यूक्रेन की मदद करते करते यूरोप का तेल खत्म, वर्ल्ड पावर्स की अब होगी पुतिन के सामने अग्नि परीक्षा
बर्लिन, 22 अगस्तः रूस-यूक्रेन युद्ध के छह महीने पूरे होने वाले हैं और यह सातवें महीने में प्रवेश करने वाला है। इन बीते छह महीनों में रूस के खिलाफ पश्चिमी एकजुटता आशर्चयजनक रूप से बेहद मजबूत और काफी हद तक एकजुट रही है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हाथ खींचने और कोविड संकट के बावजूद नाटो की अहमियत बढ़ती दिख रही है वहीं, कीव को वित्तीय और हाथियार सहायता पहुंचाने में पश्चिमी देश सफल रहे हैं। लेकिन अब जैसे-जैसे यूरोप में सर्दियों की शुरुआत होने जा रही है यूरोपीय अधिकारियों में यह चिंता बढ़ती जा रही है कि अब तक पश्चिमी देशों में रही आम सहमति टूट सकती है।
यूरोपीय देशों के सामने ईंधन का संकट
जर्मनी पहले ही रूस से गैस की कमी होने की आशंका जता चुका है। रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद पहले से ही गैस में आधी से ज्यादा की कटौती मास्को की तरफ से की जा चुकी है। ऐसे में यूरोपीय देशों के सामने विकराल संकट खड़ा है। समूचा यूरोप इस बात को लेकर चिंतित है, क्योंकि मंदी की संभावना को लेकर महाद्वीप में महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है और घरों को गर्म रखने के लिए पर्याप्त ईंधन बचा नहीं है। आने वाले दिन यूरोप पर भारी पड़ने वाले हैं। हालांकि, रूस के रुख को देखते हुए कुछ यूरोपीय देश इस कमी को अपने सिरे से पूरे करने की तरफ कदम बढ़ा चुके हैं।
जर्मनी में रोशनी वाले स्मारक बंद
जर्मनी में बिजली बचाने के लिए रोशनी वाले स्मारकों को बंद कर दिया गया है। जबकि फ्रांसीसी दुकानों को एसी चालू होने पर दरवाजों को बंद रखने के लिए कहा गया है। लात्विया ने सर्दियों के संकट को देखते हुए अपने हाट वाटर बायलर प्लांट लगाने शुरू कर दिए हैं। यूरोप के कुछ और देश जैसे बुल्गारिया, फिनलैंड, नीदरलैंड और पोलैंड भी गैस की खपत में कमी कर चुके हैं। इनके अलावा कुछ दूसरे देश भी धीरे-धीरे गैस की खपत कम करने में लगे हुए हैं। इस माह के अंत में रूस से नार्ड स्ट्रीम 1 पाइपलाइन के जरिए आने वाली गैस को रोक दिया जाएगा। गर्मियों के बाद ऐसा दूसरी बार होगा।
रूस पर जानबूझकर गैस में कटौती का आरोप
जर्मनी लगातार रूस पर गैस में जानबूझकर कमी करने का आरोप लगाता रहा है। वहीं रूस का तर्क है कि वो मैंटेनेंस के लिए ऐसा कर रहा है। बता दें कि यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस पर कई सारे प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं। रूस जुलाई के बाद से गैस की सप्लाई में करीब 70 फीसदी की कमी कर चुका है। विश्लेषकों का ऐसा मानना है कि व्लादिमीर पुतिन गैस को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं। इसके जरिए वो यूरोप पर प्रतिबंध खत्म करने के लिए दबाव बनाना चाहते हैं। गैस की कमी की वजह से इसकी कीमतों में जबरदस्त उछाल आया है। तेल की बढ़ती कीमतें भी यूरोप के लिए एक बड़ी समस्या बन रही हैं।
सर्दियों में टूट सकती है यूरोपिय देशों की सहमति
बीते साल 2021 में यूरोप द्वारा इस्तेमाल किए गए कुल गैस में से 55 फीसदी पूर्ति सिर्फ रूस द्वारा की गई थी। इससे रूस पर यूरोप की ईंधन निर्भरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। यही वजह है कि कुछ पश्चिमी देश विशेषकर जर्मनी और फ्रांस ने सार्वजनिक रूप से कह दिया है कि पश्चिम और मास्को के बीच संवाद होना चाहिए। फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रॉन ने बार-बार कहा है कि कुछ बिन्दुओं पर रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत करने की जरूरत है। पूरे यूरोप के लिए आने वाला वक्त महत्वपूर्ण हो चुका है। अब पूरे महाद्वीप में नागरिकों को रहने की लागत की कमी महसूस होगी। कुछ लोगों को अपने घरों को गर्म करने और खाने के बीच चुनाव करना होगा।
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