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भास्कर हलमी: भूखे पेट कई रातें बिताने वाला आदिवासी लड़का अमेरिका में बना वैज्ञानिक, सुनाई संघर्ष की दास्तां

आदिवासी समुदाय से आने वाले भास्कर हलमी आज अमेरिका की एक बड़ी कंपनी में वरिष्ठ वैज्ञानिक के तौर पर काम कर रहे हैं।

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आदिवासी समुदाय को मुख्यधारा में पिछड़ा माना जाता रहा है। आदिवासी समुदाय से निकले चुनिंदा लोग ही हैं जो अपने अभाव से निकलकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाम बनाते दिखते हैं। प्रतिष्ठित नौकरियों में आदिवासी समाज की मौजूदगी का काफी अभाव दिखता है। ऐसे में न सिर्फ देश बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यदि कोई आदिवासी समुदाय का व्यक्ति भारत का नाम रोशन करता है तो खुशी स्वाभाविक है। अमेरिका की एक बड़ी कंपनी में वरिष्ठ वैज्ञानिक के तौर पर काम कर रहे भास्कर हलमी आज पूरे देश में लोगों के प्रेरणास्तोत्र बन चुके हैं।

Image- PTI

अमेरिकी कंपनी में रिसर्च कर रहे भास्कर हलमी

अमेरिकी कंपनी में रिसर्च कर रहे भास्कर हलमी

भास्कर हलमी इस समय अमेरिका के मैरीलैंड में एक बायोफार्मास्युटिकल कंपनी सिरनामिक्स इंक के अनुसंधान और विकास खंड में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। यह कंपनी आनुवंशिक दवाओं में अनुसंधान करती है और यहां भास्कर हलमी आरएनए मैन्युफैक्चरिंग और सिंथेसिस का काम देखते हैं। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के एक सुदूर गांव में बचपन में एक वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करने से लेकर अमेरिका में वरिष्ठ वैज्ञानिक बनने तक, भास्कर हलमी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ क्या हासिल किया जा सकता है।

बेहद अभाव में बीता भास्कर का बचपन

बेहद अभाव में बीता भास्कर का बचपन

भास्कर हलमी की एक सफल वैज्ञानिक बनने की यात्रा काफी बड़ा बाधाओं से भरी रही। भास्कर के नाम पर कई चीजें पहली बार हुई हैं। वह चिरचडी से विज्ञान स्नातक और मास्टर डिग्री और पीएचडी हासिल करने वाले गांव के पहले व्यक्ति थे। पीटीआई से बात करते हुए, हलमी ने बताया कि बचपन के शुरुआती वर्षों में, उनके परिवार ने बहुत कम चीजों में गुजारा किया। भास्कर ने कहा, "हमें एक समय के भोजन के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता था। मेरे माता-पिता अभी भी सोच में पड़ जाते हैं कि कैसे हम बिना भोजन और काम के उस वक्त में जीवित रह गए।"

भास्कर ने सुनाई संघर्ष की दास्तां

भास्कर ने सुनाई संघर्ष की दास्तां

भास्कर ने कहा कि वर्ष में कुछ महीने, विशेष रूप से मानसून, अविश्वसनीय रूप से कठिन समय होता था, क्योंकि छोटे खेत में कोई फसल नहीं होती थी जो परिवार को लोगों को कोई काम दे सके। अपने संघर्ष के शुरुआती दिनों को याद करते हुए भास्कर ने बताया, "हमारा परिवार भोजन के लिए महुआ के फूल को पकाता था और खाता था। पेट भरने के लिए फूल को खाते थे लेकिन उसे पचाना आसान नहीं होता हम परसोद (जंगली चावल) इकट्ठा करते थे और चावल के आटे को पानी (अंबिल) में पकाते थे और अपना पेट भरने के लिए पीते थे। यह सिर्फ हम नहीं थे, बल्कि 90 प्रतिशत थे। गांव के लोगों को इस तरह से जीवित रहना पड़ता था"

पिता की नौकरी के बाद स्थिति सुधरी

पिता की नौकरी के बाद स्थिति सुधरी

हलमी के माता-पिता गांव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करते थे, क्योंकि उनके छोटे से खेत से उपज परिवार का भरण पोषण करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। हलमी परिवार की स्थिति तब सुधरी जब सातवीं कक्षा तक पढ़ चुके हलामी के पिता को पता चला कि 100 किमी से अधिक दूर कसनसुर तहसील के एक स्कूल में नौकरी है। हलमी ने कहा, "मेरी मां के पास यह जानने का कोई तरीका नहीं था कि मेरे पिता स्कूल पहुंचे हैं भी या नहीं। हमें उनके बारे में तभी पता चला जब वह कई महीने बाद हमारे गांव लौटे थे। मेरे पिता ने कसानसुर के स्कूल में रसोइया की नौकरी की थी। बाद में हम भी अपने पिता के साथ रहने लगे"।

पिता ने समझा शिक्षा का मूल्य

पिता ने समझा शिक्षा का मूल्य

भास्कर हलमी ने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा कासानसुर के एक आश्रम स्कूल में कक्षा 1 से 4 तक की, और छात्रवृत्ति परीक्षा पास करने के बाद, उन्होंने यवतमाल के सरकारी विद्यानिकेतन केलापुर में कक्षा 10 तक पढ़ाई की। उन्होंने कहा, "मेरे पिता ने शिक्षा के मूल्य को समझा और यह सुनिश्चित किया कि मैं और मेरे भाई-बहन अपनी पढ़ाई पूरी करें।" गढ़चिरौली के एक कॉलेज से विज्ञान स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद, भास्कर ने नागपुर में विज्ञान संस्थान से रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।

MIT से पीएचडी किया

MIT से पीएचडी किया

भास्कर हलमी 2003 में नागपुर में प्रतिष्ठित लक्ष्मीनारायण इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किए गए। हलामी का ध्यान अनुसंधान पर बना रहा और उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में पीएचडी की पढ़ाई की और अपने शोध के लिए डीएनए और आरएनए को चुना। हलमी ने मिशिगन टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। हलामी अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं, जिन्होंने कड़ी मेहनत की। हलमी ने चिरचडी में अपने परिवार के लिए एक घर बनाया है, जहां उनके माता-पिता रहना चाहते थे। कुछ साल पहले भास्कर के पिता की मौत हो गई थी। भास्कर को हाल ही में गढ़चिरौली में राज्य आदिवासी विकास के अतिरिक्त आयुक्त रवींद्र ठाकरे द्वारा सम्मानित किया गया था।

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English summary
Bhaskar Halami, a tribal boy from Chirchadi who becomes a scientist in US
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