कैटेलोनिया के पूर्व राष्ट्रपति पुजिमोंट हिरासत में
यूरोपियन अरेस्ट वारंट के तहत कैटेलोनिया के पूर्व राष्ट्रपति कार्लस पुजिमोंट को जर्मनी की पुलिस ने गिरफ़्तार किया है.
स्पेन में उन पर राजद्रोह और विद्रोह के आरोप साबित होते हैं तो उन्हें जेल में 30 साल बिताने पड़ सकते हैं.
पुजिमोंट गुरुवार से फ़िनलैंड के दौरे पर थे जब तक प्रशासन उन्हें गिरफ़्तार कर पाता वह शुक्रवार को फ़िनलैंड से बाहर आ गए.
यूरोपियन अरेस्ट वारंट के तहत कैटेलोनिया के पूर्व राष्ट्रपति कार्लस पुजिमोंट को जर्मनी की पुलिस ने गिरफ़्तार किया है.
स्पेन में राजद्रोह और बग़ावत के लिए वांछित पुजिमोंट के बारे में उनके वकील ने बताया कि डेनमार्क से बेल्जियम जाते समय उन्हें गिरफ़्तार किया गया.
पुजिमोंट गुरुवार से फ़िनलैंड के दौरे पर थे जब तक प्रशासन उन्हें गिरफ़्तार कर पाता वह शुक्रवार को फ़िनलैंड से बाहर आ गए.
बीते साल अक्टूबर में कैटेलोनिया की संसद ने स्पेन से एकतरफ़ा आज़ादी का ऐलान कर दिया था, तभी से पुजिमोंट देश से बाहर बेल्जियम में रह रहे थे.
हाल ही में उनके ख़िलाफ़ यूरोपियन गिरफ़्तारी वारंट को दोबारा सक्रिय किया गया था.
स्पेन में उन पर राजद्रोह और विद्रोह के आरोप साबित होते हैं तो उन्हें जेल में 30 साल बिताने पड़ सकते हैं.
उनके प्रवक्ता जोआन मारिया पीक ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि वो बेल्जियम जा रहे थे.
जर्मनी की पुलिस ने बताया है कि पुजिमोंट को डेनमार्क सीमा के पास उत्तरी राज्य श्लीस्वी होजटाइन में हाइवे पेट्रोल ने हिरासत में लिया.
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क्षेत्र में तनाव पहुंचा चरम पर
कैटेलोनिया में तनाव चरम पर है और शुक्रवार को राष्ट्रपति पद के नए उम्मीदवार जॉर्डी टुरुलिया की गिरफ़्तारी के बाद अलगाववादी नेताओं की योजना खटाई में पड़ी हुई है.
स्पेन की सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि कैटेलोनिया के 25 नेताओं के ख़िलाफ़ बग़ावत, ग़बन या राज्य की अवहेलना की कोशिश का मामला चलना चाहिए. इसके बाद शुक्रवार रात को बार्सिलोना में प्रदर्शनकारियों की भीड़ और पुलिस के बीच झड़प हुई थी.
इस आदेश को कैटेलोनिया की स्वतंत्रता के आंदोलन के ख़िलाफ़ एक बेहद गंभीर चुनौती माना जा रहा है. लगभग पूरे नेतृत्व को अब बड़ी क़ानूनी लड़ाई लड़नी होगी.
जनमत संग्रह के बाद स्पेन की केंद्रीय सरकार ने कैटेलोनिया सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया था और सीधे शासन चलाने लगी थी. इसके बाद दोबारा चुनाव हुए लेकिन उसमें भी कम बहुमत से स्वतंत्रता समर्थक पार्टियां जीत गईं.
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