कोरोना: खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीय स्वदेश लौटने को मजबूर
लॉकडाउन की वजह से कच्चे तेल की क़ीमत में आई गिरावट ने अरब देशों की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है.
बारहवीं सदी को सामान्य तौर पर भारत में मुसलमानों के आगमन से जोड़ कर देखा जाता है जबकि इससे कोई 500 साल पहले से खाड़ी देशों के केरल और दूसरे दक्षिणी राज्यों से संबंध रहे हैं.
अरब देश के व्यापारी केरल के बंदरगाहों पर आते और अपने माल के बदले मसाले ले जाते थे.
भारत की सबसे पुरानी मस्जिद केरल में ही बताई जाती है और कहा जाता है कि इसकी तामीर सातवीं सदी में हुई थी यानी इस्लाम के उदय के साथ ही.
ज़ाहिर है जब 1970 के दशक में 'ऑयल बूम' आया और खाड़ी के देशों में निर्माण, दफ़्तरों में काम करने और तेल के कुंओं और रिफ़ाइनरी को चलाने और दूसरे कामों के लिए लोगों की ज़रूरत हुई तो दक्षिणी सूबों ख़ासकर केरल से वहां जानेवालों का सिलसिला सबसे ज़्यादा रहा.
खाड़ी के मुल्कों में तक़रीबन 85 लाख भारतीय रहते हैं और ये विश्व की सबसे बड़ी प्रवासी आबादियों में से एक है.
भारत में दुनिया भर के मुल्कों से जो पैसे आते हैं उनके पांच टॉप स्रोत में से चार खाड़ी देश - संयुक्त अरब अमीरात, सउदी अरब, कुवैत और क़तर देश शामिल हैं.
लेकिन विश्व बैंक के एक अनुमान के मुताबिक़ साल 2020 में दक्षिण एशिया में विदेशों से भेजे जाने वाले पैसों में कम से कम 22 फ़ीसद की गिरावट आएगी.
दक्षिणी राज्यों को खाड़ी देशों से हासिल होने वाले फंड को लेकर हालांकि अलग से कोई आंकड़े मुहैया नहीं हैं मगर आर्थिक जगत की जानी मानी समाचार और रिसर्च एजेंसी ब्लूमबर्ग के मुताबिक़ यूएई से भारत आने वाले फंड में साल 2020 की दूसरी तिमाही में ही अनुमानत: 35 प्रतिशत की गिरावट आएगी.
यूएई से बाहर जानेवाले फंड में सबसे अधिक भारत को हासिल होते हैं.
नौकरियों को लेकर असुरक्षा
खाड़ी के कई देशों में अस्पतालों की सेवा देने वाली कंपनी वीपीएस हेल्थकेयर के आला अधिकारी राजीव मैंगोटिल कहते हैं यहां काम करनेवाले ख़ुद को बेहद असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.
कच्चे तेल की क़ीमतों में भारी गिरावट की वजह से तेल की आमदनी पर निर्भर खाड़ी देश, निबटने की कोशिश कर ही रहे थे कि कोरोना के फैलाव ने परिस्थितियों को और भी जटिल बना दिया.
अरब देशों में काम करने वाले सैकड़ों लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं, जिनकी नौकरियां बची है उन्हें तनख़्वाह में कटौती झेलनी पड़ रही है.
दुबई-स्थित विमान कंपनी अमीरात ने 30,000 लोगों को काम से बाहर करने की बात कही है.
अमीरात कामगारों के हिसाब से यूएई की सबसे बड़ी कंपनी मानी जाती है.
शारजाह में मौजूद बड़ी निर्माण कंपनियों में से एक ने हज़ार दिरहम से अधिक पाने वाले सभी कर्मचारियों की सैलेरी में 10 फ़ीसदी की कटौती कर दी है. दूसरी कंपनियों में हुई कटौती इससे ज़्यादा है.
ये कटौती कब बहाल होगी इसके बारे में कर्मचारियों को कुछ नहीं बताया गया है, एक बड़ी कंपनी के एचआर मैनेजर नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं.
सैलरी में कटौती
सउदी अरब ने मई के महीने में ही प्राइवेट कंपनियों को इस बात की इजाज़त दे दी थी कि वो कामगारों की सैलरी में 40 प्रतिशत तक की कटौती कर सकते हैं. साथ ही कोरोना महामारी के मद्देनज़र ठेकों और समझौतों को भी रद्द करने की इजाज़त निजी कंपनियों को मिल गई थी.
मार्च में तेल के दामों में सउदी अरब के ज़रिये ही क़ीमतें कम करने और प्रोडक्शन बढ़ाने की वजह से हुई थीं. कच्चे तेल के दामों में आई ये गिरावट जो एक समय 35 प्रतिशत तक नीचे चली गई थी, 1991 की खाड़ी की जंग के बाद से आई सबसे बड़ी गिरावट है.
खाड़ी में मौजूद सबसे बड़े मुल्क सउदी अरब की आमदनी का बड़ा हिस्सा जो हज और साल भर जारी तीर्थ उमरा से आता है वो भी इस बार कोरोना की वजह से रोक दिया गया है.
टीआरटी वर्ल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सउदी अरब को दोनों तरह के तीर्थ से 12 अरब डॉलर सालाना की आमदनी होती है जो कि मुल्क की कुल जीडीपी (कच्चे तेल के बिना) का 20 फ़ीसदी है.
नॉन रज़िडेंट्स केरलाइट्स वेलफ़ेयर बोर्ड - नौरका, के चेयरमैन पीटी कुंजु मोहम्मद कहते हैं कि पांच लाख मलयालियों (केरल निवासियों) ने वापस लौटने के लिए अप्लाई किया है.
इनमें से बहुत सारे इसलिए वापस आ रहे हैं क्योंकि महामारी की वजह से निर्माण, टूरिज़्म, होटल और दूसरे कई तरह के काम बंद हैं लेकिन ये मालूम नहीं कि इनमें से कितने वापस जा सकेंगे या कब तक?
कुवैत में नया क़ानून
इस बीच कुवैत जैसे मुल्क ने, जहां प्रवासियों की आबादी वहां के मूल निवासियों से भी अधिक है, एक ऐसा क़ानून बनाने की कोशिश कर रहा है जिससे स्थानीय लोगों की नौकरियों में तादाद बढ़े और प्रवासियों के लिए एक कोटा सिस्टम लगाया जा सके.
तक़रीबन पैंतालीस लाख की कुल आबादी में मूल कुवैतियों की जनसंख्या महज़ 13.5 लाख के करीब ही है.
इस तरह की कोशिश सउदी अरब में निताक़त क़ानून और खाड़ी के दूसरे मुल्कों में भी जारी है जिसका असर वहां काम करने वाले भारतीयों पर पड़ेगा.
कुवैत में समझा जाता है कि नया क़ानून तैयार हो जाने के बाद वहां से कम से कम आठ से साढ़े लाख भारतीयों को वापस आना पड़ सकता है.
राजीव मैंगोटिल कहते हैं, महामारी और नए क़ानून का प्रभाव चौतरफा होगा.
वो कहते हैं, "जिनकी नौकरियां चली गई हैं लेकिन उन्हें ईएमआई देनी है उनकी स्थिति बुरी है. कई दूसरी नौकरियों के लिए अप्लाई कर रहे हैं लेकिन जब उसकी उम्मीद भी ख़त्म हो जाएगी तो वापस जाने वालों की बाढ़ लग जाएगी."
दक्षिण के पांचों सूबे - केरल, तमिलनाडू, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, जिनमें बाहर काम करनेवालों की तादाद इतनी अधिक है कि वहां इनके लिए अलग से मंत्रालय या दूसरी एनआरआई सरकारी वेलफ़ेयर संस्थाएं मौजूद हैं, महामारी से निपटने में इस क़दर उलझे हैं कि उनका ध्यान शायद इस आनेवाले संकट की तरफ़ गया ही नहीं है.
पीटी कुंजु मोहम्मद कहते हैं, "मुझे उम्मीद नहीं है कि बाहर रहनेवालों की वापसी उतनी बड़ी संख्या में होने जा रही है जितने लोगों ने अप्लाई किया है."