श्रीलंका के बंदरगाह पर चीन के जासूसी जहाज का पहुंचना, क्या भारत की बड़ी डिप्लोमेटिक हार नहीं है?
श्रीलंकन बंदरगाह पर चीन का जहाज पहुंचना, भारत और चीन, दोनों के लिए नाक का सवाल बन गया था, जिसमें चीन विजयी हुआ है, इसमें कोई दोमत नहीं है।
नई दिल्ली, अगस्त 17: श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर चीन का सैटेलाइट रिसर्च जहाज, जिसे जासूसी जहाज कहा जा रहा है, उसका पहुंचना भारत के लिए गंभीर खतरे की आहट है, क्योंकि चीनी एक्सपर्ट्स दावा कर रहे हैं, कि इस चीनी जहाज में मिसाइलों और विध्वंसक हथियारों को ट्रैक करने की क्षमता है और भारत के लाख विरोध के बाद भी श्रीलंका ने चीन को अपने बंदरगाह पर जासूसी जहाज को आने की इजाजत दे दी। तो फिर एक्सपर्ट्स सवाल पूछ रहे हैं, कि अगर कंगाल हो चुके श्रीलंका में भी भारत की डिप्लोमेसी फेल हो गई, तो फिर ये चिंता की बात है।
चीनी जहाज का ग्रैंड वेलकम
एक्सपर्ट्स के सवालों में इसलिए भी दम नजर आता है, क्योंकि कुछ साल पहले भारत हिंद महासागर में स्थिति श्रीलंका के हंबनटोटा में चीन को बंदरगाह बनाने से रोकने में नाकाम रहा और अब चीन इस बंदरगाह का इस्तेमाल अपनी सैन्य रणनीति बनाने के लिए कर रहा है और भारत बेबस नजर आ रहा है। साल 2014 में भी भारत के लाख विरोध के बावजूद चीन का न्यूक्लियर पनडुब्बी हंबनटोटा पोर्ट पर पहुंचा था और श्रीलंका से भारत के संबंध तनावपूर्ण हो गये थे। लेकिन, इस बार, जब भारत ने कंगाल हो चुके श्रीलंका को भरपूर मदद दी है, उसके बाद भी श्रीलंका ने भारत की चेतावनी को ना सिर्फ अनसुना कर दिया, बल्कि चीनी जहाज का स्वागत करने के लिए दर्जन भर से ज्यादा श्रीलंकन अधिकारी हंबनटोटा पोर्ट पर मौजूद थे, जिनमें श्रीलंका के नये राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के प्रतिनिधि भी शामिल थे। श्रीलंका की तरफ से पेश किया गया ये ग्रैंड वेलकम भारत की जख्मों पर नमक छिड़कने के जैसा है और भारत ने कहा है, कि वो नजर बनाए हुआ है।
इशारों में चीन की चेतावनी
श्रीलंकन बंदरगाह पर चीन का जहाज पहुंचना, भारत और चीन, दोनों के लिए नाक का सवाल बन गया था, जिसमें चीन विजयी हुआ है, इसमें कोई दोमत नहीं है। भारत के शुरूआती एतराज के बाद से ही चीन काफी आक्रामक हो गया था और चीन को धमकी दे रहा था, वहीं चीन की तरफ से भारत को भी साफ तौर पर संदेश दिया जा रहा था, लेकिन भारत की तरफ से इशारों में भी संदेश नहीं दिया गया। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, कि श्रीलंका के बंदरगाह पर चीनी जहाज पहुंचने में किसी भी तीसर देश को बाधा उत्पन्न नहीं करनी चाहिए। जाहिर तौर पर ये तीसरा देश भारत ही है। जब हंबनटोटा पोर्ट पर चीनी जहाज पहुंचा, उस वक्त बंदरगाह पर श्रीलंका की तरफ से रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें श्रीलंकन लोकनृत्य भी शामिल था। जबकि, चीन ने कहा, "चीनी जहाज किसी भी देश की सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्रभावित नहीं करते हैं, और किसी तीसरे पक्ष द्वारा इसे बाधित नहीं किया जाना चाहिए।"
|
एक्सपर्ट्स ने उठाए सवाल
विदेश और रक्षा मामलों के जानकर ब्रह्मा चेलानी ने गंभीर डिप्लोमेटिक नुकसान बताते हुए, श्रीलंकन बंदरगाह पर चीनी जहाज के पहुंचने की घटना को भारतीय डिप्लोमेसी के मुंह पर एक 'तमाचा' करार दिया है। ब्रह्मा चेलानी ने अपने ट्वीट में लिखा है, कि ''जब श्रीलंका जैसा छोटा और दिवालिया राष्ट्र, हंबनटोटा के वाणिज्यिक बंदरगाह पर एक चीनी सर्विलांस जहाज की मेजबानी कर रहा है, तो ये नई दिल्ली के लिए डिप्लोमेटिक थप्पड़ है, तो यह भारत की विदेश नीति के लिए एक रिमाइंड है और, कि अपने बैकयार्ड में किस तरह से भारत का रणनीतिक प्रभाव घट रहा है।' जाहिर तौर पर, ब्रह्मा चेलानी गंभीर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि जो श्रीलंका दिवालिया होने के बाद भी, भारत सरकार की भारी मदद के बाद भी, चीन के साथ खड़ा हो रहा है, वो क्या लड़ाई जैसी परिस्थिति में चीन के साथ खड़ा नहीं होगा, खासकर उस वक्त, जब चीन की कोशिश ही हिन्द महासागर में किसी भी तरह से दाखिल होने की है और हंबनटोटा पोर्ट पर चीनी जहाज के पहुंचने का यही मतलब है, कि चीन जब चाहे, अपनी मर्जी से हिन्द महासागर में आ सकता है और भारत उसे नहीं रोक सकता है। ऐसे में चीन के इस जासूसी जहाज के आने का मतलब भी समझना जरूरी है।
भारत के लिए बनेगा गंभीर खतरा!
भारत के डिफेंस एक्सपर्ट पीके सहगल ने आजतक से बात करते हुए कहा, कि चीन के इस जासूसी जहाज में इतनी क्षमता है, कि भारत अगर अपने दक्षिणी हिस्से में कोई भी सैटेलाइट या फिर मिसाइल लॉन्च करता है, तो इस जहाज से उसे डिटेक्ट किया जा सकता है। यानि, भारत किस सैटेलाइट को लॉन्च कर रहा है, उसकी क्षमता क्या है, किस मिसाइल को लॉन्च कर रहा है, उसकी सारी जानकारी चीन के पास होगी और भारत हाथ मलता रहेगा। पीके सहगल के मुताबिक, इससे भारत की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है और इसीलिए भारत के साथ साथ अमेरिका ने भी इसका विरोध किया था, मगर श्रीलंका ने दोनों देशों के विरोध को खारिज कर दिया और चीनी जहाज की मेजबानी करने के लिए तैयार हो गया।
क्या क्या कर सकता है चीनी जासूसी जहाज?
चीनी सोशल मीडिया वीबो पर चीन के रक्षा विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं, कि इस जहाज के पास ऐसी क्षमताएं हैं, जिससे वो मिसाइलों और सैटेलाइट्स को ट्रैक कर सकता है। लिहाजा, एक्सपर्ट्स का कहना है, कि चीन अपने इस जासूसी जहाज की मदद से ना सिर्फ भारत के सैटेलाइट और मिसाइलों को ट्रैक कर सकता है, बल्कि भारत के न्यूक्लियर प्लांट्स की भी जानकारियां हासिल कर सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन अपने इस जासूसी जहाज की मदद से करीब 750 किलोमीटर तक आसानी से नजर रख सकता है और 750 किलोमीटर के क्षेत्र की निगरानी कर सकता है, यानि सीधे तौर पर ये जहाज भारत की सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक है।
भारत से कितनी दूरी पर है जासूसी जहाज?
अगर भारत से दूरी की बात करें, तो भारत के दक्षिणी हिस्से में स्थिति सबसे अंतिम शहर कन्याकुमारी से श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट, जहां ये जहाज ठहरा है, उसकी दूरी करीब 450 किलोमीटर के आसपास है। यानि, ये जहाज भारतीय क्षेत्र में 350 किलोमीटर के हिस्से की निगरानी कर सकता है और ये जानते समझते हुए भी श्रीलंका ने चीनी जहाज को अपने बंदरगाह पर आने की इजाजत दे दी। चीनी मीडिया के मुताबिक, इस जहाज को साल 2007 में बनाया गया था और यह एक मिलिट्री नहीं, बल्कि पावरफूल सैटेलाइट रिसर्च जहाज है। लेकिन, एक्सपर्ट्स का कहना है, कि ये जहाज उसी वक्त गतिविधियों को संचालित करता है, जब कोई देश अपना मिसाइल परीक्षण कर रहा हो। इस जहाज पर कई सैटेलाइट एंटीना और सेंसर्स लगे हुए हैं।
भारत ने कहा- रख रहे हैं नजर
वहीं, जब भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से इस जहाज को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि, 'भारत इसकी निगरानी कर रहा है।' लेकिन, असल सवाल ये नहीं है, सवाल ये है, कि अगर श्रीलंका के आगे इतनी आसानी से घुटने पर आ रहा है और भारत की चेतावनी को अनसुना कर देता है, वो भी कंगाल होकर... तो फिर हिन्द महासागर में भारत के लिए खतरे की बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। नई दिल्ली इस संभावना के बारे में चिंतित है, कि जहाज के ट्रैकिंग सिस्टम श्रीलंकाई बंदरगाह के रास्ते में भारतीय प्रतिष्ठानों पर जासूसी करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत ने पारंपरिक रूप से हिंद महासागर में चीनी सैन्य जहाजों के बारे में कड़ा रुख अपनाया है, और अतीत में भी श्रीलंका के साथ इस तरह की यात्राओं का विरोध किया है। साल 2014 में भी कोलंबो ने एक चीनी परमाणु पनडुब्बी को हंबनटोटा पोर्ट पर आने की इजाजत दे दी थी, जिसके बाद भारत और श्रीलंका के संबंध काफी तनावपूर्ण हो गये थे। भारत की चिंता विशेष रूप से हंबनटोटा बंदरगाह पर केंद्रित है, जिसे साल 2017 में कोलंबो ने 99 वर्षों के लिए चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स को पट्टे पर दे दिया था, क्योंकि श्रीलंका अपना कर्ज नहीं चुका पाया था। लिहाजा हमेशा संभावना बनी रहती है, कि हंबनटोटा बंदरगाह का इस्तेमाल चीन सैन्य गतिविधियों के लिए कर सकता है।
श्रीलंका को चीन ने क्या ऑफर दिया?
श्रीलंका पर निजी लेनदारों का लगभग 12.3 बिलियन अमरीकी डालर बकाया है। वहीं, वार्षिक विदेशी ऋण भुगतान 2009 में 1.3 बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर साल 2020 में 4.1 बिलियन अमेरिकी डॅालर हो गया है। चीन के पास श्रीलंका के कुल केंद्र सरकार के ऋण का लगभग 6.2 फीसदी यानी कि 670 मिलियन डॉलर है। वहीं, चीन के एक्जिम बैंक और चीन विकास बैंक जैसे चीन के स्वामित्व वाले संस्थानों के माध्यम से यह ऋण बेहद अधिक हो जाता है जो कि 7 बिलियन डॉलर के बराबर है। कुछ दिनों पहले श्रीलंका के वित्त मंत्रालय ने कहा था कि देश विदेशी कर्ज के भुगतान की स्थिति में नहीं है। इनमें विदेशों से लिया ऋण भी शामिल है। वहीं, ऐसा माना जा रहा है, कि चीन ने अपने जासूसी जहाज के बदले श्रीलंका को कुछ ऑफर दिया है, लेकिन क्या, इसका खुलासा नहीं हो पाया है और जब चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से इस बाबत सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया।
ICU में पहुंची पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, देश पर कर्ज हुआ 60 खरब रुपये, ढहने के कगार पर पहुंचा