क्यों रेल रोको आंदोलन से पहले टेंशन में आए किसान नेता ? जानिए
सिंघु बॉर्डर, 17 अक्टूबर: रेल रोको आंदोलन से पहले सिंघु बॉर्डर पर किसानों के खाली पड़े टेंट ने किसान नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। किसान संगठनों ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सोमवार को रेल रोको आंदोलन का आह्वान कर रखा है। लेकिन, सिंघु बॉर्डर पर हुई घटना ने न सिर्फ किसान संगठनों को फिर से सवालों के घेरे में ला दिया है, बल्कि लोगों की घटती तादाद से उनके हौसले पर भी असर पड़ता दिख रहा है। खासकर तब जब सुप्रीम कोर्ट ने उनसे दो टुक कह दिया है कि इस तरह से सड़कों को जाम करके बैठना किसी का अधिकार नहीं है और जब उसने इन कानूनों पर रोक लगा रखी है तो फिर इस तरह के प्रदर्शन का औचित्य ही क्या है ?
सिंघु बॉर्डर पर खाली पड़े टेंट
दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर जिस तरह से एक दलित मजदूर की बर्बरता के साथ हत्या कर दी गई, उसके बाद प्रदर्शन स्थल पर एक अजीब सी खामोशी छाई हुई है। शनिवार को वहां जिस तरह आंदोलनकारी किसानों की संख्या घटी उससे सवाल उठने शुरू हुए कि 18 अक्टूबर यानी सोमवार को आयोजित किसानों के रेल रोको आंदोलन का क्या होगा ? आरोपों के मुताबिक उस गरीब मजदूर को निहंग सिखों ने इसलिए दर्दनाक मौत दी, क्योंकि उसने कथित तौर पर पवित्र ग्रंथ का अपमान किया था। शनिवार को सिंघु बॉर्डर पर ज्यादातर टेंट खाली पड़े रहे, हालांकि हाइवे पर गाड़ियां सामान्य दिनों की तरह ही चल रही थीं।
दलित मजदूर की निर्मम हत्या से छवि पर लगा बट्टा
कुछ नेताओं ने मंच से भाषणों का दौर जरूर जारी रखा, लेकिन सुनने वालों की तादाद पहले के मुकाबले काफी घट चुकी थी। गौरतलब है कि शुक्रवार तड़के सिंघु बॉर्ड पर किसानों के प्रदर्शन स्थल पर हत्या की इस वारदात को जितने जघन्य तरीके से अंजाम दिया गया, उससे पूरा देश सन्न रह गया। जब से निंहग सिखों पर इस हत्या के आरोप लगे हैं किसान संगठनों ने उनसे दूरी बना ली है। कीर्ति किसान यूनियन के महासचिव सतबीर सिंह मंच से बोल रहे थे, 'इस घटना ने पंजाब की छवि धूमिल की है। अब तक लोग यही मानते थे कि पंजाब के लोग बड़े दिल वाले हैं और जरूरतमंदों की मदद करते हैं।............यह बर्बर था, और हम सभी इसकी कड़े शब्दों में निंदा करते हैं।'
लखबीर की हत्या से उठ रहे हैं कई गंभीर सवाल
दरअसल, किसानों के बीच में मजदूर की हुई जघन्य हत्या से न केवल इस आंदोलन पर सवाल और गहरा गए हैं, बल्कि यह सवाल भी उठ रहे हैं जब लखबीर सिंह कातिलाना हमले के 30 से 45 मिनट बाद तक भी जिंदा था तो उसे मेडिकल सहायता क्यों नहीं उपलब्ध करवाई गई। जबकि, वहां पर खालसा एड का हेल्थ चेकअप काउंडर भी था और वहीं पर एंबुलेंस भी खड़ी थी। लेकिन, ना तो उस तड़पते मजदूर को डॉक्टरी सहायता दी गई और ना ही उसे अस्पताल जाने की किसी ने कोशिश की। लखबीर की मौत से पहले का वीडियो (अलग से पुष्टि नहीं की गई है) भी वायरल हो चुका है।
'बेअदबी का कोई सबूत नहीं'
वैसे किसान नेताओं का दावा है कि जबतक उन्हें हमले के बारे में पता चला तबतक लखबीर की मौत हो चुकी थी। निहंगों का टेंट मंच की दाहिनी तरफ है और किसानों के टेंट उससे काफी पीछे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के हरमेश सिंह धेसी ने ईटी से कहा है कि 'वे (निहंग सिख) कहते हैं कि वो हमारा समर्थन कर रहे हैं, लेकिन हमने उनसे समर्थन नहीं मांगा है।' उनके मुताबिक 'वे कह रहे हैं कि उसको बेअदबी की सजा दी गई है, लेकिन कोई सबूत नहीं है।'
अब निहंगों से पीछा छुड़ाने से काम चलेगा ?
निहंग सिखों की वजह से किसान संगठनों की स्थिति अजीब हो गई है। निंहग लगातार उन्हें समर्थन दे रहे हैं, लेकिन जब भी वह कोई ऐसी घटनाओं को अंजाम दे देते हैं तो वो उनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश शुरू कर देते हैं। सतबीर सिंह ने कहा है, '26 जनवरी को भी हमारी योजना 10 बजे शुरू करने की थी और सिर्फ रिंग रोड तक ही सीमित रहना था। वह काफी सबेरे ही लाल किले तक पहुंचने की योजना के साथ निकल पड़े।' (रेल रोको आंदोलन वाली तस्वीर फाइल)