यूपी में सपा-बसपा के गठबंधन के बाद RLD सहित छोटे दल बनेंगे चुनौती
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में जिस तरह से सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ उसने कांग्रेस के लिए प्रदेश में मुश्किल खड़ी कर दी है। सपा-कांग्रेस से अलग होने के बाद कांग्रेस ने प्रदेश की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। यूपी में काग्रेस, सपा और बसपा के बीच महागठबंधन नहीं होने से भाजपा को बड़ी राहत मिली है, लेकिन इस बीच कांग्रेस में प्रदेश में अलग गठबंधन की संभावनाएं तलाशस रही है। कांग्रेस प्रदेश में आरएलडी के साथ गठबंधन करने की कोशिश में जुट गई है। इसके साथ ही वह प्रदेश में अन्य छोटे दलों को भी साथ लाने की कोशिश कर रही है।
सीटों पर फंसा पेंच
प्रदेश में सपा-बसपा के बीच गठबंधन के ऐलान के बाद से ही राजनीतिक सरगर्मी काफी बढ़ गई है। माना जा रहा है कि निषाद पार्टी और पीस पार्टी भी सपा के साथ जा सकते हैं, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर अभी कुछ पेंच फंसा है। यही नहीं सपा भी आरएलडी को भी साथ लाने की कोशिश कर रही है, लेकिन इन सभी दलों के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर पेंच फंसा है। गौर करने वाली बात है कि सपा-बसपा के बीच गठबंधन के बाद कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद ने प्रदेश की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था।
शिवपाल पर नजर
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल यादव ने भी सपा-बसपा के बीच गठबंधन के बाद कहा है कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए तैयार हैं। लेकिन देखने वाली बात यह है कि कांग्रेस शिवपाल यादव को कितना महत्व देती है, यह आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन माना जा रहा है कि प्रदेश के छोटे दल एक साथ मिलकर गठबंधन कर सकते हैं। जोकि आने वाले समय में कांग्रेस के साथ सपा-बसपा के गठबंधन के लिए भी चुनौती बन सकता है।
ये दल भी अहम
राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया अजीत चौधरी और उनके बेटे जयंत चौधरी के लिए प्रदेश में गठबंधन के दौर में अकेले मैदान में उतरना आसान नहीं लगता है। माना जा रहा है कि अगर सपा-बसपा या कांग्रेस के साथ उनकी बात नहीं बनी तो वह भाजपा के साथ जा सकते हैं। ऐसे में अगर यह गठबंधन होता है तो इससे कांग्रेस, सपा-बसपा के गठबंधन को नुकसान होगा, लेकिन इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। कुंडा के विधाययक रघुराज प्रताप सिंह भी अलग पार्टी बनाकर लोकसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं। ऐसे में एससी, एसटी एक्ट में संशोधन के बाद उन्हें भी चुनाव में इसका फायदा हो सकता है। इसके साथ ही एकलव्य पार्टी, वंचित समाज पार्टी, सहित अन्य छोटे दल भी गठबंधन में शामिल हो सकते हैं।
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