भारत की भरपूर मदद के बाद भी श्रीलंका में जीते शी जिनपिंग! जासूसी जहाज पहुंचा, जानें चीन ने क्या कहा?
चीनी आधिकारिक मीडिया अकाउंट्स के मुताबिक, 2,000 से अधिक चालक दल वाले इस रिसर्च जहाज में उपग्रहों और बैलिस्टिक मिसाइलों को ट्रैक करने के लिए उन्नत सुविधाएं हैं।
बीजिंग/कोलंबो, अगस्त 17: चीन ने मंगलवार को कहा कि, उसके हाई-टेक रिसर्च पोत की गतिविधियों से किसी भी देश की सुरक्षा प्रभावित नहीं होगी और इसे किसी भी "तीसरे पक्ष" द्वारा "बाधित" नहीं किया जाना चाहिए। चीन की तरफ से ये बयान उस वक्त आया है, जब उसका हाई-टेक जहाज, जिसे जासूसी जहाज कहा जा रहा है, वो श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर भारत की तमाम आपत्तियों के बाद भी पहुंच चुका है। श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को चीन ने ही बनवाया है और चीन ने बंदरगाह को 99 सालों के लिए लीज पर ले लिया।
जासूसी जहाज पर चीन का बयान
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि, 'युआन वांग 5' जहाज "श्रीलंका की ओर से सक्रिय सहयोग" के साथ हंबनटोटा बंदरगाह पर "सफलतापूर्वक बर्थ" हो गया है। हालांकि, वांग ने श्रीलंका को वित्तीय सहायता देने के एक प्रश्न को टाल दिया। आपको बता दें कि, श्रीलंका पर चीन के साथ साथ अन्य देशों का 51 अरब डॉलर का कर्ज है, जिसकी वजह से श्रीलंका दिवालिया घोषित हो गया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि, जब चीन का युआन वांग 5 जहाज श्रीलंका के बंदरगाह पर पहुंचा, तो श्रीलंका में चीन के राजदूत क्यूई जेनहोंग ने बंदरगाह पर पहुंचकर चीनी जहाज का स्वागत किया। आपको बता दें कि, हिंद महासागर में स्थिति हंबनटडोटा बंदरगाह पर चीनी जासूसी जहाजों का पहुंचना भारत के लिए चिंता की बात है और इसको लेकर अमेरिका ने भी चिंताजनक प्रतिक्रिया दी है, जिसको लेकर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि, "मैं फिर से जोर देना चाहता हूं, कि युआन वांग -5 जहाज की समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान गतिविधियां अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप हैं'। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आगे कहा, कि "वे किसी भी देश की सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्रभावित नहीं करते हैं और किसी तीसरे पक्ष द्वारा इसे बाधित नहीं किया जाना चाहिए।"
समारोह में शामिल थे श्रीलंकन अधिकारी
आपको बता दें कि, श्रीलंका के भी कई अधिकारी चीनी जहाज का स्वागत करने के लिए हंबनटोटा पोर्ट पर तैनात थे और चीनी विदेशी मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी इस बात का जिक्र किया और कहा, कि समारोह में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के प्रतिनिधि के अलावा "दस से अधिक दलों के प्रमुख और मित्र समुदायों के प्रमुख" शामिल थे। उन्होंने कहा कि, "उस वक्त चीनी और श्रीलंका के राष्ट्रगान बज रहे थे और श्रीलंकाई लोगों ने रेड कार्पेट पर पारंपरिक लोक नृत्य का भी प्रदर्शन किया।" वहीं, चीन की तरफ से कहा गया है कि, चीनी रिसर्च जहाज को हंबनटोटा पोर्ट पर आवश्यक आपूर्ति को पूरा करने में कुछ समय लगेगा। आपको बता दें कि, भारत और अमेरिका की गहरी आपत्ति के बाद श्रीलंका सरकार ने पहले चीनी जहाज को देर से आने के लिए कहा था। भारत और अमेरिका ने चिंता जताते हुए कहा था, कि चीनी जहाज में कथित तौर पर उपग्रह और बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकिंग की क्षमता हो सकती है, लेकिन बाद में श्रीलंका ने चीनी जहाज को 16 से 22 अगस्त तक के लिए बंदरगाह पर आने की इजाजत दे दी।
श्रीलंका से बातचीत की जानकारी देने से इनकार
आपको बता दें कि, प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान चीनी विदेश मंत्रालय ने श्रीलंका के साथ हुई बातचीत का ब्योरा देने से इनकार कर दिया। आपको बता दें कि, पहले श्रीलंका ने चीनी रिसर्च जहाज को आने की इजातत देने से इनकार कर दिया था, लेकिन फिर अचानक श्रीलंका जहाज को पोर्ट पर आने की मंजूरी देने के लिए तैयार हो गया, लिहाजा तमाम एक्सपर्ट्स इस बात को लेकर हैरान हैं और जानना चाहते हैं, कि आखिर चीन और श्रीलंका के बीच ऐसी क्या बातचीत की गई, जिससे श्रीलंका फौरन तैयार हो गया। इस बातचीत के बारे में कई बार पूछे जाने के बाद चीनी प्रवक्ता ने कहा कि, "जहां तक आपने जो विशिष्ट प्रश्न उठाए हैं, हमने कई बार चीन की स्थिति का उल्लेख किया है।"
श्रीलंका पर आग-बबूला हुआ था चीन
आपको बता दें कि, जब श्रीलंका ने चीनी जहाज को अपने बंदरगाह पर आने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, उसके बाद बीजिंग ने 8 अगस्त को गुस्से में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था, कि कुछ देशों के लिए कोलंबो पर दबाव डालना और उसके आंतरिक मामलों में "घोर हस्तक्षेप" करने के लिए तथाकथित सुरक्षा चिंताओं का हवाला देना "पूरी तरह से अनुचित" है। चीनी आधिकारिक मीडिया अकाउंट्स के मुताबिक, 2,000 से अधिक चालक दल वाले इस रिसर्च जहाज में उपग्रहों और बैलिस्टिक मिसाइलों को ट्रैक करने के लिए उन्नत सुविधाएं हैं। लिहाजा, ये जहाज भारत के लिए काफी खतरनाक है।
श्रीलंका ने क्या कहा?
श्रीलंका ने कहा कि उसने व्यापक विचार-विमर्श के बाद जहाज को अपने पोर्ट पर आने की अनुमति दी है। कोलंबो के इस फैसले ने इन अटकलों को और भी बढ़ा दिया है, कि बीजिंग श्रीलंका के पिछले अनुरोध के बारे में सकारात्मक घोषणा कर सकता है। श्रीलंका ने इस साल जनवरी में चीन के राष्ट्रपति से गुहार लगाई थी, कि श्रीलंका पर चीनी कर्ज का रीस्ट्रक्चर किया जाए और माना जा रहा है, कि चीन ने श्रीलंका को अब आश्वासन दिया है, कि वो श्रीलंका को आईएमएफ से कर्ज मिलने तक कर्ज को रीस्ट्रक्चर कर सकता है। हालांकि, चीन ने इन बातों से इनकार कर दिया है। यह पूछे जाने पर, कि अब जहाज को डॉक करने की अनुमति दे दी गई है, तो क्या चीन श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को देखते हुए उसे काफी जरूरी वित्तीय सहायता प्रदान करेगा? चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग ने मंगलवार को कहा कि, "जैसा कि हमने कई बार जोर दिया है, श्रीलंका के मित्रवत के रूप में पड़ोसी, चीन इस समय श्रीलंका के सामने आर्थिक और सामाजिक कठिनाइयों के लिए गहराई से महसूस करता है'।
नजदीकी नजर रख रहा है भारत
वहीं, भारत ने कहा है, कि वह अपनी सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्रभावित करने वाले किसी भी कदम की सावधानीपूर्वक निगरानी करता है। नई दिल्ली इस संभावना के बारे में चिंतित है, कि जहाज के ट्रैकिंग सिस्टम श्रीलंकाई बंदरगाह के रास्ते में भारतीय प्रतिष्ठानों पर जासूसी करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत ने पारंपरिक रूप से हिंद महासागर में चीनी सैन्य जहाजों के बारे में कड़ा रुख अपनाया है, और अतीत में भी श्रीलंका के साथ इस तरह की यात्राओं का विरोध किया है। साल 2014 में भी कोलंबो ने एक चीनी परमाणु पनडुब्बी को हंबनटोटा पोर्ट पर आने की इजाजत दे दी थी, जिसके बाद भारत और श्रीलंका के संबंध काफी तनावपूर्ण हो गये थे। भारत की चिंता विशेष रूप से हंबनटोटा बंदरगाह पर केंद्रित है, जिसे साल 2017 में कोलंबो ने 99 वर्षों के लिए चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स को पट्टे पर दे दिया था, क्योंकि श्रीलंका अपना कर्ज नहीं चुका पाया था। लिहाजा हमेशा संभावना बनी रहती है, कि हंबनटोटा बंदरगाह का इस्तेमाल चीन सैन्य गतिविधियों के लिए कर सकता है।
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