मध्यप्रदेश में तीसरे मोर्चे का गणित किसकी बिगाड़ेगा कुंडली, 17 फीसदी का है वोट बैंक
नई दिल्ली। पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों में मध्यप्रदेश के चुनावों पर सबकी नजर टिकी हुई है। यहां इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है। केंद्र के स्तर पर भी दोनों ही दलों में कई बड़े नाम मध्यप्रदेश से आते हैं। बीजेपी जहां प्रदेश में सत्ता को बचाने की लड़ाई लड़ रही है तो वहीं कांग्रेस अपना वनवास खत्म करने की कोशिश में हैं। लेकिन इन दोनों के बीच प्रदेश में कुछ ऐसी छोटी पार्टियां हैं जो सत्ता बेशक ना हासिल कर पाए लेकिन उन्हें मिलने वाले वोट बीजेपी और कांग्रेस के कुछ उम्मीदवारों के समीकरण बिगाड़ सकते हैं। यही वजह थी कि कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष बनते ही बयान दिया था कि वोटों का बिखराव रोकने के लिए कांग्रेस मध्यप्रदेश में महागठबंधन बनाएगी। लेकिन पहले मायावती फिर अखिलेश और वाम दलों ने भी कांग्रेस से किनारा कर लिया। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को भी साथ लाने में कांग्रेस को कामयाबी नहीं मिली।
प्रदेश में हुए पिछले तीन चुनावों पर नजर डालें तो गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेस धड़े के ये अलग-अलग दल 17 फीसदी तक वोट लेते आए हैं। इन दलों के उम्मीदवार खुद बेशक ना चुनाव जीते लेकिन जिताऊ प्रत्याशियों का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं। प्रदेश की ऐसी सीटें जहां जीत का अंतर पांच हजार वोटों से कम रहा वहां इनकी मौजूदगी बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए परेशानी खड़ कर सकती है।
2003 के आंकड़े
कुल सीटें- 230
बीजेपी-
173
सीटें
(42.5%
वोट)
कांग्रेस-
38
सीटें
(31.6%
वोट)
सपा-
7
सीटें
(3.7%
वोट)
बीएसपी-
2
सीटें
(7.3%
वोट)
गोंगपा-
3
सीटें
(2.0%
वोट)
इस
तरह
से
दो
मुख्य
पार्टियों
के
अलावा
तीनों
पार्टियों
को
13
फीसदी
वोट
और
12
सीटें
मिली
थीं।
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भी
पढ़ें:-
यहां
पढ़िए,
मध्यप्रदेश
में
टिकट
बंटवारे
को
लेकर
कांग्रेस
का
क्या
है
फॉर्मूला
2008 के आंकड़े
कुल सीटें- 230
बीजेपी-
143
सीटें
(37.6%
वोट)
कांग्रेस-
71
सीटें
(32.4%
वोट)
भाजश-
5
सीटें
(4.7%
वोट)
बीएसपी
-
7
सीटें
(9.0%
वोट)
सपा-
1
सीट
(2.0
वोट)
इस
तरह
कथित
तीसरे
मोर्चे
को
2008
में
17
फीसदी
वोट
और
13
सीटें
मिली
थीं।
2008
के
चुनाव
में
बीजेपी
के
वोट
में
पांच
फीसदी
की
गिरावट
आई
थी।
भारतीय
जनशक्ति
पार्टी
(भाजश)
उमा
भारती
की
पार्टी
थी।
बाद
में
2013
के
चुनाव
से
पहले
उमा
भारती
की
बीजेपी
में
वापसी
हो
गई
और
भाजश
का
बीजेपी
में
विलय
हो
गया।
2013 के आंकड़े
कुल सीटें- 230
बीजेपी-
165
सीटें
(45.7%
वोट)
कांग्रेस-
58
सीटें
(37.1%
वोट)
बीएसपी-
4
सीटें
(6.4%
वोट)
सपा-
0
सीट
(1.2%
वोट)
गोंगपा-
0
सीट
(1.0%
वोट)
2013
में
बीएसपी
को
छोड़कर
किसी
भी
तीसरे
मोर्चे
की
पार्टी
को
सीट
जीतने
के
मामले
में
सफलता
हासिल
नहीं
हुई।
बीएसपी
को
चार
सीटें
मिली
थी
और
तीसरे
मोर्चे
को
कुल
साढ़े
आठ
फीसदी
वोट
ही
मिल
पाए
थे।
लेकिन
2013
में
'नोटा'
ने
भी
कई
सीटों
पर
असर
डाला
था।
1.9
फीसदी
मतदाता
ने
नोटा
का
बटन
दबाया
था।
2018 में हालात बदले हुए
इस बार के चुनाव में जिस तरह से बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर बताई जा रही है उसमें कथित तीसरा मोर्चा बसपा, सपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और दूसरे कई छोटे दल समीकरण बिगाड़ सकते हैं। इस बार प्रदेश की राजनीति में सामान्य और पिछड़े वर्ग का संगठन 'सपाक्स' और आदिवासियों का संगठन 'जयस' भी मैदान में है। ऐसे में अगर इन सबके बीच वोटों का बंटवारा होता है तो इसका नुकसान और नफा किसी होगा इसका अंदाजा लगा पाना राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी मुश्किल हो रहा है।
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