क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

अफगानिस्तान के खेल में कहां हैं चीन, पाकिस्तान और भारत

Google Oneindia News

नई दिल्ली, 24 अगस्त। 19वीं सदी में रूसी और ब्रिटिश साम्राज्य अफगानिस्तान के लिए एक-दूसरे से लड़ रहे थे. 20वीं सदी में वैसा ही संघर्ष अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुआ. अब जबकि तालिबान ने एक बार फिर अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है तो एक नया संघर्ष शुरू हो गया है जिसमें फिलहाल पाकिस्तान का नियंत्रण सबसे मजबूत है और उसका सहयोगी चीन अपनी पकड़ बढ़ा रहा है.

Provided by Deutsche Welle

तालिबान के साथ पाकिस्तान के संबंध काफी मजबूत हैं. उस पर अमेरिका-समर्थित सरकार के खिलाफ तालिबान की मदद के आरोप भी लगते रहे. हालांकि पाकिस्तान इन आरोपों को गलत बताता है. 15 अगस्त को जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि अफगानों ने 'गुलामी की बेड़ियां' तोड़ दी हैं.

तीन उम्मीदवार

अब जबकि तालिबान नई सरकार गठन पर चर्चा कर रहा है तो कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी नेता इस चर्चा में शामिल हैं. उसके विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने इस्लामाबाद में बताया कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में एक ऐसा राजनीतिक समझौता चाहता है जिसमें सभी पक्ष शामिल हों और जो शांति और स्थिरता सुनिश्चित करे. हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि मुख्य भूमिकाओं में अफगान ही हैं.

अफगानिस्तान में अब तक चीन की कोई भूमिका नहीं रही है. लेकिन पाकिस्तान के साथ उसका मजबूत गठजोड़ उसे फायदेमंद स्थिति में ले आया है. खनिजों से भरपूर अफगानिस्तान की ओर चीन अब कराकोरम दर्रे के रास्ते पाकिस्तान में अपने रास्ते की सुरक्षा के बारे में भी सोच रहा है.

और फिर है, भारत. पाकिस्तान का पुराना प्रतिद्वंद्वी, जिसका चीन के साथ सीमा विवाद चल रहा है. काबुल की लोकतांत्रिक सरकार को भारत ने भरपूर समर्थन दिया और वहां जमकर निवेश भी किया. लेकिन चीन और पाकिस्तान के मुख्य भूमिका में आ जाने से भारत में चिंता महसूस की जा सकती है.

चीन के लिए अवसर

वैसे चीन कहता है कि तालिबान से बातचीत का उसका मुख्य मकसद अपने पश्चिमी प्रांत शिनजियांग को पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन (ETIM) से बचाना है, जो अफगानिस्तान में मदद पा सकता है.

सिचुआन यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया से जुड़े मामले पढ़ाने वाले प्रोफेसर जांग ली कहते हैं, "हो सकता है पाकिस्तान अफगानिस्तान का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करना चाहता हो, लेकिन चीन के मामले में ऐसा जरूरी नहीं है. चीन की मुख्य चिंता इस वक्त यह है कि तालिबान एक समावेशी उदार सरकार बनाए ताकि शिनजियांग और अन्य इलाकों में आतंकवाद न पनपे. इसके अलावा अगर कोई गणित है तो उसका सामने आना बाकी है."

नई दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में पढ़ाने वाले प्रोफेसर ब्रह्मा चेलानी कहते हैं कि चीन ने तालिबान के सामने दो प्रलोभन रखे हैं, कूटनीतिक मान्यता और आर्थिक मदद. वह कहते हैं, "अवसरवादी चीन निश्चित तौर पर इस नए मौके का इस्तेमाल खनिजों से भरपूर अफगानिस्तान के साथ साथ पाकिस्तान, ईरान और मध्य एशिया में पैठ करेगा."

उलझन में भारत

तालिबान के पिछले शासन के साथ भारत के अनुभव बहुत कड़वे रहे हैं. 1996 से 2001 के बीच तालिबान का शासन था. 1999 में भारत की इंडियन एयरलाइंस के विमान का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था और वे उसे अफगानिस्तान ले गए थे. अपने लोगों को छुड़ाने के लिए भारत को तीन पाकिस्तानी आतंकी छोड़ने पड़े थे.

आज के फैसलों पर उस अनुभव का कितना असर होगा? काबुल में भारत के पूर्व राजदूत जयंत प्रसाद कहते हैं, "आज हम मौजूदा असलियत के साथ सामंजस्य बनाना चाहते हैं. हमें अफगानिस्तान में एक लंबा खेल खेलना है. उसके साथ हमारी सीमा नहीं लगती लेकिन हमारे हित प्रभावित होते हैं."

भारत में कूटनीतिक हल्कों के लोग कहते हैं कि जब अमेरिका ने तालिबान के साथ दोहा वार्ता शुरू की थी तो भारत ने भी बातचीत का रास्ता खोल लिया था. एक सूत्र के मुताबिक, "हम वहां सभी हिस्सेदारों के साथ बात कर रहे हैं."

दिल्ली अभी बाहर नहीं

अपने सारे हित अशरफ गनी सरकार से जोड़ देने को लेकर भारत सरकार की घरेलू हल्कों में आलोचना होती रही है. और कहा जाता है कि भारत ने तालिबान से संपर्क साधने में देर कर दी.

फिर भी, कुछ लोग मानते हैं कि भारत एक अहम आर्थिक ताकत है जो तालिबान के लिए अहम भूमिका निभा सकता है, जो शायद चीन पर पूरी तरह निर्भर न होना चाहे.

पिछले बीस साल में भारत ने अफगानिस्तान में भारी निवेश किया है. देश के सभी 34 राज्यों में उसकी छोटी बड़ी कोई परियोजना चल रही है. इसमें काबुल में बना नया संसद भवन भी शामिल है, जिस पर पिछले हफ्ते तालिबान ने कब्जा कर लिया.

दक्षिण एशिया पर तीन किताबें लिख चुकीं पूर्व रॉयटर्स पत्रकार मायरा मैकडॉनल्ड कहती हैं कि तालिबान का अफगानिस्तान पर नियंत्रण हो जाना भले ही भारत के लिए धक्का था, लेकिन नई दिल्ली को अभी खेल से बाहर नहीं समझा जा सकता.

वह बताती हैं, "यह इतिहास का दोहराव नहीं है. इस बार हर कोई बहुत सावधान रहेगा ताकि पिछली बार की तरह अफगानिस्तान में आतंकवाद का गढ़ स्थापित न हो जाए. और फिर, भारत पाकिस्तान से कहीं ज्यादा बड़ी आर्थिक ताकत है."

तालिबान भी इस बात को समझता है. उसके एक वरिष्ठ सदस्य ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि गरीब अफगानिस्तान को ईरान, अमेरिका और रूस के अलावा दक्षिण एशियाई देशों की मदद की भी जरूरत होगी.

तालिबान के केंद्रीय संगठन तक पहुंच रखने वाले वहीदुल्लाह हाशमी कहते हैं, "हम उनसे मदद की उम्मीद करते हैं. खासकर स्वास्थ्य, व्यापार और खनन क्षेत्रों में. हमारा काम है उन्हें यकीन दिलाना कि हमें स्वीकार करें."

वीके/एए (रॉयटर्स)

Source: DW

Comments
English summary
analysis china pakistan india jockey for position in afghanistans new great game
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X