बढ़ती ऊर्जा कीमतों की वजह से ब्रिटिश पब बंद होने की कगार पर, सरकार के लिए बड़ी चुनौती
पब ब्रिटिश सामाजिक जीवन का एक मुख्य आधार है,लेकिन अब कई पब मालिक इसके सामान्य व्यवसाय को लेकर चिंतित हैं। वह इसलिए क्योंकि, बढ़ती मुद्रास्फीति के साथ ऊर्जा कीमतें भी आसमान छू रही हैं।
लंदन, 30 अगस्त : ब्रिटेन में घोर ऊर्जा संकट के बीच वहां के बड़े और छोटे पब बंद होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। देश की छह सबसे बड़ी पब और शराब बनाने वाली फर्मों का कहना है कि, इस साल ऊर्जा की महंगाई ने उनकी कमर को तोड़कर रख दिया है। जानकारी के मुताबिक, इस साल बिजली के बिलों में तीन गुना से अधिक की बढोतरी देखी गई है। वहीं, जेडब्ल्यू लीज पब समूह के प्रबंध निदेशक विलियम लीज जोन्स ने कहा कि, पब संचालकोम का मानना है कि, वे ऊर्जा लागत में 300 फीसदी से अधिक की वृद्धि का अनुभव कर रहे हैं। (British pubs could be forced to close because of massive increases in energy prices)
ऊर्जा संकट से ब्रिटेन में बढ़ी मुसीबत
वहीं, मुख्य कार्यकारी निक मैकेंज़ी ने कहा कि, ग्रीन किंग समूह के पब मालिकों ने अपने ऊर्जा बिल में 33 हजार पाउंड की वृद्धि देखी है। इस कारण ये खबर उनके लिए राहत देने वाला नहीं है। कई पब मालिकों की तरफ से नोटिस मिल रहा है। वहीं, ग्रीन किंग समूह के पब किरायेदारों ने इस साल अपने ऊर्जा बिल में £ 33,000 ($ 38,600) की वृद्धि देखी है। वहीं, सरकार ऊर्जा संकट से निपटने के लिए लोगों की मदद करने की दिशा में कुछ उपायों की शुरूआत की है। वहीं, पब व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए यह घड़ी किसी आफत से कम नहीं है। वे इन समस्याओं का अकेल सामना कर रहे हैं। अनुमान है कि, आने वाले शरद ऋतु में हालात और भी ज्यादा बिगड़ सकते हैं।
पब संस्कृति खत्म होने की कगार पर
पब संचालकों का कहना है कि, बिना सरकारी हस्तक्षेप के वे कुछ नहीं कर सकते हैं। सरकार को पबों की दुर्दशा से निपटने के लिए कारगर उपाय खोजने होंगे, क्योंकि वे ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के कारण पबों के बिलों का भुगतान करने में असमर्थ हैं। देश में आलम यह है कि, ऊर्जा संकट की वजह से पब जैसे बड़े-बड़े व्यवसायिक केंद्र डूबने की कगार पर हैं, जिसके कारण देश में लोगों की नौकरी जाने की संभावना प्रबल हो गई है। इसका मतलब यह हुआ कि कोरोना काल में व्यवसायों के सही से संचालन करने के जितने भी उपाय किए गए थे, वे अब ऊर्जा संकट काल में व्यर्थ हो जाएंगे।
40 साल में अब तक का सबसे बुरा दौर
वहीं, ब्रिटेन ने पिछले 40 साल के इतिहास में मुद्रास्फीति को उच्च स्तर पर देखा है। जिसके कारण लोगों की नौकरी और वेतन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वहीं, पिछले हफ्ते ऊर्जा नियामक ऑफगेम ने अक्टूबर से औसत घरों के लिए गैस और बिजली की कीमतों में 80 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा की है। साथ ही आशंका जताई जा रही है कि, जनवरी से बिजली बिलों में अधिक बढ़ोतरी की संभावना जताई जा रही है।
ऊर्जा संकट से नौकरी जाने का खतरा
बता दें कि, महंगाई अब 40 साल के उच्चतम स्तर पर है और जाहिर है कि पबों को एक नई चुनौती का सामना करना पड़ा है। महामारी के दौरान पब उल्लेखनीय रूप से लचीला साबित हुए थे लेकिन अब ऊर्जा की बढ़ती लागत, मुद्रास्फीति के दबाव और कर वृद्धि की वजह से व्यापार संकट से जूझ रहे हैं." लोगों की नौकरी खतरे में है और वेतन में भारी कटौती के आसार दिख रहे हैं। इन विकट परिस्थितियों से निपटने के लिए, कई बड़ी कंपनियां जिनमें ग्रीन किंग, जेडब्ल्यू लीज, कार्ल्सबर्ग मार्स्टन, एडमिरल टैवर्न, ड्रैक एंड मॉर्गन और सेंट ऑस्टेल ब्रेवरी ने व्यवसायों के लिए कैप का विस्तार करने के लिए सरकार को एक खुला पत्र लिखा है।
कोरोना महामारी के बाद ऊर्जा संकट से जूझ रहा देश का पब
बता दें कि, इंग्लैंड और वेल्स में पबों की संख्या में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई थी। एक रिपोर्ट में, इस गिरावट के लिए Covid 19 महामारी और बढ़ती कीमतों को जिम्मेदार ठहराया गया। इस साल की पहली छमाही में पब की संख्या 40,000 तक नीचे गिर गई। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 10 साल के दौरान 7,000 से ज्यादा पब बंद हो गए। रियल एस्टेट सलाहकार अल्टस ग्रुप (Altus Group) ने कहा था कि दिसंबर के अंत से लेकर पिछले महीने के अंत तक कुल 200 पब हमेशा के लिए "Last Orders" (अंतिम आदेश) की बात करने लग गए थे।
यूक्रेन संकट से स्थिति बिगड़ी
वहीं, एक उद्योग निकाय, ब्रिटिश बीयर एंड पब एसोसिएशन, के मुताबिक, ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि, थोक लागत में बढ़ोतरी और यूक्रेन में युद्ध के कारण आपूर्ति पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। अगर आगे ऊर्जा संकट से निपटने के उपाय नहीं खोजे जाते हैं तो ये संकट महामारी से भी अधिक विकराल रूप धारण कर सकती है। वहीं, दूसरी तरफ मछली और चिप्स बेचने वाले टेकअवे ने भी देश की ऊर्जा संकट से उत्पन्न परिस्थिति पर चिंता व्यक्त की है। बता दें कि, ब्रिटेन में टेकअवे देश की अर्थव्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। यूक्रेन संकट के कारण यूरोप के कई देश भारी संकट की दौर से गुजर रहा है। रूस से सफेद मछली के आयात पर बढ़े टैरिफ और यूक्रेन से वनस्पति तेल की आपूर्ति में कमी आने के कारण इससे संबंधित खाद्य वस्तुओं की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। इसको लेकर 750 से अधिक आउटलेट्स ने सरकार को चेतावनी देते हुए एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर भी किए।
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