हिंद महासागर में घुसने के लिए चीन ने 19 देशों के साथ की 'सीक्रेट मीटिंग', भारत को नहीं बुलाया
चीन के विदेश मंत्री ने इस साल श्रीलंका की यात्रा के दौरान हिंद महासागर को लेकर एक अलग मंच बनाने और श्रीलंका को उस प्लेटफॉर्म को लेकर अहम जिम्मेदारी निभाने का ऑफर दिया था।
Indi-China in Indian Ocean: हिन्द महासागर में घुसने की फिराक में लगा चीन लगातार नये नये प्लान बना रहा है और दो महीने पहले श्रीलंकन पोर्ट हंबनटोटा में जासूसी जहाज भेजने के बाद अब चीन ने 19 देशों के साथ मिलकर बड़ा प्लान तैयार किया है। 19 देशों के साथ चीन की चली इस मीटिंग का हिस्सा भारत नहीं था और इस बैठक का आयोजन चायना इंटरनेशनल डेवलपमेंट को- ऑपरेशन एजेंसी यानि CIDCA ने करवाया था। रिपोर्ट के मुताबिक, यह बैठक चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में आयोजित किया गया था, जिसके एजेंडे में "साझा विकास" को रखा गया था, जिसमें ब्लू इकोनॉमी पर चर्चा की गई है।
कौन-कौन से देश हुए थे शामिल
चीन में आयोजित इस बैठक में इंडोनेशिया, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, मालदीव, अफगानिस्तान, ईरान, ओमान, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, मोजाम्बिक, तंजानिया, सेशेल्स, मेडागास्कर, मॉरीशस, जिबूती और ऑस्ट्रेलिया सहित 19 देशों के प्रतिनिधि और 3 अंतरराष्ट्रीय संगठन के प्रतिनिधि उपस्थित थे। जानकार सूत्रों के अनुसार भारत को कथित तौर पर इस बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था। आपको बता दें कि, पिछले साल भी चीन ने भारत की भागीदारी के बिना COVID-19 वैक्सीन सहयोग पर कुछ दक्षिण एशियाई देशों के साथ बैठक की थी। CIDCA का नेतृत्व पूर्व उप विदेश मंत्री और भारत में राजदूत रह चुके लुओ झाओहुई ने किया है जो चायनीज कम्युनिस्ट पार्टी के लीडरशिप ग्रुप के सचिव भी हैं।
चीन की इस बैठक का मकसद क्या था?
CIDCA की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, संगठन का उद्देश्य विदेशी सहायता के लिए रणनीतिक दिशानिर्देश, योजना और नीतियां बनाना, प्रमुख विदेशी सहायता मुद्दों पर आपसी समन्वय करना और सलाह देना, विदेशी सहायता से जुड़े मामलों में देश के सुधारों को आगे बढ़ाना और प्रमुख कार्यक्रमों की पहचान करना और उनका कार्यान्वयन भी शामिल है। लेकिन, बैठक का असल उद्येश्य चीन को हिन्द महासागर में खुद को एक शक्ति के तौर पर प्रोजेक्ट करना है और इसके लिए उसने भारत के सभी पड़ोसियों को इस बैठक में शामिल किया था। इस साल जनवरी में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने श्रीलंका की यात्रा की थी और इसी दौरान चीनी विदेश मंत्री ने हिंद महासागर के देशों को लेकर एक मंच बनाने की शुरूआत की थी और उन्होंने श्रीलंका से इस ग्रुप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को कहा था। जाहिर है, चीन का मकदस हिंद महासागर की सबसे बड़ी शक्ति भारत को दरकिनार कर हिन्द महासागर में अपना वर्चस्व स्थापित करना है। सीआईडीसीए की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि, 21 नवंबर की बैठक में चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में चीन और देशों के बीच एक समुद्री आपदा रोकथाम और शमन सहयोग तंत्र स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है और चीन ने कहा है, कि वो इसके लिए आवश्यक वित्तीय, सामग्री और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है।
हिन्द महासागर में घुसने की कोशिश
चीन लगातार हिंद महासागर में वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रहा है और इसके लिए वो बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान के साथ तेजी से रणनीतिक संबंध विकसित करने की कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही चीन ने जिबूती में एक पूर्ण नौसैनिक अड्डा स्थापित किया है, जो देश के बाहर उसका पहला नौसैनिक बंदरगाह है। इसके साथ ही बीजिंग ने 99 साल के पट्टे पर श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह का भी अधिग्रहण किया हुआ है। वहीं, चीन ने भारत को घेरने के लिए भारत के पश्चिमी तट के विपरीत अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर में बंदरगाह का निर्माण किया है। वहीं, मालदीव में भी समुद्र में चीन लगातार बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहा है। चीनी फोरम का उद्देश्य स्पष्ट रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के मजबूत प्रभाव का मुकाबला करना है। भारत की स्थिति पहले से ही हिंद महासागर में काफी मजबूत है और भारत ने पहले ही हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) की स्थापना कर रखी है, जिसमें 23 सदस्य हैं।
भारत का IORA संगठन क्या है?
IORA संगठन का गठन साल 1997 में किया गया था और IORA साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा और अफ्रीकी संघ का पर्यवेक्षक बना था। IORA के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंद महासागर क्षेत्र के तटीय देशों के बीच सक्रिय सहयोग के लिए साल 2015 में "क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास" (SAGAR) का प्रस्ताव दिया है। वहीं, भारतीय नौसेना समर्थित 'हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी' (आईओएनएस) क्षेत्र की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। वहीं, जून 2020 में चीनी और भारतीय सेनाओं के बीच गलवान घाटी में झड़प के बाद से द्विपक्षीय संबंध गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। वहीं, भारत ने लगातार कहा है कि, चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति और स्थिरता महत्वपूर्ण है।
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