नॉर्थ कोरिया के मौजूद परमाणु हथियार के जखीरे के पीछे है पाकिस्तान का हाथ!
साल 2017 में नॉर्थ कोरिया ने 20 मिसाइलों का परीक्षण किया। तीन सितंबर को नॉर्थ कोरिया ने एक ऐसे हथियार का परीक्षण किया जिसे अमेरिका ने हाइड्रोजन बम माना। इसके बाद 28 नवंबर को नॉर्थ कोरिया ने एक नई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया।
वॉशिंगटन। नॉर्थ कोरिया के शासक किम जोंग उन के नए ऐलान ने फिर से सबकों चौंका दिया है। किम ने शनिवार को ऐलान किया है कि अब उनका देश किसी भी तरह का कोई परमाणु परीक्षण नहीं करेगा। उनके इस ऐलान को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुड न्यूज करार दिया है। साल 2017 में नॉर्थ कोरिया ने 20 मिसाइलों का परीक्षण किया। तीन सितंबर को नॉर्थ कोरिया ने एक ऐसे हथियार का परीक्षण किया जिसे अमेरिका ने हाइड्रोजन बम माना। इसके बाद 28 नवंबर को नॉर्थ कोरिया ने एक नई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया जिसकी रेंज 8,100 मील थी और यह आसानी से अमेरिका के किसी भी शहर को निशाना बना सकती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नॉर्थ कोरिया को परमाणु हथियार के क्षेत्र में से सशक्त बनाने का श्रेय किसे जाता है, पाकिस्तान को। जी हां, पाकिस्तान ने कभी भी इस बात को स्वीकार नहीं किया है लेकिन कई बार सामने आईं रिपोर्ट्स में यह बात कही गई है।
साल 2006 से जारी है सिलसिला
अपने पिता किम जोंग इल की मृत्यु के बाद किम जोंग उन ने नॉर्थ कोरिया की जिम्मेदारी संभाली। किम का सपना था कि उनका देश परमाणु हथियार के क्षेत्र में नंबर वन देश बने। नॉर्थ कोरिया का परमाणु हथियार कार्यक्रम साल 2006 में शुरू हुआ था। नॉर्थ कोरिया के पास आधिकारिक तौर पर छह परमाणु हथियार हैं लेकिन माना जाता है इनकी संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। इसके अलावा इसके पास अच्छी-खासी मात्रा में केमिकल और बॉयो-लॉजिकल वेपंस भी हैं। साल 2003 में नॉर्थ कोरिया ने खुद को परमाणु हथियार के लिए बनाई जरूरी नॉन-प्रॉलिफिकेशन ट्रीटी से खुद को बाहर कर लिया था। फिलहाल इस देश पर एक के बाद एक परमाणु परीक्षण करने की वजह से कई तरह के प्रतिबंध लगे हैं।
पाकिस्तान ने ट्रांसफर की टेक्नोलॉजी
पिछले वर्ष जर्मनी के मीडिया संस्थान को दिए खास इंटरव्यू में पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक परवेज हुदभोय ने कहा था कि पाकिस्तान ने नॉर्थ कोरिया को परमाणु टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की थी। उन्होंने कहा था कि नॉर्थ कोरिया ने हालांकि कभी सीधे तौर पर इसमें हिस्सा नहीं लिया क्योंकि कोरियन देश का परमाणु कार्यक्रम प्लोटेनियम पर आधारित हैं न कि यूरेनियम पर। उन्होंने दावा किया कि साल 2003 में जब पाकिस्तान के वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान या एक्यू खान को परमाणु टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करते हुए पकड़ा गया तो उसके बाद इसे बंद कर दिया। नॉर्थ कोरिया को साल 1989 से परमाणु हथियारों की टेक्निक ट्रांसफर हो रही थी और उस समय बेनजीर भुट्टो इस देश की पीएम थीं। कादिर को ही परमाणु हथियारों के मामले में नॉर्थ कोरिया को सशक्त बनाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
70 के दशक से जारी खेल
पाकिस्तान और नॉर्थ कोरिया के बीच इस क्षेत्र में सहयोग 70 के दशक से ही जारी था। दोनों देशों ने बैलेस्टिक मिसाइल और दूसरे परमाणु हथियारों के डेवलपमेंट से जुड़ी टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे थे। साल 1976 में तत्कालीन पाक प्रधानमंत्री जुल्लिफिकार अली भुट्टो नॉर्थ कोरिया की यात्रा पर गए थे। यहां से पर वह अमेरिका और चीन की वजह से एक अजीब सी परेशानी में फंस गए थे। इसके बाद फिर से साल 1990 से दोनों देश इस मुद्दे पर करीब आने लगे थे। 1990 के शुरुआत में बेनजीर ने नॉर्थ कोरिया से लंबी दूरी की मिसाइलें रोडोंग खरीदीं और इसके बदले में पाक ने नॉर्थ कोरिया को असैन्य परमाणु टेक्नोलॉजी सप्लाई की। इसके अलावा नॉर्थ कोरिया के छात्रों के लिए पाक ने अपनी यूनिवर्सिटीज के दरवाजे भी खोल दिए।
पाकिस्तान की गौरी मिसाइलें नॉर्थ कोरिया की देन
परवेज की मानें तो नॉर्थ कोरिया की ओर से परमाणु टेक्नोलॉजी के बदले पाक को ड्यूडोंग मिसाइलें दी गई थी। लिक्विड फ्यूल से लैस ये मिसाइलें ही पाकिस्तान की गौरी मिसाइलें हैं। ये मिसाइलें पाकिस्तान के मिसाइलों के बेड़े का अहम हिस्सा हैं। हालांकि ये मिसाइल सॉलिड फ्यूल से लैस मिसाइलों की तुलना में कम प्रभावी हैं क्योंकि सॉलिड फ्यूल वाली मिसाइलों को तैयारियों के लिए कम समय लगता है। परवेज की माने तो पाकिस्तान और नॉर्थ कोरिया दोनों को ही इससे फासदा हुआ है।
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