अमित शाह को दिल्ली दंगों पर एक अनजानी संस्था की रिपोर्ट क्यों सौंपी गई
रिपोर्ट में दिल्ली दंगों के लिए पाकिस्तान की आईएसआई और केरल की पीएफ़आई को ज़िम्मेदार ठहराया गया है.
कोविड-19, प्रवासी मज़दूर संकट और चीन, नेपाल सीमा पर जारी विवाद के बीच भारतीय गृह मंत्री अमित शाह को दिल्ली दंगों पर एक संस्था ने अपनी रिपोर्ट सौंपी है.
अनजानी और अनसुनी इस संस्था के प्रतिनिधियों ने गृह मंत्री अमित शाह से भेंट की. इस साल फ़रवरी में दिल्ली में दंगे हुए थे, जिसमें 50 से अधिक लोगों की मौत हुई थी.
पिछले हफ्ते सौंपी गई 78 पन्नों की रिपोर्ट में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फ़रवरी 2020 में हुए दंगों को पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई, दक्षिण भारत की कट्टरपंथी इस्लामी संस्था पीपुल्स फ्रंट ऑफ़ इंडिया, कांग्रेस, जामिया यूनिवर्सिटी के संगठन और अन्य की साज़िश बताया गया है.
इस जाँच रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दंगों पर 120 करोड़ रुपये ख़र्च हुए और दिल्ली के मुसलमानों को भड़काकर हिंदुओं पर हमला करवाया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक़ दंगों के लिए बाहर से 7000 लोग लाए गए थे और हिंसा के लिए 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' के लोग भी ज़िम्मेदार थे.
मार्च के दूसरे हफ़्ते में लोकसभा में एक बहस के दौरान अमित शाह ने भी इन दंगों को साज़िश बताया था जिसके लिए उत्तर प्रदेश से 300 लोग राजधानी आए थे.
उत्तर प्रदेश में भी केंद्र की तरह भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. दिल्ली की पुलिस दिल्ली सरकार के तहत नहीं बल्कि गृह मंत्रालय के अधीन है.
दिल्ली पुलिस पर सवाल
रिपोर्ट तैयार करनेवाली संस्था 'न्याय की पुकार' की जांच टीम के सदस्य नीरज अरोड़ा से जब बीबीसी ने ये पूछा कि इतनी बड़ी तादाद में दंगाई दिल्ली में कैसे जमा हो गए, तो क्या ये दिल्ली पुलिस की नाकामी है, इस पर उन्होंने कहा कि इसे पुलिस की ढिलाई के तौर पर देखा जा सकता है.
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि 22 फ़रवरी से ही दिल्ली में पुलिसकर्मियों की 30 कंपनियां मौजूद थीं.
सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले नीरज अरोड़ा के अलावा टीम में पाँच और दूसरे सदस्य भी थे.
ख़ुद को ग़ैर राजनीतिक बताने वाले नीरज अरोड़ा साइबर क्राइम एक्सपर्ट हैं और जाँच एजेंसी एनआईए से वकील के तौर पर संबंध रखते हैं.
स्वयंसेवी संस्था की वेबसाइट पर बहुत जानकारी नहीं है, लेकिन दिल्ली दंगों की जाँच रिपोर्ट के अलावा कुछ दूसरी जाँच रिपोर्टों जैसे केरल में दक्षिणपंथी गुटों के ख़िलाफ़ हुई हिंसा और नागरिकता क़ानून के समर्थन में आयोजित वाद-विवाद का ज़िक्र है.
नागरिकता क़ानून को 'साहसिक' बताने वाली बहस का संचालन करने वालों में इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायधीश एसएन श्रीवास्तव शामिल थे.
न्यायाधीश एसएन श्रीवास्तव मुसलमानों को सूबे में अल्पसंख्यकों का दर्जा न दिया जाए और गीता को राष्ट्रीय धर्मशास्त्र घोषित करने जैसे फ़ैसलों और टिप्पणियों के लिए चर्चा में आ गए थे.
संस्था ने जाँच क्यों की?
रिपोर्ट तैयार करनेवाली संस्था न्याय की पुकार के एक और ट्रस्टी चंद्र वाधवा ने वॉट्सऐप के ज़रिए बताया कि दिल्ली दंगों की जाँच टीम का गठन उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की सच्चाई जानने के लिए किया गया था और इसमें अलग-अलग क्षेत्रों के माहिर शामिल थे.
उन्होंने बाक़ी किसी तरह के सवालों के जवाब नहीं दिए, और न ही फ़ोन पर बात करने को तैयार हुए.
जाँच टीम के एक सदस्य पूर्व फारेंसिक एक्सपर्ट टीएस डोगरा भी थे और उनकी फॉरेंसिक जाँच में इशरत जहां, तुलसी प्रजापति, सोहराबुद्दीन शेख़ और बटला हाउस मुठभेड़ जैसे मामले शामिल हैं.
टीएस डोगरा इंदिरा गांधी हत्याकांड की मेडिको-लीगल टीम में भी थे.
'मुसलमानों ने नहीं की बात'
ये पूछे जाने पर कि जाँच दल की रिपोर्ट से ये लगता है कि उसने इक्का-दुक्का मामलों को छोड़कर हिंदू समुदाय से ही बातचीत की है, नीरज अरोड़ा का कहना था कि मुस्लिम समुदाय के लोग उनसे बात करने को तैयार नहीं थे और 'ऐसा लग रहा था कि जैसे वो किसी की इजाज़त का इंतज़ार कर रहे हों.
दिल्ली दंगों को लेकर इससे पहले भी आरएसएस से क़रीबी माने जानेवाली वकील मोनिका अरोड़ा ने एक रिपोर्ट तैयार की थी जो गृह मंत्रालय को सौंपी गई थी.
दिल्ली दंगों को एक ख़ास दिशा में ले जाने का आरोप तो मानवधिकार कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक उठाते रहे हैं.
हाल ही में दिल्ली की एक अदालत के एडिशनल सेशन जज धर्मेंद्र राना ने दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों की सुनवाई करते हुए कहा था कि जाँच को एक ख़ास दिशा में ले जाने की कोशिश हो रही है.