'हम भूखे रह सकते हैं, लेकिन रोते बच्चे रोटी मांगते हैं', तालिबान के सौ दिन पर छलका अफगानों का दर्द
अफगानिस्तान में तालिबान शासन के सौ दिन पूरे हो चुके हैं, लेकिन देश में मानवीय संकट और गहरा चुका है। यूनाइटेड नेशंस ने कहा है कि, तत्काल कार्रवाई नहीं की गई, तो एक करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी के शिकार हो सकते हैं।
काबुल, नवंबर 24: अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता में आए सौ दिन पूरे हो चुके हैं, लेकिन जब इन सौ दिनों को आप देखेंगे, तो अफगानिस्तान को आप बर्बादी के कब्र में बिलखकर रोते हुए देखेंगे। 35 साल के बाप को अपनी बेटी को बेचते देखेंगे, 60 साल के बूढ़े से 12 साल की बच्ची का निकाह होते देखेंगे और आप देखेंगे वो बेबस आंखे, जो अपने बच्चे को भूख से रोते हुए देख रहे हैं।
'बच्चे को भूख से रोते कैसे देखें'
"मैं और मेरे पति भूखे रह सकते हैं, लेकिन हम अपने बच्चों के बारे में चिंतित हैं क्योंकि वे रोते हैं, वो हमसे रोटी मांगते हैं, वो हमसे खाना मांगते हैं, वो हमसे पानी मांगते है"। दो बच्चों की मां और 35 साल की जरघुना ने तालिबान के कब्जे के बाद से अपने संघर्ष का वर्णन करते हुए रोना शुरू कर दिया। 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर तालिबान राज कायम हो चुका है और उसके बाद से अफगानिस्तान में सिर्फ बर्बादी ही बर्बादी फैली हुई है। ब्रिटिश अखबार 'इंडिपेंडेंट टूडे' से बात करते हुए महिला बताती है, कि "हम सिर्फ शाम को खाना खाते हैं। कभी-कभी हमारे पास वह भी नहीं होता है और हम बिना कुछ खाए सो जाते हैं। सुबह हम सिर्फ चाय पीते हैं"। पिछले 40 सालों से अफगानिस्तान युद्ध की आग में झुलसता आ रहा है और अमेरिका द्वारा अपने सैनिकों को वापस बुलाए जाने के बाद से अफगानिस्तान एक गंभीर मानवीय संकट का सामना कर रहा है।
बच्चों का कैसे भरें पेट?
जरघुना के आठ साल के बेटे पर भी अफगान संकट का काफी गंभीर असर पड़ रहा है। महिला बताती है कि, "हमारे पास कभी कभी रोटी होती है और कभी-कभी चावल, लेकिन मांस और फल कभी नहीं। हमारे पास पहले की तुलना में अब काफी कम खाना है और यह मुझे चिंतित करता है। कभी-कभी, जब हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं होता है, तो हम दोनों भूखे सो जाते हैं, लेकिन बेटे का पेट कैसे भरें, हमें कुछ समझ नहीं आता है।" स्थिति ये है कि, इस परिवार के पास खाना पकाने के लिए भी कुछ नहीं है, ऐसी स्थिति में कभी कभी कच्चा आटा खाकर पेट भरना पड़ता है। महिला जरघुना बताती है कि, "हमारी स्थिति ठीक नहीं है। कुछ दिन पहले, हमें एक बोरी आटा मिला और हमने उसे खाना शुरू कर दिया। सब कुछ महंगा हो गया है। हम अब आटा और तेल नहीं खरीद सकते क्योंकि उसकी काफी ज्यादा कीमत है"।
सिर्फ एक वक्त का खाना होता है नसीब
महिला जरघुना बताती है कि, स्थिति ऐसी है कि, हम दिन में सिर्फ एक वक्त के ही खाने का खर्च उठा सकते हैं, वो भी काफी मुश्किल से। खाने की कीमत काफी ज्यादा हो चुकी है और हम पैसा कैसे कमाएं, नहीं पता। आपको बता दें कि, पिछले एक महीने के दौरान यूनाइटेड नेशंस कई बार चेतावनी जारी करते हुए कह चुका है कि, अफगानिस्तान बहुत ही बड़े मानवीय संकट में फंस चुका है और लाखों लोगों के सामने भुखमरी का संकट पैदा हो गया है। यूनाइटेड नेशंस ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि, अगर फौरन अफगानिस्तान के लोगों को मदद मुहैया नहीं करवाई गई, तो हजारों लोगों की मौत भुख की वजह से हो सकती है।
यूनाइटेड नेशंस की गंभीर चेतावनी
यूनाइटेड नेशंस के विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के कार्यकारी निदेशक डेविड बेस्ली ने पिछले महीने ही तत्काल कदम उठाने की अपील करते हुए कहा कि, अफगानिस्तान में करीब 2 करोड़ 20 लाख लोग तीव्र संकट मे फंस चुके हैं, जिनमें से एक करोड़ 40 लाख लोगों को अगर तत्काल मदद मुहैया नहीं करवाई गई तो, इस आबादी के लोग भूख की वजह से जान गंवाना शुरू कर देंगे। दरअसल, अफगानिस्तान में खाद्यान्न संकट को जलवायु परिवर्तन ने भी बुरी तरह से प्रभावित किया है और तालिबान राज आने के बाद अफगानिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मदद मिलना भी बंद हो चुका है। वहीं, अमेरिका ने भी अफगानिस्तान का करीब 9 अरब डॉलर फ्रीज कर रखा है, लिहाजा अफगानिस्तान की स्थिति काफी ज्यादा विकराल हो चुकी है।
घर का सामान बेचते लोग
अफगानिस्तान के हजारों लोग अपना पेट भरने के लिए घरों का सामान बेच रहे हैं और संपत्ति को औने-पौने दाम पर बेच रहे हैं। इसके साथ ही तालिबान शासन ने जुलाई महीने के बाद देश के सरकारी कर्मचारियों को भी सैलरी नहीं दी, जिसका भी देश की समस्या पर काफी गंभीर असर पड़ा है। ग्रामीण आबादी खेत में अन्न उपजाकर पेट भरने की कोशिश भी कर रहा है, लेकिन देश की शहरी आबादी के पास वो विकल्प भी नहीं हैं। वहीं, स्वयंसेवक समूहों ने देश की विकट स्थिति को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से मदद की अपील की है।
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