जानिए क्यों अखिलेश-मायावती ने देवंबद को महागठबंधन की पहली रैली के लिए चुना
सहारनपुर: लोकसभा चुनाव के मतदान के पहले चरण को 4 दिन बचे हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। इसी कड़ी में देवबंद में यूपी महागठबंधन की पहली सयुंक्त रैली रविवार को होनी है। देवबंद सहारनपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और यहां 11 अप्रैल को मतदान होना है। गौरतलब है कि महागठबंधन में सपा-बसपा और रालोद शामिल है। अखिलेश-मायावती आज अपनी पहली सयुंक्त रैली को संबोधित करेंगी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि उन्होंने देवबंद क्यों अपनी रैली के चुना। दरअसल यूपी में देवबंद इस्लामिक शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र है।
अखिलेश-माया की देवबंद में रैली की वजह
यूपी के देवबंद में महागठबंधन की पहली रैली जामिया तिब्बिया मेडिकल कॉलेज के पास आयोजित की गई है। इसमें अखिलेश-मायावती के अलावा राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी भी शामिल होंगे। आरएलडी महागठबंधन की तीसरी बड़ी पार्टी है। पश्चिम यूपी के सहारनपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच सीटें आती है। ये इलाका मुस्लिम बाहुल्य है। देवबंद के अलावा बेहट, सहारनपुर, सहारनपुर देहात और रामपुर मनिहारन विधानसभा सीटें आती हैं।
कांग्रेस के इमरान मसूद मजबूत उम्मीदवार
सपा-बसपा पर देवबंद को अपनी पहली संयुक्त रैली के लिए चुनने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। देवबंद का चयन सहारनपुर के स्थानीय फैक्टरों की वजह से किया गया है। कांग्रेस के सहारनपुर से उम्मीदवार इमरान मसूद को बीजेपी और बीएसपी-एसपी के संयुक्त उम्मीदवार हाजी फजलुर रहमान के खिलाफ एक कड़े दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। एसपी-बीएसपी महागठबंधन की संयुक्त रैली का मकसद अल्पसंख्यक वोटों को कांग्रेस के पाले में गिरने से रोकना है। साल 2014 में इमरान मसूद को सांसद राघव लखनपाल से 66 हजार वोटों से हार मिली थी। इस बार इस सीट पर त्रिकोणीय संर्घष होने की उम्मीद है। जिसमें वोटों के बंटवारे के पूरी संभावना है।
सहारनपुर में 40 फीसदी मुस्लिम वोटर
सहारनपुर लोकसभा सीट में करीब 40 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। जिसमें से कई मुस्लिम मतदाता साल 2017 में हुई हिंसा के बाद से बीजेपी के खिलाफ हैं। ये हिंसा यहां से बीजेपी सांसद राघव लखनपाल के जुलूस के दौरान हुई थी। 20 अप्रैल 2017 को अंबेडकर जंयती के दौरान बीजेपी सांसद ने जुलूस निकाला था, जिसे पुलिस की परमिशन नहीं मिली थी। इसी में दलितों और मुसलमानों के बीच हिंसा हुई थी। बीजेपी के खिलाफ मुस्लिमों में आक्रोश के अलावा इस समुदाय के भीतर वोटों का विभाजन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उदाहरण के तौर पर सहारनपुर में अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले गद्दास और कुरैशी को महागठबंधन के बीएसपी प्रत्याशी हाजी फजलुर रहमान का समर्थक बताया जा रहा है। मुस्लिमों के अलावा सहारनपुर सीट परजाटवों की संख्या भी बहुत है, जिन्हे बीएसपी का पारंपरिक वोटर माना जाता है। मजबूत वोट आधार और इसे बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करते हुए महागठबंधन की पार्टियों ने अपनी पहली रैली के लिए देवबंद को चुना हो सकता है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या विपक्ष की यह रणनीति सफल होगी? ये इस बात पर निर्भर करेगा कि ये पार्टियां किस हद तक अल्पसंख्यक वोटर्स को रिझाने के साथ-साथ जाट और गुर्जरों को अपने पाले में रख पाती है। जाट- गुर्जर इस इलाके में ओबीसी जातियों का बड़ा भाग है।
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