भारत की ताइवान के साथ ट्रेड डील को लेकर चीन क्यों नाराज़?
भारत का चीन के साथ लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर पिछले कुछ महीनों से गंभीर विवाद बना हुआ है.
चीन के अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ रिश्तों में पैदा हो रही तनातनी ने कुछ मुल्कों को एक साथ खड़ा कर दिया है. भारत और ताइवान भी ऐसे ही दो मुल्क हैं.
भारत का चीन के साथ लद्दाख में लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर पिछले कुछ महीनों से गंभीर विवाद बना हुआ है.
यहां दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं और राजनयिक और सैन्य स्तर पर बातचीत के बावजूद इस समस्या का अब तक कोई हल नहीं निकल पाया है.
भारत में कांग्रेस के राहुल गांधी समेत विपक्षी नेताओं का आरोप है कि चीन ने भारतीय सीमा का उल्लंघन किया है और उसकी सेनाएं लद्दाख के भारतीय हिस्से में काफी अंदर तक घुस आई हैं.
विपक्षी नेता केंद्र की मोदी सरकार पर चीनी फौजों को बाहर खदेड़ने में नाकाम रहने और देश के लोगों से सच्चाई छिपाने जैसे कड़े आरोप लगा रहे हैं.
भारत ने चीन के विवाद के पहले वाली स्थिति कायम करने की मांग को मानने से इनकार करने और लगातार आक्रामक रवैये को देखते हुए पिछले कुछ महीनों में कई जवाबी कदम उठाए हैं.
भारत सरकार ने लद्दाख में फ़ौजों की ज़बरदस्त तैनाती, लंबे वक्त तक दोनों देशों की सेनाओं के आमने-सामने बने रहने के लिहाज से अपनी रसद और दूसरी तैयारियों को पुख्ता करने, सीमाई इलाकों में सड़क और पुलों के ताबड़तोड़ निर्माण जैसे सैन्य स्तर के कदम उठाए हैं.
दूसरी तरफ भारत कूटनीतिक और व्यापार के स्तर पर भी चीन को झटका देने की कोशिश कर रहा है. इस मुहिम के तहत बड़े पैमाने पर चाइनीज़ ऐप्स को देश में प्रतिबंधित कर दिया गया है. इंफ्रा और दूसरे टेंडरों में चीनी कंपनियों को हतोत्साहित किया जा रहा है. चीन की टेक और टेलीकॉम गीयर बनाने वाली कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में काम करना अब पहले जैसा आसान नहीं रह गया है.
चीन को टक्कर देने के लिए भारत का कदम
चीन को टक्कर देने के लिए कूटनीतिक स्तर पर भारत ने यूएस, ऑस्ट्रेलिया, जापान के साथ साझेदारी बढ़ाई है.
इसके अलावा एक महत्वपूर्ण संकेत भारत और ताइवान के संबंधों का और मज़बूत होना है.
ताइवान के साथ भी चीन के रिश्ते तनावपूर्ण दौर में हैं. ताइवान को चीन एक अलग देश के तौर पर नहीं देखता है. दूसरी ओर, ताइवान खुद को एक अलग सार्वभौम देश मानता है.
चीन के साथ इस टकराव ने ताइवान और भारत को करीब ला दिया है. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक़, नरेंद्र मोदी सरकार ताइवान के साथ एक ट्रेड डील करने का मन बन रही है.
लंबे वक्त तक चीन की नाराज़गी से बचने के लिए भारत ने ताइवान के साथ किसी तरह का व्यापार समझौता करने से परहेज़ किया है. ताइवान के साथ ट्रेड डील करने से भारत इस वजह से बचता रहा है क्योंकि ऐसे किसी भी समझौते के वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइज़ेशन (डब्ल्यूटीओ) में दर्ज होने का मतलब चीन की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आना है.
रिसर्च एंड इंफ़ोर्मेशन सिस्टम फ़ॉर डिवेलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) के प्रोफ़ेसर डॉ. प्रबीर डे कहते हैं, "ट्रेड एग्रीमेंट में कोई बुराई नहीं है. ऐसे समझौते दोनों देशों के लिए फायदेमंद होते हैं. ताइवान के दुनिया के कई देशों के साथ ट्रेड एग्रीमेंट हैं और भारत के साथ भी ऐसा एग्रीमेंट हो सकता है."
हालांकि, वे कहते हैं कि दोनों देशों के बीच जनरल ट्रेड एग्रीमेंट किया जा सकता है. लेकिन, ताइवान किसी भी देश के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफ़टीए) नहीं कर सकता है.
ताइवान के साथ किस तरह का ट्रेड समझौता हो सकता है?
भले ही ताइवान डब्ल्यूटीओ का मेंबर बन चुका है, लेकिन कोई भी देश उसके साथ एफ़टीए नहीं कर सकता है.
डॉ. डे कहते हैं कि इसकी काट निकालने के लिए ताइवान ने दुनिया के देशों के साथ इकनॉमिक एंड ट्रेड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (ईटीसीए) करना शुरू कर दिया है. इस ईटीसीए के तहत हर तरह के सेक्टर में दूसरे देशों के साथ कारोबार किया जा सकता है.
डॉ. डे कहते हैं कि भारत में भी कोई यह नहीं कह रहा है कि ताइवान के साथ किस तरह का ट्रेड समझौता होने वाला है. वे कहते हैं, "क्योंकि निश्चित तौर पर यह एफ़टीए नहीं होगा."
हालांकि, लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर तनाव और बिगड़ते भारत-चीन संबंधों के बीच एक बड़े तबके को यह लगता है कि ताइवान के साथ रिश्तों को मज़बूत करने का इससे अच्छा वक्त नहीं हो सकता है.
हालांकि, दोनों ही मुल्कों के बीच ट्रेड डील को लेकर होने वाली बातचीत की किसी भी भारतीय एजेंसी ने अब तक पुष्टि नहीं की है. लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय से इस मामले पर ज़रूर टिप्पणी आई है.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा है, "वन-चाइना सिद्धांत पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में आम सहमति है जिसमें भारत भी शामिल है. यही सिद्धांत चीन के किसी भी दूसरे देश के साथ संबंध विकसित करने के लिए राजनीतिक बुनियाद का भी काम करता है."
हाल में ही भारत में मौजूद चीनी दूतावास ने भारतीय मीडिया को सलाह दी थी कि वह ताइवान के नेशनल डे की बधाई न दे. इस पर भारत के विदेश मंत्रालय की कड़ी प्रतिक्रिया आई थी जिसमें कहा गया था कि भारतीय मीडिया कोई भी उचित ख़बर छापने के लिए स्वतंत्र है.
ताइवान की भारत से बढ़ती नज़दीकी की वजह
शिव नादर यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस एंड गवर्नेंस स्टडीज में एसोसिएट प्रोफ़ेसर जबिन थॉमस जैकब कहते हैं, "भारत और ताइवान दोनों ही मुल्क चीन के साथ मौजूद तनाव को एक मौक़े के तौर पर देख रहे हैं."
जैकब कहते हैं, "अभी हाल में ताइवान के नेशनल डे के मौके पर भी ऐसा देखा गया है."
हालांकि, व्यापार समझौते को लेकर भारत और ताइवान के बीच बातचीत करने का फैसला हो गया है नहीं, इस पर तस्वीर अभी साफ नहीं हो पाई है.
व्यापार समझौता दोनों देशों के लिए फायदेमंद साबित होगा. टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टरों में ज़्यादा निवेश हासिल करने की भारत की कोशिशों को ताइवान से मदद मिल सकती है.
साथ ही इससे चीनी आयात पर भारत की निर्भरता भी कम होगी. हाल ही में भारत सरकार ने ताइवान की फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी ग्रुप, विस्ट्रॉन और पेगाट्रॉन के निवेश भी को मंजूरी दी है. ये तीनों कंपनियां भारत में क़रीब 6,500 करोड़ रुपये का निवेश करना चाहती हैं.
भारत अगले पांच साल में स्मार्टफोन प्रोडक्शन के लिए 10.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश हासिल करना चाहता है.
ताइवान भी भारत के साथ अपने रिश्तों को मज़बूत करना चाहता है ताकि चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम की जा सके.
डॉ. प्रबीर डे कहते हैं, "चाइना में जितने अमीर लोग और बड़े टेक्नोलॉजी कारोबारी हैं वे सब ताइवानी हैं. ताइवान में बड़ी पूंजी और टेक्नोलॉजी की दिग्गज कंपनियां हैं. ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन भारत में बड़ा कारोबार करती है."
भारत ने कुछ महीने पहले पड़ोसी देशों से सीधे एफ़डीआई आने पर रोक लगा दी. इसका सीधा टारगेट चीन था.
डे कहते हैं कि इस तरह से ताइवान को फायदा मिल रहा है. वे कहते हैं, "हांगकांग की कंपनियां भी भारत में निवेश कर रही हैं."
भारत और ताइवान ने 2018 में एक नए द्विपक्षीय निवेश समझौते पर दस्तखत किए थे. वाणिज्य विभाग के मुताबिक़, 2019 में दोनों देशों के बीच कारोबार 18 फीसदी बढ़कर 7.2 अरब डॉलर पर पहुंच गया था.