बीजेपी विरोधी रहे अल्पेश ठाकोर बीजेपी की टिकट पर चुनाव क्यों हार गए?
गुजरात में पाटन जिले के राधनपुर सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस उम्मीदवार रघु देसाई से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. अल्पेश ठाकोर, ठाकोर सेना की अगुवाई कर रहे हैं और उनकी पहचान एक शराब विरोधी आंदोलनकारी की है. 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले वह कांग्रेस में शामिल हुए थे. हालांकि, जुलाई 2019 में वह बीजेपी में शामिल हो गए.
गुजरात में पाटन जिले के राधनपुर सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस उम्मीदवार रघु देसाई से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.
अल्पेश ठाकोर, ठाकोर सेना की अगुवाई कर रहे हैं और उनकी पहचान एक शराब विरोधी आंदोलनकारी की है. 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले वह कांग्रेस में शामिल हुए थे. हालांकि, जुलाई 2019 में वह बीजेपी में शामिल हो गए.
अब जबकि अल्पेश चुनाव हार गए हैं, फिर भी वह गुजरात के राजनीति में महत्वपूर्ण माने जाते हैं. ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर राधनपुर विधानसभा सीट से जीतने वाले अल्पेश ठाकोर को उपचुनाव में हार का सामना क्यों करना पड़ा?
अल्पेश ठाकोर चुनाव क्यों हार गए?
अल्पेश ठाकोर के हार के कारणों पर वरिष्ठ पत्रकार अजय उमट कहते हैं, "अल्पेश की हार इस बात का प्रमाण है कि गुजरात की जनता कभी भी विद्रोहियों को स्वीकार नहीं करेगी. इस चुनाव में उन्होंने केवल ठाकोरवाद पर ही जोर दिया."
उमट कहते हैं, "राधनपुर निर्वाचन क्षेत्र सांतलपुर, समी-हारिज और राधनपुर क्षेत्रों में विभाजित है. जहां ठाकोर मतदाताओं की संख्या 60 से 65 हज़ार है, लेकिन इसके ख़िलाफ़ आंजना पटेल, चौधरी समाज और स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों में भी नाराज़गी थी."
अजय उमट ने बताया, "साथ ही कांग्रेस पार्टी के साथ निष्ठा रखने वाले मुस्लिम समुदाय, ब्राह्मण समाज और अहीर समाज के अलावा वहाँ के सभी समुदाय ठाकोर के ख़िलाफ़ एकजुट हो गए थे. यही कारण है कि अल्पेश को बीजेपी जैसे संगठन से होने के बावजूद हार का सामना करना पड़ा है."
अजय उमट कहते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान अल्पेश के भाषण और साथ ही वे खुद अपनी हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
उन्होंने कहा, "प्रचार के दौरान वे कहते रहे कि अब मैं उपमुख्यमंत्री बनने वाला हूं और लोगों को यह भी समझाते रहे कि उनके कहने भर से काम हो जाया करेंगे. ऐसे बयानों के कारण, ठाकोर समुदाय के अलावा अन्य लोगों के बीच अल्पेश और बीजेपी के प्रति नाराज़गी बढ़ी."
"अल्पेश ठाकोर को जो टिकट दिया गया उससे स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ताओं में भी रोष था. कार्यकर्ताओं की यह नाराज़गी भी बीजेपी और अल्पेश की हार का कारण बनी."
"चुनाव अभियान में पार्टी के आदेश के बाद, शंकर सिंह चौधरी अल्पेश की मदद के लिए हमेशा तैयार थे, लेकिन समर्थकों ने उनका साथ नहीं दिया. वे अल्पेश के ख़िलाफ़ चले गए."
यह अल्पेश की हार है या बीजेपी की?
एम एस विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर अमित धोलकिया ने कहा, "यह बीजेपी से ज़्यादा अल्पेश की व्यक्तिगत हार है."
वे कहते हैं, "यह हार निजी महत्वाकांक्षा रखने की खातिर दलबदल कर रहे नेताओं के लिए एक सबक बन जाएगी."
इसके साथ ही अमित धोलकिया कहते हैं कि राज्य में बीजेपी के पास पहले से ही कई वरिष्ठ नेता मौजूद हैं और ऐसे में बीजेपी को चुनाव हार चुके नेता की ज़रूरत नहीं दिखती साथ ही अल्पेश पहले से ही कांग्रेस से बाहर हो चुके हैं लिहाजा उनका राजनीति भविष्य नहीं दिखता है.
नतीजे आने के बाद अल्पेश ने कहा कि वे जातिवादी राजनीति के कारण हारे.
इस पर धोलकिया कहते हैं, "जातिवाद पर आधारित राजनीति से ही अल्पेश का उदय हुआ. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उनकी हार के लिए केवल जातिवाद ज़िम्मेदार है."
वे कहते हैं, "उनकी हार का सबसे बड़ा कारण दलबदल करना रहा. उनकी महत्वाकांक्षाओं ने उनके अपने समुदाय और पार्टी के भीतर भी विरोधियों को खड़ा कर दिया. संक्षेप में कहें तो थोड़े समय में बहुत कुछ हासिल करने की उनकी महत्वकांक्षा ने उनकी हार में बड़ी भूमिका निभाई."
कौन हैं अल्पेश ठाकोर?
बचपन से ही राजनीति की घुट्टी पीने वाले अल्पेश गुजरात के एक पिछड़े वर्ग के नेता के रूप में जाने जाते हैं.
वह ओबीसी, एससी और एसटी एकता मंच के संयोजक भी हैं. न्यूज़ 18 के मुताबिक अल्पेश ने गुजरात में पाटीदारों को आरक्षण देने का विरोध भी किया था. उन्होंने इसके ख़िलाफ़ एक समानांतर आंदोलन भी चलाया. फिर बेरोज़गारी के मुद्दे और शराबबंदी को लेकर गुजरात सरकार के सामने खड़े हुए.
बीबीसी गुजराती के अनुसार, 1975 में जन्मे अल्पेश ठाकोर ने कॉलेज की शिक्षा अधूरी छोड़ दी थी. उन्होंने 2011 में 'गुजरात क्षत्रिय ठाकोरसेना' नामक एक मजबूत संगठन बनाया था.
ठाकुरसेना के जरिए उन्होंने युवाओं में नशे के प्रसार को रोकने के लिए काम किया जिसके अच्छे परिणाम भी मिले.
बीबीसी गुजराती के साथ हुई बातचीत में उन्होंने कहा था कि अभी इसके लिए और भी काम किया जाना बाकी है. तब उन्होंने कहा था, "पहले, मैं सोचता था कि एक बार शराब छूट जाए तो सब ठीक हो जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है."
इसके अलावा उन्होंने युवा संगठन को मजबूत किया और युवाओं की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया. इस प्रकार, लगातार प्रयासों से, उन्होंने ठाकोरसेना को मजबूत किया.
2017 में, उनके साथ ठाकोरसेना के चार अन्य सदस्य गुजरात कांग्रेस की टिकट पर उत्तर गुजरात से विधायक बने.
राधनपुर से अल्पेश, साबरकांठा के बायड से धवल सिंह झाला, मेहसाणा बहुचराजी से भरत सिंह ठाकोर और बनासकांठा के वाव से गेनीबेन ठाकोर चुने गए थे.
गुजरात की राजनीति में अल्पेश ठाकोर का प्रभाव इसलिए बढ़ा क्योंकि 26 ज़िलों के 176 तालुका और गुजरात के 9,500 गांवों में ठाकोरसेना संगठन का अच्छा प्रभाव था.
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कांग्रेस का साथ क्यों छोड़ा?
2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हो गए.
न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने को लेकर अपने समर्थकों का विचार जानने के लिए टेलीफ़ोन पर एक सर्वे किया था जहां उनके इस कदम को समर्थन मिला.
अब, यह जानना भी स्वाभाविक है कि जब समर्थकों का विचार जानने के बाद वे कांग्रेस में शामिल होन गए तो आखिर अचानक उनका साथ क्यों छोड़ दिया और बीजेपी में क्यों चले गए.
द हिंदू बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस के निर्देश के ख़िलाफ़ अल्पेश ठाकोर और उनके सहयोगी धवल सिंह झाला ने बीते वर्ष जुलाई में हुए राज्यसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी एस जयशंकर और जुगलजी ठाकोर को वोट दिया. जिसके बाद कांग्रेस, अल्पेश और उनके सहयोगियों के बीच मतभेद हो गया.
बीजेपी में क्यों चले गए?
न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी, एससी और एसटी एकता मंच के नेता अल्पेश ने यह दावा किया था कि गुजरात में कांग्रेस का साथ देकर वह और उनके समुदाय के लोग ठगे और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और उनके समुदाय को कांग्रेस में उचित भागीदारी नहीं मिल रही है.
तब उन्होंने यह भी कहा था कि गुजरात कांग्रेस की कमान कुछ कमज़ोर नेताओं के हाथ में है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर के अनुसार 2018 में अन्य राज्यों के लोगों पर गुजरात में हुए हमलों में भी अल्पेश का नाम आया था.
बाद में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया और इसी वर्ष जुलाई में बीजेपी में शामिल हो गए.
बीजेपी ने उन्हें राधनपुर विधानसभा सीट से ही उम्मीदवार बनाया लेकिन यहां वो कांग्रेस प्रत्याशी रघु देसाई से हार गए.