विक्रम गोखले ने क्यों कहा था कि मराठी सीरियल देखना बंद कर दो?
हिंदी और मराठी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता विक्रम गोखले का निधन हो गया है. बीते कुछ दिनों से वे बीमार थे और अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.
नाटक निर्देशक विजया मेहता के अभिनय स्कूल से निकले नाना पाटेकर, अशोक सर्राफ़, नीना कुलकर्णी और प्रतिमा कुलकर्णी जैसे कई कलाकारों की सूची में विक्रम गोखले का नाम अवश्य ही लिया जाना चाहिए.
पुणे की एक बहुत ही समृद्ध रंगमंच परंपरा है और इस सूची में बाल गंधर्व, छोटा गंधर्व, वसंत शिंदे से लेकर डॉ. जब्बार पटेल, मोहन आगाशे, मोहन गोखले और सतीश आलेकर आदि का उल्लेख किया जा सकता है. अरस्तू ने कहा था कि एक सच्चे कलाकार को एक दार्शनिक होना चाहिए. विक्रम गोखले का स्पष्ट मत था कि किसी भी कवि को गहन और व्यापक रूप में पढ़ना चाहिए.
मनोविज्ञान की बात आने पर भी वे कहते थे कि उन्होंने फ्रायड से लेकर साधना कामत तक विभिन्न विचारकों के चार हज़ार से ज़्यादा पन्ने पढ़े हैं.
अपने कॉलेज में मनोविज्ञान को एक विषय के तौर पर पढ़ने वाले गोखले ने बहुत एक्सरसाइज़ करके अच्छी बॉडी भी बनायी थी. मास्टर विठ्ठल, चंद्रकांत मांडरे, विवेक और रवींद्र महाजनी उन कुछ अभिनेताओं में से हैं जो मराठी रंगमंच और सिनेमा में सुंदर चेहरे माने जाते थे.
विक्रम ने हाल ही में पुरस्कृत फिल्म 'गोदावरी' में भी एक बुज़ुर्ग दादा के रूप में अद्भुत काम किया.
अभिनय की पारिवारिक विरासत
गोखले की परनानी दुर्गाबाई कामत भारतीय सिनेमा की पहली अभिनेत्री थीं और नानी कमलाबाई पहली बाल अभिनेत्री थीं. दादासाहेब फाल्के द्वारा निर्मित फिल्म 'मोहिनी भस्मासुर' में दुर्गाबाई ने पार्वती की भूमिका निभाई और कमलाबाई ने मोहिनी की भूमिका निभाई.
इन नाटकों में भी दुर्गाबाई अभिनय करती थीं. कमलाबाई ने नाटकों में पुरुष भूमिकाएँ भी निभाईं. विक्रम के पिता, चंद्रकांत गोखले ने अपने गुरु श्रीधर जोगलेकर और परशुरामपंत शालिग्राम की रमेश नाटक कंपनी में दस रुपये के वेतन पर अपना करियर शुरू किया. उसके बाद उन्होंने दीनानाथ मंगेशकर की बलवंत संगीत मंडली की प्रस्तुति 'भावबंधन' में भी नायक की भूमिका निभाई.
चंद्रकांत गोखले ने फिल्मों में अपने करियर की शुरुआत नवयुग फ़िल्म कंपनी की फिल्म 'पुंडलिक' से 40 रुपये के वेतन से की थी. वह हमेशा एक ग़रीब और विनम्र बूढ़े पिता के रोल में नजर आते हैं.
हालांकि विक्रम के पास अपने परिवार में कला की विरासत थी, लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह अपने कॉलेज जीवन के दौरान अभिनय के क्षेत्र में प्रवेश करेंगे.
बहरहाल, उन्होंने अपने अभिनय करियर की शुरुआत बाल कोल्हाटकर के हिट नाटक 'वाह ही तो दुर्वांची जुडी' से की. इसकी मंचीय प्रस्तुति एक हद ऊटपटांग, भावुक, पारिवारिक ड्रामा और बनावटी अभिनय से भरपूर थी.
अभिनय का कोई औपचारिक प्रशिक्षण न होने के बावजूद, विक्रम ने सरल एवं सहजता से भूमिका निभाई. इस नाटक के एक प्रयोग को देखकर जाने-माने अभिनेता डॉ. श्रीराम लागू ने कहा कि इस पूरे नाटक में केवल विक्रम ही अभिनय नहीं कर रहा है यानी केवल विक्रम का अभिनय ही उनके लिए यथार्थवादी था.
विक्रम कहते थे, "मैंने किसी थिएटर कैंप में प्रशिक्षण नहीं लिया है. लेकिन मैंने विजया मेहता के नाटक 'जासवंडीये' में अभिनय करते हुए अभिनय के बारे में बहुत कुछ सीखा."
1977 में 'स्वामी' के माधवराव यानी विक्रम को जयवंत दलवी के नाटक 'बैरिस्टर' में अपनी आवाज़ मिली. विक्रम ने अपनी वाणी, हाव-भाव और बातों से पागलपन चलाने वाले इस बैरिस्टर के भावनात्मक जीवन को प्रस्तुत किया. उन्होंने इस भूमिका को सब कुछ के साथ निभाया.
'महासागर' के साथ-साथ 'कमला', 'जावई माझा भला', 'दूसरा मैच', 'सिग्नेट मिलानाचा', 'अनजाने सब कुछ हो गया', 'इन द फ्रंट हाउस', 'पुत्र मानवाचा', 'हिडन रुस्तम', और 'मकरंद राजाध्यक्ष' ऐसे लोकप्रिय नाटक हैं जिनमें विक्रम गोखले ने अभिनय किया है. नाटककार अरविंद औंधे हमेशा 'मकरंद' में विक्रम के काम की प्रशंसा करते हैं.
विविध भूमिकाओं के लिए न्याय
हाल के दिनों में तबीयत ठीक न होने पर भी वे 'कि दिल अभी भरा नहीं' नाटक किया करते थे. कई साल पहले टेलीविजन सीरियल 'द्विधाता' में विक्रम की दोहरी भूमिका चर्चा का विषय बनी थी. वे उन भूमिकाओं में मनोवैज्ञानिक जटिलताओं को प्रस्तुत करने में बेहद सफल रहे.
विक्रम ने कविता चौधरी द्वारा लिखित, निर्देशित और अभिनीत उत्कृष्ट टीवी धारावाहिक 'उड़ान' में आईपीएस नायिका के पिता की भूमिका निभाई. उन्होंने धारावाहिक 'अग्निहोत्र' में मोरेश्वर अग्निहोत्री की शीर्षक भूमिका निभाई.
विक्रम गोखले मराठी फिल्मों के नायक के रूप में ज़्यादा सफल नहीं रहे, लेकिन गदिमा और वरहदी आ वजंत्री में विक्रम नायक थे. लेकिन बाद में, जोतिबाचा नवास, भिंगरी, लपंडाव और महेरची सादी जैसी मुख्यधारा की फिल्मों से उन्होंने अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई.
'वासुदेव बलवंत फड़के' भी उनकी एक अहम फिल्म है. विक्रम ने चिकित्सा क्षेत्र पर एक बेहतरीन फिल्म 'अघात' का निर्देशन भी किया था. विक्रम और मुक्ता बर्वे दोनों का प्रदर्शन एक दूसरे से बेहतर था.
विक्रम गोखले बॉलीवुड की कई फ़िल्मों स्वर्ग नरक, ये है जिंदगी, तुम बिन, अकेला, अग्निपथ, खुदा गवाह से लेकर हम दिल दे चुके सनम जैसी फ़िल्मों में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे.
मराठी में 'नट सम्राट' फिल्म में गणपतराव बेलवलकर के दोस्त रामभाऊ अभ्यंकर की भूमिका निभाते हुए, रामभाऊ गुस्से में अपने दोस्त को थप्पड़ मारते हैं और कहते हैं 'तुम एक नट के रूप में भिखारी हो, लेकिन तुम भी एक नीच आदमी हो'. इस दृश्य में एक अभिनेता के तौर पर विक्रम की ताक़त उभर कर सामने आती है.
विवादास्पद सामाजिक और राजनीतिक भूमिका
प्रसिद्ध प्राणी विज्ञानी डेसमंड मॉरिस की कई किताबें पढ़ने के बाद विक्रम को अभिनय की गहरी समझ मिली. उन्हें पता चला कि चाहे जानवर हो या इंसान, वह मूल रूप से एक महान अभिनेता है. उनकी हर शारीरिक हरकत अभिनय कर रही है, वह जानवरों और इंसानों की हरकतों से इसका अवलोकन करने के आदी थे. वे निर्देशक के कहे मुताबिक एक जगह ठहरना, मुड़ना, दूसरी जगह जाना जैसे दृश्यों की अहमियत को समझते हुए अभिनय करते थे.
मंच या स्क्रीन पर उनकी उपस्थिति मात्र से उस रोल का वजन बढ़ जाता था और उनकी राजनीतिक और सामाजिक भूमिकाएं विवादास्पद रही हैं.
विक्रम ने अभिनेत्री कंगना रनौत के गैरज़िम्मेदाराना बयान का समर्थन किया कि भारत को 1947 में आजादी नहीं मिली और सच्ची आजादी 2014 में मिली. कंगना रनौत ने यह बयान नरेंद्र मोदी के 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बनने के संदर्भ में दिया था.
विक्रम ने यह मत व्यक्त किया कि महान नेताओं ने आजादी हासिल करने की कोशिश करने वाले योद्धाओं को बचाने की कोशिश नहीं की. हो सकता है कि शहीद भगत सिंह को फाँसी से बचाने के लिए गांधी-नेहरू ने क्या-क्या प्रयास किए, यह विक्रम को नहीं पता होगा.
लेकिन हक़ीकत यह भी है कि स्वतंत्रता आंदोलन में ऐतिहासिक भूमिका निभाने वाले गांधी-नेहरू और अन्य नेताओं का हिंदुत्व समर्थक विक्रम गोखले ने कभी भी गर्व के साथ उल्लेख नहीं किया.
इसके विपरीत, वह उन नेताओं का महिमामंडन करते रहे, जिन्होंने अंग्रेजों से हाथ मिलाया या अप्रत्यक्ष रूप से उनका समर्थन किया या जिनका स्वतंत्रता आंदोलन से कोई संबंध नहीं था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 70 साल में कुछ नहीं हुआ वाले बयान का समर्थन करते विक्रम की बातों से लग रहा था कि उन्हें इतिहास की जानकारी नहीं है कि कैसे नेहरू ने इस देश में आधुनिक विज्ञान और उद्योग की नींव रखी. 'यह देश कभी हरा नहीं होगा, भगवा ही रहेगा' कहकर विक्रम हमेशा हिन्दू राष्ट्र की वकालत करते दिखे.
एक ओर, वे कहते थे कि बाबासाहेब अम्बेडकर एक महान व्यक्तित्व थे और दूसरी ओर वे इस देश के संविधान की वकालत करने के बजाय हिंदू राष्ट्र की जय-जयकार करते थे. विक्रम गोखले ने भी गुस्से में कहा था, 'गोली मार दो उन्हें जो कहते हैं कि इस देश के टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहिए.' लेकिन उन्होंने कभी भी इस देश के संविधान के ख़िलाफ़ जाकर कट्टरता की खेती करने वालों के लिए आक्रामक भाषा का इस्तेमाल नहीं किया.
लेकिन उन्होंने लेखिका नयनतारा सहगल की अभिव्यक्ति की आज़ादी से वंचित किए जाने को ग़लत ठहराया, उन्होंने यह भी माना कि नोटबंदी एक जल्दबाज़ी में लिया गया फ़ैसला था और बुलेट ट्रेन हमारी प्रारंभिक ज़रूरत नहीं है. इतना ही नहीं उन्होंने गौरक्षकों के हमलों का भी समर्थन नहीं किया था. उन्होंने यह भी कहा था कि राज ठाकरे का भाषण सुनना मनोरंजन जैसा है. इसलिए उन्हें एक ही नज़र से देखना उचित नहीं होगा.
उन्होंने यह भी कहा था कि सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर जो लोग सवाल पूछ रहे हैं कि भारत ने कितने लोगों को मारा, उन्हें देशद्रोही कहना ग़लत है. वे इन हमलों की राजनीतिक पूंजी बनाना पसंद नहीं करते थे. अक्षय कुमार ने मोदी का साक्षात्कार लिया और इसके अराजनीतिक होने का दावा किया गया. तब विक्रम गोखले ने कहा था कि अगर यह अराजनीतिक था, तो इसे बार-बार क्यों दिखाया गया.
उन्होंने यह भी पूछा कि शरद पवार ने बारामती की तरह महाराष्ट्र का विकास क्यों नहीं किया. विक्रम ने कहा था कि वह अपने पिता की इस बात से कभी सहमत नहीं थे कि मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देना चाहिए.
लेकिन जब उनसे पूछा गया कि दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश जैसे विचारकों की हत्या के बारे में आपकी क्या राय है, तो उन्होंने जवाब के बदले सवाल पूछा, "क्या इस बात के सबूत हैं कि ऐसी हत्याएं अतीत में कभी नहीं हुईं और सत्ता में बैठे लोगों ने की हैं?" इस जवाब से विक्रम गोखले ने दिखा दिया था कि वे किस पक्ष में खड़े हैं.
'मराठी सीरियल देखना बंद करें'
विक्रम गोखले ने मराठी फिल्म 'वज़ीर' में काम किया था, लेकिन उन्होंने साफ़ कहा कि फिल्म बेकार है. उन्होंने यह कहने का साहस भी दिखाया कि काशीनाथ घाणेकर का अभिनय, अभिनय नहीं था. जब उन्होंने कहा कि घटिया सीरियल देखना बंद कर दो, तो इंडस्ट्री के दूसरे लोगों ने उन्हें याद दिलाया कि आपने भी पैसे के लिए कुछ रोल किए हैं.
विक्रम गोखले सूक्ष्म या सरल अभिनय करने वाले उच्च कोटि के अभिनेता थे. लेकिन उनके गुणों का उतना उपयोग नहीं किया गया जितना नाटक और फिल्म में किया जाना चाहिए था. डॉ. लागू को हिंदी फिल्मों में भी बहुत कम भूमिकाएँ मिलीं.
विक्रम गोखले ने हिंदी सिनेमा में हाथ आजमाया है, लेकिन उनके विचारों की दुनिया पारंपरिक और पुणे रही. विजय तेंदुलकर को पसंद करने के बावजूद उनका कट्टरपन कम नहीं हुआ.
मराठी नाटक और फिल्म उद्योग में, आर्यन फिल्म कंपनी के नानासाहेब सरपोतदार, भालजी पेंढारकर या मास्टर दीनानाथ मंगेशकर घराने की बदौलत बाबासाहेब पुरंदरे द्वारा सुनाए गए हिंदुत्व, सावरकरी विचारों और इतिहास का बड़ा प्रभाव दिखता है. यह सिलसिला नीलू फुले, डॉ. श्रीराम लागू, सदाशिव अमरापुरकर, अमोल पालेकर या कहें दिलीप प्रभावलकर तक दिखता है.
उदार विचारों का प्रभाव और गांधी-नेहरू-अंबेडकर या यहां तक कि लोहिया का प्रभाव पूरी तरह से अलग है. गांधीवादी और गांधी विरोधी दोनों गुट आज कला जगत में मुखर तौर पर दिखते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह कैसा दिखता है. लेकिन गोडसेवादी विचार भयानक है और किसी भी तथाकथित सभ्य कलाकार से परोक्ष रूप से भी इसका समर्थन करने की उम्मीद नहीं की जाती है.
मुझे निश्चित रूप से लगता है कि अगर विक्रम गोखले अपने सनातनी विचारों के रास्ते से बाहर आ गए होते, तो एक कलाकार के रूप में उनकी मौजूदगी पर इसका अधिक सकारात्मक प्रभाव पड़ता.
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