‘राफेल’ पर कौन फेल- राहुल गांधी या नरेंद्र मोदी?
नई दिल्ली। राहुल गांधी 8 फरवरी को सुबह-सुबह एक ट्वीट किया। यह ट्वीट सशस्त्र बलों को संबोधित था। इसमें उनकी भूमिका, उनके त्याग का ज़िक्र करते हुए उन्हें देश की शान बताया गया था। इसके सथ ही सुबह साढ़े दस बजे संवाददाता सम्मेलन लाइव देखने की अपील की गयी थी। ट्वीट का पूरा मजमून कुछ ये था, "सशस्त्र बलों के भाइयों और बहनों। आप हमारे रक्षक हैं। आप भारत के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान करते हैं। आप हमारी शान हैं। कृपया 10.30 बजे आज मेरी प्रेस कॉन्फ्रेंस लाइव देखें।"
यह ट्वीट दो बातों की प्रतिक्रिया थी। एक संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बजट सत्र के समापन का भाषण जिसमें उन्होंने कांग्रेस पर सेना का अपमान करने का आरोप लगाया था, वायु सेना को कमजोर करने का आरोप लगाया था। इतना ही नहीं, सेना के पास बुलेटप्रूफ जैकेट तक नहीं होने और सैन्य खरीद को रोके रखने के साथ-साथ दलाली में शामिल होने का आरोप भी प्रधानमंत्री ने लगाया था।
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राफेल पर रार
दूसरी बात जिसकी प्रतिक्रिया में यह ट्वीट रही, वह थी द हिन्दू अखबार में छपी वह रिपोर्ट, जिसमें रक्षा सौदे के दौरान रक्षा सचिव रहे जी मोहन कुमार का राफेल सौदे पर आपत्ति प्रकाशित हुई थी। यह आपत्ति इस बात को लेकर थी कि रक्षा मंत्रालय से सौदे पर बातचीत जारी रहते प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से समांतर बातचीत की जा रही थी। यह आपत्ति संप्रभु गारंटी हटाए जाने और सामान्य नियम शर्तों को लेकर थी। इस बात को खुद जी मोहन कुमार स्पष्ट किया है कि राफेल की कीमतों को लेकर उनकी ओर से कोई आपत्ति नहीं दर्ज करायी गयी थी।
राहुल गांधी ने लगाए गंभीर आरोप
अब राहुल गांधी ने राफेल को लेकर अपने आरोपों को और धारदार बना दिया। राहुल गांधी जो कुछेक बातें जोर देकर कह रहे हैं उन पर नज़र डालें
*
अब
यह
साफ
हो
गया
है
कि
राफेल
सौदे
में
30
हज़ार
करोड़
रुपये
की
चोरी
हुई।
*
प्रधानमंत्री
ने
यह
चोरी
की
और
अपने
मित्र
अनिल
अम्बानी
को
रकम
दिलायी।
*
प्रधानमंत्री
कार्यालय
ने
राफेल
सौदे
में
हस्तक्षेप
किया।
*
रक्षा
मत्रालय
की
आपत्तियों
को
नजरअंदाज
करते
हुए
ऐसा
किया।
*
इससे
रक्षा
मंत्रालय
की
सौदेबाजी
की
क्षमता
कमजोर
हुई।
*
तत्कालीन
फ्रांसीसी
राष्ट्रपति
फ्रांस्वा
ओलांदे
ने
कहा
था
कि
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
ने
अनिल
अम्बानी
का
नाम
सुझाया
था।
इस
बात
की
भी
इन
तथ्यों
से
पुष्टि
हो
रही
है।
पीएम मोदी ने संसद में राफेल पर की टिप्पणी
नरेंद्र मोदी का संसद में भाषण और राहुल गांधी के ट्वीट में देखें तो ‘सेना का मनोबल किसने गिराया?' का सवाल और जवाब दोनों सामने है। बल्कि, सवाल को वहीं मोड़ दिया गया है जहां से यह पैदा हुआ। पहले नरेंद्र मोदी ने सवाल उठाए। राहुल गांधी प्रेस कॉफ्रेन्स कर जवाब दिया। न सिर्फ जवाब दिया, बल्कि उल्टे नरेंद्र मोदी पर सेना का मनोबल गिराने का आरोप जड़ दिया। देश में इन दिनों गजब की राजनीति चल रही है। आप अपने आपको देशभक्त बताएं, इससे कौन मना कर सकता है। मगर, दूसरे को देश विरोधी बताएं, क्या जरूरी है? जो काम देश विरोधी हैं या होत हैं या हो सकते हैं, उस बारे में तथ्य बोलेंगे। तथ्यों की जांच उसकी आवाज़ बुलन्द करेगी। इसके लिए आवाज़ उठाना जरूरी है। मगर, पिछली सरकारों में भ्रष्टाचार हुआ, इसलिए वे देश विरोधी थीं या फिर सेना का मनोबल गिराया गया, इसलिए वह देश विरोधी थीं। ऐसे आरोप बेमतलब हैं।
राफेल को लेकर बढ़ा सियासी घमासान
राजनीति ऐसी नहीं हो कि आरोप भी खुद लगाएं, दोषी भी खुद ठहराएं। दुर्भाग्य से यह दोनों ओर से हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में खड़े होकर जब ऐसा करते हैं, तो वे उदाहरण बन जाते हैं। उनकी पार्टी के लोग इसे फॉलो करने लगते हैं। प्रेस कॉन्फ्रेन्स से लेकर टीवी डिबेट तक की भाषा वही हो जाती है। विपक्ष को तब नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। राफेल पर राहुल गांधी 10 मिनट आमने-सामने बहस की चुनौती लम्बे समय से दे रहे हैं। इस चुनौती को प्रधानमंत्री स्वीकार क्यों नहीं करते? वे अच्छे वक्ता हैं, खुद को ईमानदार और चौकीदार बताते हैं। तो, उन्हें राहुल गांधी से बहस करने में क्या दिक्कत है। खासकर तब जब पूरी बीजेपी की जमात में राहुल गांधी को ‘पप्पू' कहा जाता रहा है? राफेल मुद्दे पर राहुल गांधी पर बीजेपी का आरोप होता है कि वे राफेल को मुद्दा बनाने में फेल रहे हैं। मगर, सच क्या है? राफेल पर जवाब देने में मोदी सरकार फेल रही है। राहुल के सवालों से बच नहीं सकते हैं पीएम। जवाब उनको देना ही होगा। राफेल पर जवाब नहीं देना मोदी सरकार को बहुत महंगा पड़ने वाला है।
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