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बिहार में नीतीश कुमार के 'ग़ुस्से' की इतनी चर्चा क्यों है?

बिहार में जब से जदयू और भाजपा की नई एनडीए सरकार बनी है, तब से ऐसा कई बार हुआ है जब नीतीश कुमार ना सिर्फ़ सदन के बाहर, बल्कि सदन में भी ग़ुस्से से लाल-पीले नज़र आये.

By नीरज प्रियदर्शी
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नीतीश कुमार
Parwaz Khan/Hindustan Times via Getty Images
नीतीश कुमार

"हम बोल रहे हैं, आप बीच में बोलिएगा क्या? जब मैं खड़ा हूं तो आप बैठ जाइए."

ग़ुस्से से तमतमाया चेहरा बनाए उंगली दिखकार धमकाने के अंदाज में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बिहार विधानपरिषद में विपक्षी सदस्य को इस तरह फटकारने की खबर आजकल बिहार के सियासी गलियारे में चर्चा में है.

चर्चा इतनी ज्यादा होने लगी है कि विधानसभा में मंगलवार को राजद के महुआ विधायक डॉ मुकेश रोशन ब्लड प्रेशर मापने की मशीन और आला लेकर पहुंच गए. कहा, "ऐसा लगता है कि चाचा नीतीश जी का ब्लड प्रेशर सामान्य नहीं है, वे बात-बात पर नाराज हो जा रहे हैं और विपक्ष पर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं. इसलिए हम उनका ब्लड प्रेशर मापने के लिए मशीन लेकर आए हैं."

लेकिन यह चर्चा अब इसलिए गंभीर बनती जा रही है क्योंकि ऐसा पहली मर्तबा नहीं हुआ जब सदन के अंदर नीतीश कुमार गुस्से में दिखे हों.

हाल के दिनों में सदन के अंदर और बाहर कई ऐसे मौक़े आए हैं.

गुस्से की वज़ह क्या?

बीते सोमवार को बिहार विधानपरिषद की कार्यवाही के दौरान नीतीश कुमार इसलिए गुस्सा हुए क्योंकि जब सरकार के ग्रामीण कार्य मंत्री तारांकित प्रश्न का जवाब दे रहे थे तब राजद के एमएलसी सुबोध राय ने बीच में खड़े होकर अपना पूरक सवाल पूछने की कोशिश की.

इसी पर मुख्यमंत्री को गुस्सा आ गया, वे खड़े होकर एमएलसी को डांटने लगे. कहा, "यह नियम के विपरीत है, पूरक सवाल ऐसे नहीं पूछे जाते."

क्या सुबोध राय नियम के मुताब़िक सवाल पूछ रहे थे? बीबीसी से बातचीत में वे कहते हैं, "मैंने नियम के विपरीत सवाल नहीं किया था. दरअसल, यह उम्र का असर है. नीतीश जी अब 70 साल की उम्र पार कर गए हैं. इसलिए विरोधियों पर चिड़चिड़ापन स्वाभाविक है. जबकि उन्हें अपने सहयोगी दल भाजपा के लोग ऐसे ही एक-एक बार में पांच-पांच पूरक सवाल कर देते हैं तो मुख्यमंत्री चुप हो जाते हैं. यह उनकी राजनीतिक दुर्बलता का परिचायक है."

जहां तक सदन के कार्यवाही की नियमावली का सवाल है, चालू विधानसभा सत्र के दौरान कई ऐसे मौके आए हैं जब नए सदस्य सवाल करने की जल्दीबाजी में बीच में ही खड़े होकर टोका-टोकी करने लगे और खुद के बोलने के लिए अधिक समय की मांग करने लगे.

तब वरिष्ठ सदस्यों और स्पीकर ने उन्हें यह कहकर समझाया कि अभी आप नए हैं, आपको संसदीय कार्य प्रणाली सीखने की जरूरत है.

नीतीश कुमार
Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Images
नीतीश कुमार

क्या नए सदस्यों को सदन के नियम नहीं पता?

दरअसल, वर्तमान बिहार विधानसभा में नए चेहरों की संख्या अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा है. कुल 243 सदस्यों में 66 ऐसे हैं जो पहली बार विधायक बने हैं.

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक़, वर्तमान बिहार विधानसभा में 70 साल से अधिक आयु वाले केवल 11 विधायक ही हैं, जबकि 25 से 50 आयु वर्ग वाले विधायकों की संख्या 115 (48 फीसदी) है.

हालांकि सदन के अंदर 50 साल से अधिक आयु वर्ग वाले नेताओं की संख्या 126 (52 प्रतिशत) है, लेकिन 50 वर्ष की आयु पार कर चुके भी कई ऐसे नेता हैं जो पहली बार निर्वाचित हुए हैं.

क्या नए सदस्यों को नियम की जानकारी नहीं होती? वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "सदस्य नए हों या पुराने, सबके पास संसदीय कार्य पुस्तिका होती है और सबसे यही अपेक्षा की जाती है कि वे इस पुस्तिका का अध्ययन कर नियमावली जान जाएंगे. हो सकता है कि नए सदस्यों को उस नियमावली को आत्मसात करने में थोड़ा समय लगे. क्योंकि उनकी पारी अभी शुरू ही हुई है."

साथ ही मणिकांत ठाकुर यह भी कहते हैं, "लेकिन, सदन के अंदर नियम तोड़ने की यह कोई पहली घटना नहीं है. अनुभवी, वरिष्ठ और सरकार में शामिल सदस्यों ने भी कई बार नियमों के परे जाकर अपनी बात कही है. हमें तो इसको सकारात्मक तरीके से लेना चाहिए कि नए सदस्य भी सदन के अंदर अपनी बात पुरजोर तरीके से रख रहे हैं."

क्या यह दो पीढ़ियों का टकराव है?

सदन के अंदर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गुस्सा इसके पहले भी देखा जा चुका है जब नई सरकार के गठन के बाद विश्वास मत के लिए रखे गए विशेष एकदिवसीय सत्र के दौरान वे नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर आगबबूला हो गए थे. यहां तक कि अपने जगह से आगे बढ़-बढ़कर तेजस्वी के खिलाफ़ बोलने लगे,

"ये मेरे भाई समान दोस्त का बेटा है इसलिए हम सुनते रहते हैं, हम कुछ नहीं बोलते हैं, बर्दाश्‍त करते रहते हैं. इसके पिता को लोकदल में विधायक दल का नेता किसने बनाया था, इसको मालूम नहीं है. इसे डिप्‍टी सीएम किसने बनाया था? यह चार्जशीटेड है, इसपर अब कार्रवाई होगी. यह झूठ बोल रहा है."

ये भी पढ़ें: नीतीश कुमार के महादलित टोले में जाने से बदली लोगों की ज़िंदगी?

मणिकांत ठाकुर के मुताब़िक, नीतीश कुमार ने यह कहकर साबित कर दिया जिन लोगों को उन्होंने राजनीति सिखाई या फिर जिन्होंने उनसे राजनीति सीखी, अब वही सवाल करने लगे हैं. और यही लोकतंत्र की खूबसूरती है.

मणिकांत कहते हैं, "इस वक्त सदन के अंदर दो पीढ़ियों का टकराव देखा जा सकता है. पुरानी पीढ़ी के लोग कम हो गए है जबकि नई पीढ़ी की संख्या बढ़ी है. इसमें भी खास बात है कि नए विधायकों की संख्या विपक्ष की ओर से ज्यादा हैं. नई पीढ़ी का तरीका पुरानी पीढ़ी से अलग है. इसलिए इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि पुराने लोग उनसे असहज हो जाएं."

सीखने-सिखाने का रिवाज़ रहा है

एक तरफ़ नीतीश कुमार ये भी कहते हैं कि उन्होंने ही तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम बनाया, मगर दूसरी तरफ जब नेता प्रतिपक्ष के बतौर तेजस्वी उनसे सवाल करने लगते हैं तो वे भड़क जा रहे हैं.

जबकि, बिहार की राजनीति में कई ऐसी मिसालें हैं कि विरोधी होते हुए भी सीनियर नेताओं ने उभरते नेताओं का हौसला बढ़ाया है, उन्हें राजनीति की बारीकियों को सिखाया है.

वरिष्ठ पत्रकाल लव कुमार मिश्रा कहते हैं, "सदन के अंदर सुशील कुमार मोदी शिवानंद तिवारी के विरोधी थे. मगर, वे यह स्वीकार करने से तनिक भी नहीं हिचकिचाते कि शिवानंद तिवारी से उन्होंने राजनीति सीखी. सदन के अंदर एक दूसरे खिलाफ बोलने वाले ये नेता सदन के बाहर एक दूसरे काफी जुड़े हुए रहे."

लव एक उदाहरण जगन्नाथ मिश्र और लालू प्रसाद यादव का भी देते हैं. बताते हैं, "लालू प्रसाद के समर्थक कहते हैं कि जगन्नाथ मिश्र के कारण ही लालू चारा घोटाले में फंसे और जेल गए. मगर कभी ऐसा नहीं हुआ कि लालू प्रसाद ने जगन्नाथ मिश्र को लेकर कभी गुस्सा दिखाया हो. चारा घोटाले में इतना कुछ हो जाने के बावजूद भी कुछ साल पहले जब जगन्नाथ मिश्र की बेटी की शादी थी तब लालू प्रसाद ने पंडाल से लेकर आयोजन तक में महत्ती जिम्मेदारी निभाई थी."

नई सरकार बनने के बाद से ही दिख रहा है गुस्सा

जहां तक बात नीतीश कुमार के गुस्सा होने की है तो बीते साल के अंत में संपन्न बिहार विधानलसभा चुनाव के बाद जब से जदयू और भाजपा की नई एनडीए सरकार बनी है, तब से ऐसा कई बार हुआ है जब नीतीश न सिर्फ सदन के अंदर बल्कि सदन के बाहर भी बिफरते नज़र आए.

कुछ ही दिनों पहले मुख्यमंत्री पत्रकारों पर भड़क गए. जब उनसे राजधानी में हुए एक हाई प्रोफाइल मर्डर की जांच को लेकर सवाल किया जा रहा था. सवाल करने वाले पत्रकार को मुख्यमंत्री ने उंगली दिखाते हुए कहा था, "मुझे नहीं पता है! आप किस पार्टी से हैं! पत्रकारों को इस तरह का सवाल नहीं करना चाहिए."

अभी चल रहे बजट सत्र के दौरान ही राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा में नीतीश कुमार राजद के एमएलसी सुनील सिंह पर गुस्सा गए थे, और उन्हें स्थानीय लहज़े में डांटते हुए कहा था, "कानमा से सुनो ना, मुंहवा अवाज चलाओगे तो कइसे जानोगे. (कान से सुनो, मुंह से आवाज निकालोगे तो कैसे जानोगे?)"

लेकिन ऐसे नहीं थे नीतीश!

पिछले दो-तीन महीनों के दौरान सार्वजनिक तौर पर बार-बार गुस्से में आने के कारण नीतीश कुमार की जैसी छवि बनी है, उन्हें शुरुआत से जानने वाले लोग उसपर हैरत जताते हैं.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा जिन्होंने नीतीश कुमार की राजनीति को उनके सत्ता मिलने से पहले भी रिपोर्ट किया है, कहते हैं, "नीतीश कुमार की छवि हमेशा से एक ऐसे राजनेता की रही है जो शांत और सौम्य स्वभाव के हैं, संतुलित और तथ्यों के आधार पर जवाब देते हैं और जरूरी ना लगने वाली बातों पर प्रतिक्रिया देने से बचते हैं.

लव आगे कहते हैं, "शुरुआती दिनों में जब उन्हें पहली बार सत्ता हासिल हुई थी, तब विपक्षी क्या - क्या नहीं कहते थे? लालू यादव और राबड़ी देवी ने तो उन्हें सार्वजनिक मंचों से अपशब्द तक कहा, लेकिन जब जवाब देने की बारी आती तब वो बस मुस्कुरा देते थे."

लव के मुताबिक नीतीश कुमार के इसी व्यक्तिव और आचरण का असर था कि एक समय में उन्हें प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने की चर्चा चलने लगी थी. बिहार में रहते हुए भी केंद्र की सरकारों में उनकी भूमिका होती थी.

नीतीश कुमार
HINDUSTAN TIMES/GETTY IMAGES
नीतीश कुमार

लेकिन अब गुस्सा क्यों आने लगा है?

सवाल है कि प्राय: शांत और मुस्कुराते हुए दिखने वाले नीतीश कुमार अब गुस्सा क्यों होने लगे हैं?

कभी एक साथ राजनीति करने वाले मगर अब एक दूसरे के विपक्षी बने राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं,

"यह नीतीश की पुरानी कमजोरी है. जब भी भीतर से कमज़ोर महसूस करते हैं तो इसी तरह भभक जाते हैं. अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं. इधर तो उनके लिए जो राजनीतिक हालत बन गई है उसमें उनकी बेचारगी को समझा जा सकता है."

शिवानंद के मुताबिक "विधानसभा चुनाव में 43 सीटों पर सिमटने के बाद नीतीश कुमार कमजोर हो गए हैं. सरकार में संख्या बल होने के कारण भाजपा का दखल ज्यादा है. इसलिए नीतीश कुमार चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं. यही उनके चिड़चिड़े बनने की असली वजह है."

पत्रकार लव कुमार मिश्रा भी शिवानंद तिवारी की बातों से सहमति जताते हैं . लेकिन साथ ही वे यह भी कहते हैं, "सुशील कुमार मोदी के चले जाने से नीतीश कुमार सदन के अंदर अकेले पड़ गए हैं. अभी के उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी के साथ उनके वैसे संबंध नहीं हैं जैसे कि सुशील मोदी के साथ थे. इस वक्त जिन बातों को सदन के अंदर नीतीश कुमार खुद खड़े होकर बोल रहे हैं, सुशील मोदी होते तो ऐसा नहीं होता."

नीतीश कुमार
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नीतीश कुमार

क्या उम्र के फासले का असर है?

नीतीश कुमार के बार-बार गुस्सा हो जाने की एक वज़ह विपक्षी उनकी उम्र को भी बताते हैं. हाल ही में मुख्यमंत्री का 70वां जन्मदिन पार्टी ने "विकास दिवस" के रूप में मनाया था.

वैसे देखा जाए तो वर्तमान बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार की उम्र के अथवा समकालीन नेता अब बिहार की सक्रिय राजनीति में गिने चुने ही रह गए हैं.

विजय नारायण चौधरी, प्रेम कुमार, अमरेंद्र प्रताप सिंह, नंद किशोर यादव, राघवेंद्र प्रताप सिंह जैसे कुछ वरिष्ठ नेता ही हैं जो नीतीश की उम्र के हैं या उनसे थोड़े बड़े है और राजनीति में एक्टिव हैं. खास तौर पर 1974 के जेपी आंदोलन से निकली पीढी़ के नेता तो अब अकेले नीतीश कुमार ही बचे हैं जो आंदोलन की संघर्ष समिति का हिस्सा रहे.

अपने नेता की उम्र की फिक्र विपक्ष को ना करने की सलाह देते हुए जदयू के सीनियर लीडर और पार्टी प्रवक्ता नीरज कुमार सिंह कहते हैं, "बीपी मशीन और आला की उन्हें जरूरत है जिनकी (लालू यादव की) मेडिकल रिपोर्ट सीरियस बनी हुई है और वो जो खुद सजा काट रहे हैं. हमारे नेता ने काम करके दिखाया है. कोई उसके काम को नज़रअंदाज करे ये उल्टा सवाल करे तो उसे ऐसा ही जवाब मिलेगा."

नीरज कुमार सिंह के मुताब़िक विपक्ष के कुछ नेता जिन्हें संसदीय कार्य प्रणाली की समझ भी नहीं है, वे बार-बार अवैधानिक तरीके से मुख्यमंत्री को उकसाने और चिढ़ाने का काम कर रहे हैं.

क्या नीतीश कुमार को गुस्सा ढ़लती उम्र के कारण आने लगा है जैसा कि विपक्षी कह रह हैं?

एम्स, दिल्ली के मनोचिकित्सक डॉक्टर राजेश सागर बीबीसी से कहते हैं, "उम्र का गुस्से के साथ कोई संबंध नहीं है. आमतौर पर बढ़ती उम्र के साथ गुस्सा को स्वाभाविक तौर पर कम होने लगते है. इसे उम्र के साथ जोड़ना उचित नहीं है. गुस्से की और भी वजहें भी हो सकती हैं जिनका आकलन जरूरी है तभी कुछ कहा जा सकता है."

डॉ सागर अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात बताते हैं, " नए मेंटल हेल्थ एक्ट के मुताबिक किसी भी व्यक्ति की मानसिक स्थिति पर टिप्पणी करने का किसी को अधिकार नहीं है. अगर कोई किसी के गुस्से को या उसकी मानसिक स्थिति उसके उम्र से जोड़कर बता रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है."

BBC Hindi
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English summary
Why is there so much talk of Nitish Kumar's 'anger' in Bihar?
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