोरिया ने कितनी तेजी से कोरोना पर काबू पाया है। सैमसंग और एलजी इलेक्ट्रोनिक उत्पादों और हुंडई कारों के चलते दक्षिण कोरिया भारत में जाना पहचाना नाम है।
थैंक गॉड, मैं कोरिया में हूं...
अमेरिका के रहने वाले कियाना गरहर्ट सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी में दूसरे वर्ष के छात्र हैं। वे कहते हैं, "मैं बहुत खुश हूं कि एक ऐसे देश में रह रहा हूं जो शुरू से कोरोना से निबटने के लिए तैयार था। इससे मुझ में इस बात का भरोसा पैदा हुआ कि अगर कुछ होता है तो मैं कही भी अपनी देखभाल या इलाज के लिए जा सकता हूं।" जैकब मिनेल स्वीडन के रहने वाले हैं और कोरिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हैं। वे कहते हैं, "अभी रहने के लिए इससे बेहतर कोई दूसरा देश नहीं है जहां मैं फिलहाल रह रहा हूं। सबसे अच्छी बात ये है कि यहां कोरोना का बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है, लगातार जांच हो रही है और कड़ाई से क्वारेंटाइन के नियमों का पालन कराया जा रहा है। यहां मास्क की पहनने की परम्परा रही है इस लिए जब इसका उपयोग अनिवार्य हुआ तो लोगों को कोई परेशानी नहीं हुई।" चिली के रहने वाले वेलेरिया बास्टियाज योनसुई यूनिवर्सिटी में हैं। वे कहते हैं, " एक दिन मैंने इंटनेट पर एक फ्रेज पढ़ा जिसके बारे में पिछले कई दिनों से सोच रहा था, यह फ्रेज है- थैंक गॉड, मैं दक्षिण कोरिया में हूं।"
कोरिया में कारगर उपाय
कोरिया में पढ़ने वाले कई विदेशी छात्रों का कहना है कि उनके अपने देशों के मुकाबले दक्षिण कोरिया ने कोरोना से निबटने के लिए बेहतर और कारगर उपाय किये। सबसे बड़ी बात ये है कि विदेशी छात्रों को यहां रहने दिया गया। ईरान की रहने वाली मरियम सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं। उनको भी यहां रहने दिया गया। जब कि ईरान में उस समय कोरोना से बड़ी संख्या में लोग मर रहे थे। दक्षिण कोरिया की सरकार ने विदेशी छात्रों की सेहत का ख्याल रखा। 31 मार्च तक सियोल में विदेशी छात्रों के बीच एक लाख मास्क मुफ्त में बांटे गये। आखिर विदेशी छात्र दक्षिण कोरिया की क्यों तारीफ कर रहे हैं ?
ट्रांजिशन पीरियड से बाहर
चीन का पड़ोसी होने के कारण कोरोना ने दक्षिण कोरिया में भी भारी तबाही मचायी थी। लेकिन इसने मुस्तैदी से इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी। हालांकि दक्षिण कोरिया अभी भी कोरोना से मुक्त नहीं हो पाया है लेकिन यह एक ऐसे देश के रूप में उभरा है जिसने इसके संक्रमण को एक हद तक रोक दिया है। पहले यहां कोरोना मरीजों की संख्या तीन अंकों में रहती थी। अब ये संख्या दो अंकों में सिमट गयी है। 6 मार्च को यहां सिर्फ 47 मरीज ही मिले जब कि 29 फरवरी को 24 घंटे में 909 कोरोना पोजिटिव मिले थे। यानी इस देश में कोरोना वायरस का बहुत कम असर रह गया है। दक्षिण कोरिया अब ट्रांजिशन पीरियड से बाहर निकल चुका है। जिस तरह इसने कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ी है उसकी पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है। कोरोना से निबटने के लिए अब कई देश ‘दक्षिण कोरिया मॉडल' की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। स्पेन, अमेरिका, कनाडा और सऊदी अरब ने इस मॉडल को अपनानके लिए दक्षिण कोरिया के राष्ट्र पति मून जे इन से सम्पर्क किया है।
क्या है "दक्षिण कोरिया मॉडल" ?
दक्षिण कोरिया के प्रधानमंत्री चुंग सी क्यून के मुताबिक कोरोना से निबटने का राज चार चीजों में छिपा है- तेजी, पारदर्शिता, खोज और जनभागीदारी। इन चार उपायों पर ईमानदारी के साथ अमल किया गया। संक्रमण का पता लगाने के लिए जगह-जगह मुफ्त जांच केन्द्र खोले गये। घर के आसपास मुफ्त जांच केन्द्र खुलने से लोग आसानी से यहां आने लगे। इन जांच केन्द्रों में कोई व्यक्ति कार में बैठ-बैठे टेस्ट करा सकता है। जांच की प्रक्रिया करीब डेढ़ मिनट में पूरी हो जाती है। जैसे ही जांच की रिपोर्ट आती है उसकी सूचना मोबाइल पर मिल जाती है। अगर किसी व्यक्ति में संक्रमण का पता चलता है तो उसे तुरंत ही क्वारेंटाइन में डाल दिया जाता। उन्हें 14 दिनों तक अलग-थलग रहना पड़ता है। बायोटेक कंपनियों से दिनरात काम कर के टेस्ट किट तैयार की। इनकी तैयारी की वजह से एक दिन 20 हजार लोगों की जांच की सुविधा मिल गयी। दुनिया का कोई दूसरा देश एक दिन में इतने लोगों की जांच नहीं कर पा रहा है। दक्षिण कोरिया ने इस मामले में रिकॉर्ड बना दिया है। अधिक संख्या में टेस्ट करने क्षमता और योग्यता ने इस देश को दुनिया में रोल मॉडल बना दिया है। यहां के चिकित्सकों का कहना है कि अगर कोरोना के शुरुआती संक्रमितों की पहचान कर उन्हें क्वारेंटाइन कर दिया जाय तो मृत्यु दर को कम किया जा सकता है, या रोका जा सकता है। लेकिन इसके लिए अधिक से अधिक लोगों की शीघ्र जांच जरूरी है। यानी रोगी की जल्द पहचान, जांच, इलाज और आत्मअनुशासन के दम पर दक्षिण कोरिया ने कोरोना पर काबू पाया है।
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