मायावती का अपमान एक और महिला साधना सिंह ने क्यों किया: ब्लॉग
ये मर्द-औरत की प्रतिस्पर्धा की नहीं हमारी राजनीति और समाज की बात है. 'औरत ही औरत के ख़िलाफ़ होती है', जैसे हल्के तर्क के पीछे छुपना आख़िर कब तक जायज़ ठहराएंगे.
राजनीति के गलियारों में बहती बयार हमारे सभी नेताओं को बदलनी होगी. परवरिश और रूढ़िवादी सोच पीछे छोड़ औरतों और तथाकथित निचली जाति के प्रति समानता, इज़्ज़त और संवेदनशीलता सभी को लानी होगी.
आपने भी शायद सुना होगा कि भारतीय जनता पार्टी की महिला विधायक साधना सिंह ने कहा कि उन्हें समझ नहीं आता कि बहुजन समाजवादी पार्टी नेता मायावती 'महिला हैं या पुरुष' और उन्होंने 'सत्ता के लिए इज़्ज़त बेच दी'.
साधना सिंह ने अब अपनी टिप्पणी के लिए माफ़ी मांग ली है पर मायावती के रूप पर और महिला जैसी ना लगने पर, महिला नेता अक्सर टिप्पणी करती आई हैं. हर एक टिप्पणी, पिछली से और बद्तर होती है.
पर इसकी वजह समझने से पहले ये भी बता दें कि महिलाएं ही क्या, पुरुष भी इसमें कभी पीछे नहीं रहे हैं.
जब 1990 के दशक में मायावती ने पहली बार बाल छोटे कटवाए तो समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह यादव ने उन्हें 'परकटी महिला' कहा था.
यानी अच्छी भारतीय औरत लंबे बाल रखती है, बाल काट ले तो 'परकटी' पाश्चात्य सभ्यता वाली हो जाती है.
1995 में जब उत्तर प्रदेश की गठबंधन सरकार से बहुजन समाजवादी पार्टी ने समर्थन खींच लिया तो उसके बाद समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने राज्य के गेस्टहाउस में ठहरी मायावती पर हमला बोल दिया.
'सुंदर औरत' और बलात्कार
हमले के बाद मुलायम सिंह यादव के ख़िलाफ़ आपराधिक मुक़दमा दर्ज हुआ.
पत्रकार नेहा दीक्षित के मुताबिक़ 20 साल बाद भी वो मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. मायावती पर अपने एक लेख में उन्होंने बताया कि बलात्कार के आरोप के बाद मुलायम सिंह यादव ने उसी साल मैनपुरी में एक रैली में कहा था, "क्या मायावती इतनी सुंदर हैं कि कोई उनका बलात्कार करना चाहेगा?"
यानी 'सुंदर' औरतों का ही बलात्कार होता है, औरत सुंदर नहीं हो तो बलात्कार करने 'लायक़' नहीं है और अपनी सुंदरता की वजह से औरत ही अपने बलात्कार के लिए ज़िम्मेदार है.
बयान और नेताओं के भी हैं, पर उन्हें दोहराने से क्या फ़ायदा. इतना जानना ही काफ़ी है कि मायावती पर औरतें ही नहीं मर्द भी 'सेक्सिस्ट' टिप्पणियां करते रहे हैं.
ऐसी टिप्पणियां जो औरतों के बारे में रूढ़िवादी विचारधारा को आगे ले जाती हैं.
औरत, औरत के ख़िलाफ़ क्यों?
पर घूमकर सवाल फिर ये आता है कि एक औरत, औरत के ख़िलाफ़ क्यों बोलीं?
और इसका जवाब उतना जटिल भी नहीं.
आप सहजता से ये मान सकते हैं कि मुलायम सिंह यादव समेत अन्य पुरुष नेता अपनी परवरिश और समाज में प्रचलित पुरानी सोच के चलते ये सब कहते हैं, तो औरतें भी उसी राजनीतिक माहौल में जी रही हैं.
समाज जब पुरुष-प्रधान होता है तो औरतों को, ख़ास तौर पर दलित औरतों को नीची नज़र से देखना सही समझा जाने लगता है.
साधना सिंह ने जब मायावती के 'कपड़े फटने की वजह से उनके कलंकित महिला' होने की बात की तो शायद ये नहीं सोचा होगा कि उनकी बात का आशय ये है कि बलात्कार पीड़ित औरत हमेशा के लिए 'कलंकित' हो जाती है.
या जब साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता शायना एन.सी. ने जयपुर में एक सम्मेलन में कहा था कि उन्हें समझ नहीं आता कि मायावती 'ही' हैं या 'शी'.
शायना फ़ैशन डिज़ाइनर भी हैं और मायावती के पहनावे, बालों के स्टाइल पर उनकी ये टिप्पणी इस समझ को दिखलाती है कि 'औरत' मानी जाने के लिए एक तरह का पहनावा और श्रृंगार ज़रूरी है.
बल्कि वाम नेता कविता कृष्णनन के मुताबिक़ इसका ये मतलब भी था कि, "सत्ता मर्दों का अधिकार-क्षेत्र है और मायावती शादीशुदा नहीं हैं, उनके छोटे बाल हैं, साड़ी नहीं पहनती हैं इसलिए वो 'वुमनली वुमन' है".
जाति और वर्ग
मायावती अकेली महिला नेता नहीं हैं जिनके ख़िलाफ़ 'सेक्सिस्ट' टिप्पणियां की गई हों - चाहे मर्दों या औरतों के द्वारा.
पर मायावती को उनके दलित होने की वजह से उन्हें सांसद और मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने के बावजूद जातिगत भेदभाव से जूझना पड़ा है.
पत्रकार अजॉय बोस ने उनके जीवन पर अपनी किताब, 'बहनजी: अ पॉलिटिकल बायोग्रेफ़ी ऑफ़ मायावती' में इसका काफ़ी उल्लेख किया है.
वो लिखते हैं कि संसद में महिला नेता मायावती के बालों में तेल लगाकर आने पर हंसती थीं, शिकायत भी करती थीं कि मायावती को बहुत पसीना आता है इसलिए उन्हें तेज़ परफ़्यूम लगाना चाहिए.
कांग्रेस नेता रीता बहुगुना जोशी ने साल 2009 में उस व़क्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन मायावती से बलात्कार पीड़िताओं के लिए मुआवज़े की रक़म बढ़ाने के संदर्भ में कहा कि मायावती को शर्मिंदा करने के लिए 'उनपर मुआवज़े की रक़म फेंक कर कहना चाहिए कि अगर तुम बलात्कार के लिए राज़ी हो जाओ तो तुम्हें एक करोड़ रुपए दूंगा'.
जैसा मैंने कहा था, हर टिप्पणी पिछली से और भद्दी.
ये मर्द-औरत की प्रतिस्पर्धा की नहीं हमारी राजनीति और समाज की बात है. 'औरत ही औरत के ख़िलाफ़ होती है', जैसे हल्के तर्क के पीछे छुपना आख़िर कब तक जायज़ ठहराएंगे.
राजनीति के गलियारों में बहती बयार हमारे सभी नेताओं को बदलनी होगी. परवरिश और रूढ़िवादी सोच पीछे छोड़ औरतों और तथाकथित निचली जाति के प्रति समानता, इज़्ज़त और संवेदनशीलता सभी को लानी होगी.
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