तालिबान के चलते भारत में क्यों है स्लीपर सेल के ऐक्टिव होने का खतरा ? जानिए
नई दिल्ली, 27 जुलाई: अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने आशंका जताई है कि उसके सैनिकों के अफगानिस्तान से निकलने के बाद तालिबान का वहां की सत्ता पर काबिज होने में वक्त नहीं लगेगा। तालिबान की यह बढ़त भारत के मन-माफिक भी नहीं है। वैसे यह भी सच है कि तालिबान के लिए अब दो दशक पहले वाला तालिबान रहना आसान नहीं है। क्योंकि, वहां कि 50 फीसदी आबादी 15 साल से छोटी उम्र की है, जो अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी में ही पली-बढ़ी है। इस जनसंख्या ने शिक्षा देखी है, महिलाओं को घरों से निकलते देखा है और मोबाइल-इंटरनेट की दुनिया इनमें रच-बस चुकी है। लेकिन, फिर भी सुरक्षा एक्सपर्ट भारत को तालिबान की बढ़त को लेकर आगाह कर रहे हैं, क्योंकि यह स्लीपर सेल का मनोबल बढ़ा सकता है।
'तालिबान का उभरना बहुत बड़ी चुनौती है'
अफगानिस्तान में तालिबान का फिर से उभरना भारत के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, इसपर रेडिफ डॉट कॉम ने लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी (रिटायर्ड) से विस्तार से बात की है। उन्होंने भारत के नजरिए से जो कुछ कहा है, वह बहुत ही संवेदनशील है। उनका कहना है कि भारत ने तालिबान के साथ बातचीत की जो कोशिश की है, वह सही दिशा में उठाया गया कदम है। क्योंकि, 'यह बहुत बड़ी चुनौती है।' तालिबान को यूनाइटेड नेशन ने हमास की तरह का आतंकी संगठन घोषित कर रखा है। हालांकि, उन्हें अभी भी उम्मीद है कि तालिबान अब एक राजनीतिक संगठन के रूप में तब्दील हो जाएगा। 11 सितंबर, 2001 की घटना के बाद अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान में कदम रखने से पहले वहां तालिबालन की ही हुकूमत थी।
'भारत में करीब 32 लाख पठान हैं'
लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी (रिटायर्ड) की अफगानिस्तान और तालिबान के मसलों पर इसलिए बहुत ज्यादा पकड़ है, क्योंकि वे 14वीं कोर के चीफ ऑफ स्टाफ रह चुके हैं। यह वही कोर है, जिसके पास चीन, पाकिस्तान और सियाचिन ग्लेशियर तक की सीमा को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी है। वो कहते हैं कि तालिबान में सुन्नी मुसलमान हैं, लेकिन उससे पहले वे पठान हैं। पिछले 250 वर्षों से अफगानिस्तान पर उन्हीं का राज रहा है। वे पाकिस्तान में भी पश्तूनिस्तान की मांग करते हैं। अफगानिस्तान में इनकी आबादी 42 फीसदी है। दुनिया भर में 6.3 करोड़ पठान हैं, जिनमें से 1.3 करोड़ से 1.5 करोड़ के बीच अफगानिस्तान में हैं। भारत में इनकी जनसंख्या करीब 32 लाख है।
तालिबान पर पाकिस्तान का प्रभाव
भारत के नजरिए से जहां तक अफगानिस्तान का सवाल है तो वहां जबतक शांति रहेगी, हमारी नियंत्रण रेखा (एलओसी-जो भारत और पाकिस्तान को विभाजित करता है) शांत रहेगी। अफगानिस्तान की सबसे लंबी सीमा पाकिस्तान से ही लगी हुई है। जबकि, नियंत्रण रेखा के उसपार पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर (पीओके) है, जहां चीन मौजूद है और वह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) बना रहा है। प्रोजेक्ट में काम कर रहे चीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए पाकिस्तानी सेना का एक डिविजन तैनात कर रखा है, जिसमें 20,000 से ज्यादा जवान हैं। लेकिन पाकिस्तान, अफगानिस्तान की वर्तमान परिस्थितियों में भी सीधे और परोक्ष तौर पर शामिल है और भारत के लिए यही बड़ी चुनौती साबित होने वाली है।
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'भारत में स्लीपर सेल का मनोबल बढ़ेगा।'
लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी ने इन्हीं हालातों के मद्देनजर कहा है, 'हमारे इलाके की जियोपॉलिटिक्स चिंताजनक है। हमें सतर्क रहना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि हमारी सीमाएं पूरी तरह से सील हों। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पीओके से कोई भी घसपैठ नहीं हो। तालिबान के फिर से उभरने से भारत में स्लीपर सेल का मनोबल बढ़ेगा।'