अफ़ग़ानिस्तान: तालिबान ने जिन पत्रकारों को बेहरमी से पीटा, जानिए क्या हुआ था उनके साथ
काबुल में महिलाओं के एक प्रदर्शन को कवर करने गए पत्रकारों का कहना है कि तालिबान ने उन्हें हिरासत में इतना पीटा कि वे बेहोश हो गए.
पिछले हफ़्ते अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने जिन दो पत्रकारों को बेरहमी से पीटा, उन्होंने बीबीसी से बातचीत में अपनी आपबीती सुनाई है.
ताक़ी दरयाबी और नीमत नक़दी ने बताया कि काबुल में महिलाओं के एक प्रदर्शन को कवर करने की वजह से उन्हें हिरासत में लिया गया, और उन्हें हिरासत में जमकर पीटा गया.
सोशल मीडिया पर 'एतिलातरोज़' अख़बार में काम करने वाले इन पत्रकारों की तस्वीरें वायरल हो गई थीं. उनके शरीर पर चोट के निशान थे.
इन पत्रकारों के मुताबिक़ इन्हें जेल ले जाया गया, जहाँ तालिबान के कई लोगों ने उनकी डंडों आदि से जमकर पिटाई की और कुछ घंटों बाद छोड़ दिया.
एक न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट में एक तालिबान नेता के हवाले से कहा कि किसी भी पत्रकार पर हुए हमले की जाँच की जाएगी. हालाँकि इन दो पत्रकारों की पिटाई को लेकर अभी तक क्या जाँच हुई, ये पता नहीं है.
आठ सितंबर को जारी एक प्रेस रिलीज़ में 'कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट' (सीपीजे) नामक संस्था ने तालिबान से पत्रकारों को हिरासत में लेने और उनके खिलाफ़ हिंसा बंद करने को कहा है.
सीपीजे ने समाचार रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि गुज़रे दो दिनों में तालिबान के खिलाफ़ प्रदर्शनों को कवर करते हुए कम से कम 14 पत्रकारों को हिरासत में लिया गया और बाद में उन्हें छोड़ दिया गया.
अफ़ग़ानिस्तान को अपने नियंत्रण में लेने के बाद तालिबान अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलने की आज़ादी और महिलाओं के अधिकारों पर लगातार सकारात्मक बातें करते रहे हैं, लेकिन उन पर आरोप है कि उनकी कथनी और करनी में फ़र्क है.
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आख़िर उस दिन हुआ क्या?
बीबीसी से बातचीत में दोनों पत्रकारों ने पूरी घटना और अफ़ग़ानिस्तान में पत्रकारिता के भविष्य पर बात की.
22 वर्षीय ताक़ी दरयाबी ने काबुल से बताया कि बुधवार को कुछ महिलाओं का प्रदर्शन था, जिसे उन्होंने और उनके साथी नीमत ने कवर करने का फ़ैसला किया.
ये प्रदर्शन सुबह 10 बजे शुरू होना था और ये दोनों पत्रकार ठीक समय पर प्रदर्शन वाली जगह पर पहुँच गए थे.
वहाँ पर प्रदर्शनकारी महिलाओं की तादाद कम थी, इसलिए उन्होंने क़रीब 20 मिनट और इंतज़ार किया.
ताक़ी ने बताया कि जब प्रदर्शन शुरू हुआ, तब उन्होंने तस्वीरें खींचने और वीडियो बनाने का काम शुरू कर दिया.
महिलाओं के हाथ में बैनर थे और उनके आसपास हथियारबंद तालिबान भी.
एक महिला के हाथ में काग़ज़ था, जिस पर लिखा था- "तालिबान को मान्यता मत दो. तालिबान महिलाओं के अधिकारों को नहीं मानते."
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जेल के भीतर क्या हुआ?
ताक़ी के मुताबिक़ इसी दौरान एक तालिबान लड़ाके ने उनका हाथ पकड़ा ताकि उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाया जा सके. हालाँकि प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने तालिबान को ऐसा करने से रोका.
ताक़ी बताते हैं, "पुलिस स्टेशन में एक आदमी मुझे एक कमरे में ले गया जहाँ कुछ और लोग आ गए और उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया. वहाँ आठ से 10 लोग थे और उनके हाथ में जो कुछ था, उससे वो मुझे पीट रहे थे."
"उन्होंने मुझे 10-12 मिनट तक पीटा. 10-12 मिनट बाद मैं बेहोश हो गया. वो मुझे एक दूसरे कमरे में ले गए. वहाँ कुछ अपराधी भी थे, जिनके अपराध के बारे में मुझे नहीं पता. उन्होंने मुझे उस कमरे में छोड़ दिया और दरवाज़े पर ताला लगाकर चले गए."
ताक़ी दरयाबी ने बताया, "मैं वहाँ क़रीब चार घंटे पड़ा रहा. जब मुझे वो लोग वहाँ छोड़कर गए, उसके पाँच मिनट बाद मैंने अपनी आँखें खोली, तो मैंने देखा कि मेरे साथ नीमत नक़दी भी वहीं था. हम अपने पाँव पर खड़े नहीं हो पा रहे थे. हमारे शरीर में खड़े होने की ताक़त तक नहीं थी."
नीमत नक़दी बताते हैं, "उन्होंने हम दोनों को बेरहमी से मारा. उनके हाथ में जो आया उससे मारा, जैसे पुलिस का डंडा, तार, आदि. हमें बहुत गहरी चोट लगी."
वो कहते हैं, "उन्होंने एक काग़ज़ पर हमारे अंगूठे की छाप ली (साफ़ आवाज़ नहीं.) लेकिन हमें इतनी चोट लगी थी और हम इतनी बेहोशी की हालत में थे कि उस काग़ज़ पर क्या लिखा था, हम ये पढ़ नहीं पाए."
ताक़ी दरयाबी कहते हैं कि डॉक्टर ने कहा है कि उन्हें कोई गहरी चोट नहीं लगी है और उन्हें दो हफ़्ते आराम की ज़रूरत है.
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पीटने वाले तालिबान
ताक़ी कहते हैं कि उन्हें लगा था कि तालिबान उनसे बात करना चाहते हैं और उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उन्हें पीटा जाएगा.
उन्हें पीटने वाले तालिबान के बारे में ताक़ी बताते हैं, "कुछ तो बहुत युवा थे और कुछ की उम्र मेरी जितनी ही होगी- 20-22 साल. उनमें से कुछ की उम्र ज़्यादा थी- 40 से 45 के बीच में. मैंने उनसे कहा भी कि हम पत्रकार हैं और हम उन लोगों में से नहीं हैं, जिन्होंने प्रदर्शन की शुरुआत की लेकिन उन्होंने हमारी नहीं सुनी."
ताक़ी कहते हैं कि वो पत्रकार बनकर लोगों की आवाज़ बनना चाहते थे, लेकिन वो अफ़गानिस्तान में पत्रकारिता के भविष्य को लेकर चिंतित हैं.
वो कहते हैं, "मुझे अपनी नौकरी जारी रखनी होगी. अपना काम जारी रखना होगा. मुझे (अपनी) चिंता है लेकिन मैं अपना काम करता रहूँगा. और मैं हमेशा पत्रकार रहूँगा. मुझे लगता है कि तालिबान पत्रकारों से बोलने की आज़ादी छीन लेंगे. मुझे अफ़ग़ानिस्तान में पत्रकारों की चिंता है. एक दिन शायद हम अपने काम पर न जा पाएँ."
ताक़ी कहते हैं, "मुझे तालिबान के बारे में बहुत कुछ पता नहीं है. मुझे उनके बारे में बहुत पढ़ने का मौक़ा नहीं मिला, लेकिन जितना मैंने पढ़ा है, मुझे लगता है कि अफ़ग़ानिस्तान ग़लत दिशा में जा रहा है. वहाँ लोगों को आज़ादी नहीं होगी, और जो मूल्य हमने बीते 20 सालों में हासिल किए, हम उसे खो देंगे. मुझे अफ़ग़ानिस्तान का भविष्य अच्छा नहीं दिखता."
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भविष्य को लेकर चिंता
उनका परिवार भी उनकी पिटाई को लेकर बेहद चिंतित है.
ताक़ी बताते हैं, "उन्होंने मुझसे कहा है कि मैं अब ये काम न करूँ. वो कहते हैं कि तालिबान मुझे एक बार फिर मारेंगे. उन्हें डर है कि अगली बार इससे ज़्यादा होगा. लेकिन मैंने उनसे कहा कि वो चिंता न करें. अगर मेरे साथ कुछ बुरा होता भी है, तब भी मैं अपना काम जारी रखूँगा."
ताक़ी कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों को चुप नहीं रहना चाहिए और उन्हें अफ़ग़ान पत्रकारों की मदद करनी चाहिए.
नीमत नक़दी कहते हैं, "अफ़ग़ानिस्तान में अभिव्यक्ति की आज़ादी का भविष्य मुश्किल है और इसे संकट का सामना करना होगा. चाहे इस देश में या बाहर, हमारी ये मांग है कि हम आम लोगों की आवाज़ बिना किसी रोकटोक के उठा सकें."
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