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अमेरिका का डबल गेम, भारत को रोककर खुद भारी मात्रा में खरीद रहा रूसी तेल, बाइडेन का दोमुंहा रवैया?

अमेरिका काफी कम कीमत पर रूस से तेल का आयात करता है और रूसी तेल खरीदना अमेरिका के लिए काफी सस्ता पड़ता है और फिर अमेरिका उस तेल को रिफाइंड कर ऊंची कीमत पर कई यूरोपीय देशों को बेच देता है।

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वॉशिंगटन/नई दिल्ली, अप्रैल 06: रूस से तेल व्यापार भारत फौरन बंद करे, अमेरिका की तरफ से लगातार और बार बार भारत को ये धमकी दी जा रही है और अमेरिकी अधिकारी हर दिन कच्चे तेल के आयात को लेकर भारत को धमकी दे रहे हैं। एक दिन पहले भी व्हाइट हाउस ने कहा है कि, रूस से तेल खरीदना भारत के हित के लिए सही नहीं है, लेकिन रूस ने कहा है कि, पिछले एक हफ्ते में अमेरिका ने उससे तेल आयात में 43% की वृद्धि कर दी है। ऐसे मे सवाल ये है, कि अमेरिका का ये दोमुंहा रवैया नहीं है?

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अमेरिका का दोमुंहा रवैया

अमेरिका का दोमुंहा रवैया

आपको याद होगा, अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से ही भारत ने अपने खास दोस्त ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद किया था और अमेरिका की वजह से ही भारत और ईरान की दोस्ती में दरार आई थी और अमेरिका की वजह से ही आज भारत, यूक्रेन जंग में कठिन डिप्लोमेटिक परिस्थितियों में फंसा हुआ है। लेकिन, रूस के एक अधिकारी ने कहा है कि, यूक्रेन संकट के बीच अमेरिका काफी तेजी से अपने तेल के भंडार को बढ़ा रहा है, जबकि वो दुनिया के बाकी देशों को रूस से तेल खरीददारी बंद करने के लिए प्रेशर बना रहा है।

रूस ने लगाया बड़ा आरोप

रूस ने लगाया बड़ा आरोप

रूसी सुरक्षा परिषद की उप सचिव मिखाइल पोपोव ने रविवार को एक नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इसका खुलासा किया है, कि पिछले एक हफ्ते में अमेरिका ने रूस से कच्चे तेल का आयात 43 प्रतिशत बढ़ा दिया है। जिसका मतलब ये हुआ, कि पिछले एक हफ्ते से अमेरिका ने रूस से हर दिन सौ हजार बैरल कच्चा तेल खरीदना शुरू कर दिया है, जबकि दूसरी तरफ अमेरिका और अमेरिका के रूसी सहयोगी, खासकर ब्रिटेन... भारत पर प्रेशर बना रहे हैं, कि भारत रूस से कच्चे तेल का आयात फौरन बंद कर दे। अमेरिका और ब्रिटेन की हिप्पोक्रेसी की हद ये है, कि ब्रिटेन ने खुद भी रूस से ना ही तेल खरीदना बंद किया है और ना ही... तेल खरीदने को लेकर ट्रांजैक्शन पर ही कोई प्रतिबंध लगाए हैं।

अमेरिका का आश्चर्यजनक फैसला

अमेरिका का आश्चर्यजनक फैसला

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट में रूसी अधिकारी ने कहा है कि, यूरोपीय देशों को अमेरिका के इसी तरह से आश्चर्यजनक व्यवहार के लिए तैयार रहना चाहिए। इतना ही नहीं, रूसी अधिकारी ने कहा है कि, अमेरिका ने ना सिर्फ कच्चे तेल का आयात पिछले एक हफ्ते में 43% बढ़ा दिया है, बल्कि अमेरिकी सरकार ने अपनी कंपनियों को आदेश दिए हैं, कि वो रूस से खनिज उर्वरक भी भारी मात्रा में खरीदें। रूसी अधिकारी ने चौंकाने वाला दावा करते हुए कहा कि, अमेरिका ने खनिज उर्वरक को जरूरी वस्तु के तौर पर मान्यता दे दी है। जबकि, दनिया के कई देश रूसी कच्चे तेल और गैस पर निर्भर हैं, ये जानते हुए भी अमेरिका और ब्रिटेन... उन देशों पर फौरन रूसी तेल खरीदने पर प्रतिबंध लगाने का प्रेशर बना रहे हैं।

अमेरिका देख रहा है अपना हित

अमेरिका देख रहा है अपना हित

ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नॉर्मल यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर रशियन स्टटीज ऑफ ईस्ट चायना के सहायक रिसर्च फेलो कुई हेंग ने कहा कि, असल में अमेरिका दो नीतियों पर काम कर रहा है। अमेरिका की पहली नीति अपने हितों को सबसे आगे रखना और देखना है, और दूसरी नीति रूस का मुकाबला करने के लिए उदारवादी रूख अपनाना है। कुई हेंग ने कहा कि, अमेरिका ज्यादा से ज्यादा तेल खरीदकर अपना स्टॉक बढ़ा रहा है, ताकि आने वाले वक्त में अगर वो रूस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए, तो कुछ महीनों तक... जब तक की अमेरिका फिर से प्रतिबंध हटाए, उसे कोई फर्क नहीं पड़े, और दूसरी तरफ बाजार पर भी अमेरिका का नियंत्रण बना रहे।

सस्ती कीमत पर रूसी तेल

सस्ती कीमत पर रूसी तेल

रिसर्च फेलो कुई हेंग ने कहा कि, अमेरिका काफी कम कीमत पर रूस से तेल का आयात करता है और रूसी तेल खरीदना अमेरिका के लिए काफी सस्ता पड़ता है और फिर अमेरिका उस तेल को रिफाइंड कर ऊंची कीमत पर कई यूरोपीय देशों को बेच देता है, जिससे अमेरिका को भारी मुनाफा होता है और अमेरिका के घरेलू हितों की भी रक्षा होती है और यूरोप पर उसका नियंत्रण भी बना रहता है। उन्होंने कहा कि, अमेरिका के इस कदम से आखिरकार यूरोपीय देशों को ही भारी नुकसान होता है। उन्होंने समझाते हुए कहा कि, अमेरिकी तेल खरीदने से यूरोपीय देशों का पैसा अमेरिका जाता है और यूरो के मुकाबले डॉलर की मजबूती बनी रहती है।

सबसे बड़ा फायदा अमेरिका को

सबसे बड़ा फायदा अमेरिका को

विश्लेषकों का कहना है कि, अमेरिका ने काफी सोच-समझकर रूसी तेल आयात पर प्रतिबंधों का ऐलान किया है, क्योंकि इससे सबसे बड़ा फायदा अमेरिका को ही हो रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि, अमेरिका यूरोपीय देशों पर भी रूसी तेल आयात बंद करने के लिए कह रहा है और ब्रिटेन ने इस साल के अंत तक रूसी तेल आयात करना बंद करने की बात कही है, जो काफी मुश्किल है, लेकिन अमेरिका अपने इस कदम से यूरोपीय देशों को बुरी तरह से फंसा रहा है, जबकि वो खुद रूस से कम कीमत पर ज्यादा तेल खरीद रहा है और फिर उसी तेल को अमेरिका ज्यादा कीमत पर यूरोप को बेच रहा है और यूरोपीय देश उस तेल को खरीदने के लिए मजबूर हैं।

भारत पर भी अमेरिकी दवाब

भारत पर भी अमेरिकी दवाब

सिर्फ यूरोप पर ही नहीं, बल्कि अमेरिका भारत पर भी लगातार रूस से तेल आयात रोकने की मांग कर रहा है, जबकि, भारत महज 1-2 प्रतिशत ही रूसी तेल का आयात करता है। एक दिन पहले व्हाइट हाउस ने कहा है कि, अभी तक भारत ने जो भी कच्चा तेल रूस से खरीदा है और उसका जो भी भुगतान किया है, वो अभी तक रूस पर लगाए गये अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं है। वहीं, व्हाइट हाउस की तरफ से आगे कहा गया, कि नई दिल्ली, अपनी जरूरतों का जितना ऊर्जा आयात करता है, उसमें रूस सिर्फ एक प्रतिशत या दो प्रतिशत का ही प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन, इसके आगे व्हाइट हाउस की तरफ से चेतावनी भरा लहजा इस्तेमाल किया गया।

‘भारत के लिए अहितकारी फैसला’

‘भारत के लिए अहितकारी फैसला’

व्हाइट हाउस एक तरह से भारत को धमकी भरे लहजे में कहा गया है कि, रूस से ऊर्जा आयात को बढ़ाना भारत के हित में नहीं है और जो बाइडेन प्रशासन भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने सोमवार को अपने प्रेस ब्रीफिग में संवाददाताओं से कहा कि, "अभी, आप भी को एक दायरा बताने के लिए मैं बता रही हूं, कि भारत रूस से जो भी ऊर्जा आयात करता है, वो भारत के कुल ऊर्जा उत्पाद का सिर्फ एक या दो प्रतिशत के ही करीब है, लेकिन भारत के लिए रूसी तेल आयात करना उसके हित के लिए सही नहीं है।''

अमेरिका का डबल गेम

अमेरिका का डबल गेम

इससे पहले भी पिछले महीने 16 मार्च को अमेरिका ने धमकी देने की कोशिश की थी और व्हाइट हाउस प्रवक्ता जेन साकी ने कहा था, "...यह भी सोचें कि जब इतिहास की किताबों में इस वक्त के बारे में लिखा जाएगा, तो आप कहां खड़ा होना चाहते हैं? रूसी नेतृत्व के लिए समर्थन एक आक्रमण के लिए समर्थन है, जो स्पष्ट रूप से विनाशकारी प्रभाव डाल रहा है''। आपको बता दें कि, भारत ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का समर्थन नहीं किया है। नई दिल्ली ने लगातार सभी हितधारकों से बातचीत के जरिए मतभेदों को सुलझाने की अपील की है। हालांकि, इसने रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के सभी प्रस्तावों में वोटिंग में गैर-हाजिर रहने का विकल्प चुना।

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https://hindi.oneindia.com/news/international/how-us-arms-dealers-making-profit-from-china-fear-factor-and-ukraine-crisis-defence-industry-boost-673246.html
English summary
By putting heavy pressure on India not to buy Russian oil, America itself has increased oil imports from Russia on a large scale.
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