ब्रह्मपुत्र नदी पर मेगा डैम बनाने की तैयारी में चीन, भारत के नॉर्थ-ईस्ट में आ सकती है बड़ी तबाही
नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर चीन की आक्रामकता पिछले सात माह से जारी है। इन सबके बीच ही एक और परेशानी करने वाली खबर आ रही है। चीन के आधिकारिक मीडिया ने रविवार को बताया है तिब्बत में अगले वर्ष से ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बड़े हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का काम शुरू होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए चीन ने नदी पर एक बड़ा बांध बनाने की तैयारी कर ली है। चीनी मीडिया ने उस कंपनी के अधिकारी के हवाले से यह जानकारी दी है जिसके पास इस बांध के निर्माण की जिम्मेदारी है।

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14वीं पंचवर्षीय योजना का हिस्सा
तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी को यारलंग झांग्बो नदी के नाम से जानते हैं। चीन की सरकार की तरफ से 14वीं पंचवर्षीय योजना में इस प्रोजेक्ट का आगे बढ़ाया गया है। अगले साल से इसे लागू करने की तैयारी जारी है। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक पावर कंस्ट्रक्शन कॉर्प ऑफ चाइना को इस बांध का जिम्मा सौंपा गया है। इसके चेयरमैन यान झियोंग ने कहा है कि चीन, यारलुंग झांग्बो नदी की निचली धारा पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को शुरु करने की तैयारी में लगा है। इस प्रोजेक्ट की वजह से जल संसाधनों के प्रबंधनों का लक्ष्य पूरा हो सकेगा और साथ ही घरेलू सुरक्षा में इजाफा होगा। यान ने पिछले हफ्ते एक कॉन्फ्रेंस में कहा कि प्रोजेक्ट को पहले ही देश की 14वीं पंचवर्षीय योजना के तहत (2021-25) आगे बढ़ाया जा रहा है और कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी की तरफ से इसे साल 2035 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। कम्युनिस्ट यूथ लीग की सेंट्रल कमेटी के वीचैट अकाउंट पर इस आर्टिकल का हवाला दिया गया है। चाइना सोसायटी फॉर हाइड्रोपावर इंजीनियरिंग के 40 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान यान ने कहा, 'इतिहास में कोई समानता नहीं है। यह चीन की हाइड्रोपावर इंडस्ट्री के लिए एक एतिहासिक मौका है।'
चीन के ऐलान से विशेषज्ञ डरे
चीन की तरफ से इस हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का ऐलान भारत के लिए परेशानियां बढ़ाने वाला है। विशेषज्ञों की मानें तो इस बांध के बन जाने के बाद भारत, बांग्लादेश समेत कई पड़ोसी देशों को सूखे और बाढ़ दोनों का सामना करना पड़ सकता है। बांध के निर्माण के बाद सब-कुछ चीन पर निर्भर करेगा। उन्हें आशंका है कि चीन जब चाहेगा, बांध का पानी रोक देगा और कभी भी बांध के दरवाजे खोल देगा। इससे पानी का बहाव तेजी से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की तरफ आएगा। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, असम समेत कई राज्यों में भयानक बाढ़ आ सकती है। हालांकि अभी तक इस प्रोजेक्ट के बारे में चीन की सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। लेकिन ये माना जा रहा है कि अगले साल तक चीन की सरकार इस योजना की आधिकारिक घोषणा कर देगी। ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से शुरू होकर भारत और बांग्लादेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है। इस दौरान यह करीब 2900 किलोमीटर की यात्रा करती है। भारत में इस नदी का एक तिहाई पानी आता है। इसके जरिए उत्तर-पूर्वी राज्यों में पानी की सप्लाई की जाती है। इस खबर से भारत और बांग्लादेश चिंतित हैं। वहीं, चीन ने कहा कि वह अपने पड़ोसी देशों के हितों का ध्यान रखते हुए ही कोई काम करेगा।
चीन की वजह से आई बाढ़
साल 2008 में भारत और चीन ने एक समझौता किया था कि सतलुज और ब्रह्मपुत्र नदी के पानी के बहाव को आपसी सहमति से ही उपयोग किया जाएगा। इन दोनों नदियों के पानी के बंटवारे, बहाव और बाढ़ से संबंधित प्रबंधन को मिलकर करेंगे। लेकिन साल 2017 में डोकलाम विवाद के बाद चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी के हाइड्रोलॉजिकल डेटा को भारत से शेयर नहीं किया था। ब्रह्मपुत्र नदी के हाइड्रोलॉजिकल डेटा को साझा न करने की वजह से उस साल असम में भयानक बाढ़ आई थी। चीन के तिब्बत ऑटोनॉमस क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी यानी यारलंग झांग्बो नदी सबसे बड़ा जल संसाधन का स्रोत है। तिब्बत में 50 किलोमीटर क्षेत्र में यारलंग जांग्बो ग्रैंड कैनियन है। यहां पर पानी 2000 मीटर से नीचे गिरता है। यहां पर 70 मिलियन किलोवॉट प्रति घंटा की दर से बिजली पैदा की जा सकती है। यानी चीन के सबसे बड़े बांध थ्री-गॉर्जेस पावर स्टेशन के बराबर।